उत्तर प्रदेश में 2026 में होने वाले पंचायत चुनाव से पहले राज्य निर्वाचन आयोग के सामने मतदाता सूची से करीब एक करोड़ डुप्लीकेट वोटरों के नाम हटाने की चुनौती खड़ी हो गई है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से आयोग ने ऐसे मतदाताओं की पहचान की है जिनके नाम एक से अधिक स्थानों पर दर्ज हैं। इस खुलासे के बाद आयोग ने सभी जिलाधिकारियों और उप जिलाधिकारियों (एसडीएम) को सूची सौंपते हुए कार्रवाई के निर्देश दिए, लेकिन जिलों से मिल रही रिपोर्ट बताती है कि इस दिशा में काम की रफ्तार बेहद सुस्त है। अधिकतर जिलाधिकारियों और निर्वाचन अधिकारियों ने अब तक डुप्लीकेट मतदाताओं के नामों को हटाने की प्रक्रिया में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है। इस सुस्ती का सीधा असर मतदाता सूची के पुनरीक्षण पर पड़ रहा है, जिससे पंचायत चुनाव की समयबद्ध तैयारी प्रभावित हो रही है। नगरीय निकाय सीमा विस्तार और नई नगर पंचायतों के गठन के कारण कई गांव नगर क्षेत्रों में शामिल हो गए हैं, जिससे एक बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम दो सूचियों—नगर निकाय और पंचायत दोनों में दर्ज हो गए हैं। अब आयोग को चिंता है कि यदि समय रहते यह समस्या नहीं सुलझाई गई तो मतदाता सूची की विश्वसनीयता पर सवाल उठ सकते हैं और चुनावी पारदर्शिता प्रभावित हो सकती है।
जिलों में लापरवाही पर सख्ती की तैयारी, आयोग करेगा वीडियो कॉन्फ्रेंस
राज्य निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची पुनरीक्षण से पहले सभी जिलों को डुप्लीकेट मतदाताओं की सूची भेजी थी, लेकिन रिपोर्ट के अनुसार, डीएम और एसडीएम स्तर पर कार्रवाई में रुचि न लेने के कारण प्रक्रिया अटक गई है। बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) भी मौके पर जाकर सत्यापन करने में पीछे हट रहे हैं। अब आयोग के आयुक्त राज प्रताप सिंह ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सभी जिलाधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस बुलाने का निर्णय लिया है। बताया जा रहा है कि आयोग जल्द ही जिलों को सख्त निर्देश जारी करेगा कि वे मौके पर जाकर प्रत्येक मतदाता का फिजिकल सत्यापन करें और जिनके नाम दो या अधिक जगहों पर दर्ज हैं, उन्हें तुरंत हटाया जाए। अपर आयुक्त अखिलेश मिश्रा ने स्पष्ट किया है कि डुप्लीकेट नामों की पहचान कंप्यूटर आधारित सूची से हुई है, लेकिन अंतिम सत्यापन केवल बीएलओ के फिजिकल निरीक्षण से ही संभव है। बिना स्थल सत्यापन के किसी भी नाम को मतदाता सूची से हटाया नहीं जा सकता। वहीं आयोग ने यह भी कहा है कि जिलों की लापरवाही से मतदाता सूची पुनरीक्षण का संशोधित कार्यक्रम जारी करना पड़ा है। पहले 7 अक्टूबर से शुरू होने वाली ड्राफ्ट मतदाता सूची की तैयारी अब 14 अक्टूबर से शुरू की गई है और 24 नवंबर तक पूरी की जानी है। इसके बाद दिसंबर में दावे-आपत्तियों की प्रक्रिया और जनवरी 2026 तक अंतिम प्रकाशन का कार्यक्रम तय है। मगर वर्तमान स्थिति को देखते हुए 15 जनवरी तक अंतिम सूची जारी करना कठिन माना जा रहा है।
आरक्षण, कार्यक्रम और समय पर चुनाव को लेकर संशय
डुप्लीकेट मतदाताओं की समस्या के अलावा पंचायत चुनाव 2026 की तैयारी में एक और चुनौती आरक्षण निर्धारण से जुड़ी है। राज्य निर्वाचन आयोग ने सरकार को पत्र लिखकर जिला पंचायत अध्यक्ष, ब्लॉक प्रमुख, ग्राम प्रधान और पंचायत सदस्यों के लिए आरक्षण की लॉटरी जल्द निकालने का अनुरोध किया है। जब तक आरक्षण सूची तय नहीं होगी, आयोग आगे की प्रक्रिया जैसे पुलिस, पीएसी, स्कूल भवनों और सरकारी कर्मचारियों की तैनाती के कार्यक्रम को अंतिम रूप नहीं दे पाएगा। सूत्रों के अनुसार, आरक्षण प्रक्रिया में देरी से संपूर्ण चुनाव कार्यक्रम भी प्रभावित हो सकता है। वहीं, कुछ दिनों पहले पंचायती राज मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने यह बयान देकर सियासी हलचल बढ़ा दी थी कि ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता से कराया जाएगा, हालांकि आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि ऐसा करने के लिए संविधान संशोधन आवश्यक है और फिलहाल चुनाव पूर्व की व्यवस्था के अनुसार सदस्यों के जरिए ही होंगे। आयोग के अधिकारी दावा कर रहे हैं कि वे बोर्ड परीक्षाओं, पुलिस बल की उपलब्धता और अन्य कारकों को ध्यान में रखते हुए तय समय पर चुनाव कराने की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन यदि मतदाता सूची का पुनरीक्षण और आरक्षण प्रक्रिया समय पर पूरी नहीं हुई, तो आयोग को एक बार फिर संशोधित अधिसूचना जारी करनी पड़ सकती है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या 2026 में पंचायत चुनाव अपने निर्धारित समय पर हो पाएंगे या नहीं। फिलहाल आयोग ने जिलाधिकारियों को चेताया है कि वे मतदाता सूची संशोधन की प्रक्रिया में तेजी लाएं, ताकि चुनावी कार्यक्रम में किसी भी तरह की देरी न हो और जनता को निष्पक्ष, पारदर्शी एवं समय पर पंचायत चुनाव मिल सके।




