उत्तर प्रदेश सरकार ने शनिवार शाम एक बड़े प्रशासनिक फेरबदल के तहत 46 आईएएस अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का ऐलान किया, जिसमें 10 जिलों के जिलाधिकारियों (DM) की तैनाती बदली गई है। यह तबादला विशेष रूप से उस समय आया जब राज्य में मतदाता सूची की स्पेशल इंक्वायरी-SIR-को लेकर तैयारियाँ चरम पर हैं। सरकार ने मेरठ और सहारनपुर के कमिश्नरों के अलावा कई अहम पदों पर भी फेरबदल किया है। जिन जिलों में डीएम बदले गए उनमें हाथरस, सीतापुर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, चित्रकूट, ललितपुर, श्रावस्ती, रामपुर, बलरामपुर और कौशांबी शामिल हैं। प्रशासनिक रिपोर्टों के मुताबिक यह कदम कई स्तरों पर संस्थागत ढांचे को चुस्त करने और चुनावी प्रक्रियाओं में सुनिश्चितता लाने के लिए उठाया गया है। इस फेहरिस्त में 2016 बैच के कई अफसरों को जिलों की जिम्मेदारी दी गई है-उदाहरण के तौर पर गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के वीसी अतुल वत्स को हाथरस का डीएम बनाया गया जबकि पुलकित गर्ग को चित्रकूट का नया डीएम नियुक्त किया गया। राज्य के विशिष्ट प्रशासनिक तंत्र में यह बदलाव यह संकेत देता है कि केंद्र और राज्य स्तर पर उन अधिकारियों को तैनात किया जा रहा है जिन्हें प्रशासनिक सक्रियता और चुस्ती के मापक पर अधिक योग्य समझा गया है। इसी क्रम में मेरठ और सहारनपुर के कमिश्नर बदलने के फैसले को भी विस्तृत रणनीतिक परिवर्तन के रूप में देखा जा रहा है।
विवाद, स्थानीय कारण और व्यक्तिगत मामलों का असर
ट्रांसफर की विधायिका में कुछ व्यक्तिगत और स्थानीय घटनाओं का प्रभाव भी दिखता है। ललितपुर के जिलाधिकारी अमनदीप डुली को महज तीन माह के भीतर साइड लाइन कर दिया गया-उन्हें अपर आयुक्त मनरेगा पद पर स्थानांतरित कर दिया गया और झांसी के नगर आयुक्त सत्य प्रकाश को नया डीएम बनाया गया। अमनदीप के खिलाफ मुख्य रूप से दो तरह की चर्चाएँ सामने आईं: एक, दिवाली के मौके पर उनके जारी किए गए एक वीडियो पर सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग और उनके लुक्स/हेयरस्टाइल को लेकर सुनाई देने वाली टिप्पणियाँ; और दूसरा, स्थानीय भाषा-बुंदेली-को पूरी तरह समझ न पाने संबंधी दिक्कतें तथा आला अधिकारियों के साथ तालमेल की कमी। हालांकि उनके समर्थक उनकी ईमानदारी और जनता के प्रति संवेदनशीलता की तारीफ भी करते रहे, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर उठे सवालों को अहमियत दी गई। रामपुर के मामले में भी स्थानीय राजनीतिक घटनाक्रमों ने भूमिका निभाई-जिला प्रशासन और राजनीतिक हस्तियों के बीच घर्षण को आरोप-प्रत्यारोप के रूप में देखा गया, जिससे जोगिंदर सिंह का ट्रांसफर आगे बढ़ा। सिद्धार्थनगर के डीएम के तबादले को भी हालिया मंदिर विवाद से जोड़ा गया, जहां प्रशासनिक कार्रवाई और स्थानीय प्रतिक्रिया के बीच टकराव देखने को मिला। कुल मिलाकर यह फेरबदल सिर्फ तकनीकी ट्रांसफर नहीं रहा बल्कि कई जगहों पर राजनीतिक-सामाजिक घटक भी प्रभावित रहे।
औद्योगिक विभाग में बदलाव और सत्तास्थर के संकेत
सरकार ने प्रशासनिक फेरबदल के साथ-साथ औद्योगिक विकास और निवेश प्रोत्साहन के संचालन में भी बदलाव किए हैं। इंवेस्ट यूपी के सीईओ विजय किरण आनंद को औद्योगिक विकास विभाग के सचिव का अतिरिक्त चार्ज तथा औद्योगिक विकास प्राधिकरण और एनआरआई सेल की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है-जिससे उनकी शक्ति और प्रभाव दोनों में वृद्धि हुई मानी जा रही है। सूत्रों के मुताबिक मयूर माहेश्वरी को हटाने का कारण निवेशकों को समय पर जमीन उपलब्ध कराने में प्रशासनिक अपेक्षाओं पर खरा न उतरना बताया जा रहा है, और इसलिए विजय किरण को अधिक भरोसेमंद माना गया। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तैनाती से विजय किरण का औद्योगिक नीति तथा निवेश पर सीधा संवाद मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुँचने लगा है, जो विभागीय फैसलों में उनका प्रभाव बढ़ा देता है। इसके अलावा सहकारी क्षेत्र और पावर वितरण में भी प्रमुख अधिकारियों का ट्रांसफर हुआ-उदा. ईशा दुहन को यूपी सहकारी चीनी मिल्स संघ का एमडी बनाया गया, जिनका नाम ऊर्जा क्षेत्र में कठोर और त्वरित निर्णय लेने के कारण पहले भी चर्चा में रहा है। राज्य सरकार ने PCS अधिकारियों का भी बड़ा रोटेशन किया है-27 पीसीएस अफसरों के ट्रांसफर से जिला स्तरीय प्रशासनिक व्यवस्था में नई सिफारिशें और अनुभवी अधिकारियों की तैनाती दिखती है। विपक्षी दलों ने इस शिफ्ट पर सवाल उठाते हुए नियुक्तियों पर राजनीतिक पक्षपात का आरोप लगाया है; विशेषकर सपा ने नियुक्तियों में जाति और धर्म के आधार पर बैलेंस बिगड़ने का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग को हस्तक्षेप का पत्र भेजा है। प्रशासन और राजनीतिक दलों के बीच यह टकराव आगे की प्रक्रियाओं व SIR के संचालन पर निगरानी और पारदर्शिता से जुड़ी बहस को और तेज कर सकता है।




