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सुल्तानपुर में हिस्ट्रीशीटर ने खुद को मारी गोली, सजा से पहले किया आत्महत्या, सीने पर चला दी गोली, कमरे में मिला खून से लथपथ शव

एलआईसी लूटकांड का आरोपी दुर्गेश सिंह उर्फ मोनू दो दिन पहले ही लौटा था गांव, कोर्ट में 5 नवम्बर को होनी थी सजा की सुनवाई, पुलिस ने फॉरेंसिक जांच शुरू की

Police investigating suicide of history-sheeter in Sultanpur | UP News

उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में शनिवार सुबह एक सनसनीखेज वारदात ने पूरे क्षेत्र को दहला दिया, जब कूरेभार थाना क्षेत्र के गलिबहा गांव में रहने वाले हिस्ट्रीशीटर दुर्गेश सिंह उर्फ मोनू ने खुद को गोली मारकर जान दे दी। घटना उस वक्त हुई जब वह अपने मकान के भीतर अकेला था और कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था। बताया जा रहा है कि सुबह करीब आठ बजे आसपास के लोगों ने अचानक गोली चलने की आवाज सुनी, जिसके बाद सभी लोग दुर्गेश के घर की ओर दौड़े। जब लोगों ने देखा कि दरवाजा अंदर से बंद है, तो उन्होंने तुरंत पुलिस को सूचना दी। सूचना मिलते ही पुलिस टीम मौके पर पहुंची और दरवाजा तोड़वाया गया। अंदर का नजारा देखकर हर कोई हैरान रह गया-बेड पर दुर्गेश खून से लथपथ पड़ा था और उसके सीने में गोली का गहरा निशान था। मौके पर पुलिस ने तत्काल फॉरेंसिक टीम को बुलाया, जिसने घटनास्थल से साक्ष्य इकट्ठे किए। शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया है। शुरुआती जांच में यह स्पष्ट हुआ है कि यह आत्महत्या का मामला है, लेकिन पुलिस सभी एंगल से जांच कर रही है। बल्दीराय के सीओ आशुतोष कुमार ने पुष्टि की कि युवक के सीने में गोली लगी थी और फिलहाल आत्महत्या की वजह का पता लगाया जा रहा है।

एलआईसी लूटकांड और आपराधिक इतिहास से जुड़ा था दुर्गेश

पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक मृतक दुर्गेश सिंह सुल्तानपुर थाने का नामचीन हिस्ट्रीशीटर था, जिसका हिस्ट्रीशीट नंबर 175A दर्ज है। उस पर गैंगस्टर एक्ट सहित करीब 10 संगीन मुकदमे दर्ज थे। इनमें सबसे बड़ा मामला वर्ष 2008 का कादीपुर एलआईसी ब्रांच लूटकांड था, जिसने पूरे जिले को हिलाकर रख दिया था। एक सितंबर 2008 को दोपहर के समय जब लोग अपने काम में व्यस्त थे, तभी असलहों से लैस बदमाशों का एक गिरोह एलआईसी ब्रांच में घुस गया था। उन्होंने शाखा के गेट पर तैनात सुरक्षागार्ड सत्य प्रकाश तिवारी को धमकाकर उसकी बंदूक छीन ली और भीतर मौजूद कर्मचारियों को बंधक बनाकर करीब 13 लाख 15 हजार रुपये लूट लिए। घटना के बाद तत्कालीन शाखा प्रबंधक ईश्वर देव सिंह ने केस दर्ज कराया था, जिसमें दुर्गेश सिंह का भी नाम सामने आया था। पुलिस ने उस समय उसे मुख्य आरोपियों में शामिल माना था। इसी मामले में बीते महीने यानी अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में अदालत में सुनवाई पूरी हुई थी और 29 अक्टूबर को आरोप तय कर दिए गए थे। आगामी 5 नवम्बर को अदालत में फैसला सुनाया जाना था। सूत्रों के अनुसार, दुर्गेश पिछले कई महीनों से फरार था और अदालत में पेशी से पहले ही वह दो दिन पहले गांव लौटा था।

दो दिन पहले लौटा था गांव, सजा के डर से था परेशान

गांववालों और परिजनों के मुताबिक, दुर्गेश पिछले कई वर्षों से अपने घर से दूर रह रहा था। उसके खिलाफ लगातार आपराधिक मामलों में कार्रवाई होती रही, जिसके चलते परिवार ने भी उससे दूरी बना ली थी। वह गलिबहा गांव में ही अपने माता-पिता से अलग दो कमरों के मकान में अकेले रहता था। उसकी शादी नहीं हुई थी और परिवार में तीन भाइयों में वह दूसरे नंबर पर था। ग्रामीणों ने बताया कि हाल के दिनों में वह बेहद चुप और तनावग्रस्त दिखाई देता था। बताया जा रहा है कि कोर्ट के फैसले की तारीख नजदीक आने और सजा के भय से वह मानसिक रूप से परेशान था। शनिवार सुबह जब गोली चलने की आवाज आई, तो पड़ोसी सबसे पहले मौके पर पहुंचे, मगर अंदर से दरवाजा बंद था। पुलिस के आने के बाद ही दरवाजा तोड़कर शव को बाहर निकाला गया। जांच अधिकारियों का कहना है कि प्रथम दृष्टया यह आत्महत्या का मामला प्रतीत हो रहा है, लेकिन फॉरेंसिक रिपोर्ट और पोस्टमॉर्टम के बाद ही स्थिति पूरी तरह स्पष्ट होगी। वहीं, परिवार के लोग घटना पर चुप्पी साधे हुए हैं और किसी तरह की टिप्पणी करने से बच रहे हैं। पुलिस अधिकारी पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए उस हथियार की भी जांच कर रहे हैं जिससे गोली चलाई गई थी। घटना के बाद गांव में मातम का माहौल है, जबकि इलाके में इस चर्चा ने फिर से पुराने अपराध मामलों की यादें ताजा कर दी हैं। फिलहाल पुलिस ने मामले की विस्तृत जांच शुरू कर दी है ताकि यह पता लगाया जा सके कि दुर्गेश ने वास्तव में आत्महत्या की या इसके पीछे कोई अन्य वजह छिपी है।

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