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Uttar Pradesh News : शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का बयान, महादेव को ‘I Love’ कहना असम्मानजनक, गौमाता की रक्षा कर्तव्य है, राजनीतिक एजेंडा नहीं

UP news in hindi : वाराणसी दौरे पर बोले जगद्गुरु स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद – भारतीय संस्कृति, स्वदेशी विचार और सनातन मूल्यों की पुनर्स्थापना ही राष्ट्र की असली पहचान

Shankaracharya Avimukteshwaranand addresses devotees in Varanasi, speaks on Sanatan culture and Swadeshi values | UP News

वाराणसी में एक दिवसीय प्रवास के दौरान जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने भारतीय संस्कृति, आस्था और सनातन मूल्यों की रक्षा पर अपने विचार व्यक्त किए। मठ में लक्ष्मी-गणेश की पूजा-अर्चना करने के बाद उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा उसकी संस्कृति और अध्यात्म में बसती है। सत्ता परिवर्तन या राजनीति से बड़ा विषय यह है कि हम अपने पारंपरिक मूल्यों को किस हद तक सहेज पा रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि गौ माता की रक्षा, सनातन मूल्यों की पुनर्स्थापना और धर्म-संरक्षण कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं बल्कि हर भारतीय का नैतिक और सांस्कृतिक कर्तव्य है। शंकराचार्य ने कहा कि आज की पीढ़ी को यह समझना होगा कि हमारी पहचान पश्चिमी आदर्शों से नहीं, बल्कि भारत की अपनी सभ्यता और संस्कृति से है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की जड़ों में बसे इस अध्यात्म को संजोए रखना ही राष्ट्र के स्थायी भविष्य की कुंजी है।

‘I Love Mahadev’ पर आपत्ति, धार्मिक मर्यादा का सम्मान करने की अपील

अपने संबोधन में शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने हाल के दिनों में धार्मिक प्रतीकों और देवी-देवताओं के नामों के दुरुपयोग पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि भगवान महादेव को ‘I Love’ कहकर संबोधित करना उनकी दिव्यता और गरिमा का अपमान है, क्योंकि भगवान आराधना के विषय हैं, आकर्षण के नहीं। शंकराचार्य के अनुसार, धार्मिक आस्थाओं को चुनावी मंचों या प्रचार के माध्यम से साधारण वाक्यांशों में प्रस्तुत करना भारतीय संस्कृति की मर्यादा के विपरीत है। उन्होंने इसे एक खतरनाक प्रवृत्ति बताया और चुनाव आयोग से ऐसे बयानों पर सख्त कार्रवाई की मांग की। उनका कहना था कि धर्म का उपयोग राजनीतिक भाषणों या लोकप्रिय नारों के रूप में करना लोकतंत्र के लिए भी हानिकारक है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जब समाज के आस्था प्रतीक प्रचार का साधन बन जाते हैं, तो यह न केवल धर्म के प्रति असम्मान है बल्कि संस्कृति की जड़ों को भी कमजोर करता है। इस अवसर पर उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे धार्मिक प्रतीकों के साथ आदर और श्रद्धा का व्यवहार करें तथा अपनी संस्कृति की मर्यादा का पालन करें।

स्वदेशी विचार और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में संदेश

अपने वक्तव्य के तीसरे हिस्से में शंकराचार्य ने स्वदेशी विचार और आत्मनिर्भरता को लेकर नेताओं और नागरिकों दोनों से आत्ममंथन करने की अपील की। उन्होंने कहा कि यदि भारत के प्रधानमंत्री काशी के विकास के लिए जापान के क्योटो को मॉडल बनाते हैं, तो यह इस बात का संकेत है कि विदेशी सोच अभी भी हमारे नेतृत्व पर हावी है। उन्होंने कहा, “जब नेता ही स्वदेशी नहीं हैं, तो जनता से स्वदेशी की अपेक्षा कैसे की जा सकती है?” शंकराचार्य के अनुसार, भारत को अपनी जड़ों की ओर लौटना होगा और हर भारतीय को अपने जीवन में स्वदेशी उत्पादों और विचारों को अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि विदेशी आक्रमणों और पाश्चात्य प्रभावों ने सदियों तक भारत की आत्मा को आहत किया है, लेकिन अब समय है कि देश अपनी मौलिक पहचान को पुनर्जीवित करे। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि वे ‘भारत को भारत ही रहने दें’, उसे किसी और संस्कृति की छाया बनने से बचाएं। अपने प्रवचन के अंत में उन्होंने यह भी कहा कि सनातन संस्कृति केवल धार्मिक आस्था नहीं बल्कि जीवन पद्धति है, जो हमें आत्मनिर्भरता, करुणा और सामंजस्य का संदेश देती है। उन्होंने इस अवसर पर गौ माता की महत्ता पर आधारित एक पुस्तक का विमोचन भी किया और कहा कि जब तक भारतीय समाज अपनी आस्था और स्वदेशी मूल्यों को नहीं अपनाएगा, तब तक पूर्ण स्वतंत्रता और आत्मबल का अर्थ अधूरा रहेगा।

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