वृंदावन में भावुक हुए संत प्रेमानंद महाराज, बोले – अब जाना तय है
वृंदावन के केली कुंज आश्रम में रह रहे प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज इन दिनों गंभीर रूप से अस्वस्थ हैं। बुधवार को जब यूट्यूबर एल्विश यादव उनसे मिलने पहुंचे, तब बातचीत के दौरान प्रेमानंद जी भावुक हो उठे।
उन्होंने एल्विश के स्वास्थ्य से जुड़े सवाल पर कहा, “मेरा स्वास्थ्य क्या ठीक होना है? मेरी तो दोनों किडनी फेल हैं। भगवान की कृपा है कि आपसे बात कर पा रहा हूं, लेकिन अब जाना तय है। आज नहीं तो कल जाना है।” उनका यह बयान सुनकर उपस्थित सभी अनुयायी भावुक हो गए।
बताया जा रहा है कि संत प्रेमानंद महाराज की डायलिसिस अब सप्ताह में पांच दिन हो रही है, जबकि कुछ समय पहले तक यह सात दिन करनी पड़ती थी। स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए उनकी रोजाना होने वाली 2 किलोमीटर की पदयात्रा भी अनिश्चितकाल के लिए रोक दी गई है।
वृंदावन में उनके अनुयायियों और शिष्यों का तांता लगा रहता है, जो उनसे मिलकर स्वास्थ्य की जानकारी लेते हैं और उनके लिए प्रार्थना करते हैं। संत प्रेमानंद महाराज का कहना है कि शरीर नश्वर है, लेकिन राधा नाम अमर रहेगा और यही नाम सबका कल्याण करेगा।
एल्विश यादव से संवाद में दी जीवन की सीख
संत प्रेमानंद महाराज और एल्विश यादव के बीच हुई बातचीत का एक वीडियो सोशल मीडिया पर चर्चा में है। इसमें महाराज ने कहा, “प्रेमानंद तो चला जाएगा, लेकिन राधा नाम सदा रहेगा। राधा नाम ही जीवन का सार है, वही सबका मंगल करेगा।”
उन्होंने कहा कि भगवान की इच्छा से कोई भी चमत्कार संभव है, पर जब दोनों किडनी खराब हो चुकी हों तो शरीर से उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। उन्होंने एल्विश से पूछा कि क्या तुम भगवान का नाम जपते हो? इस पर एल्विश ने मुस्कुराते हुए ‘नहीं’ कहा। तब संत ने समझाया, “तुम्हारी सफलता तुम्हारे पिछले जन्म के कर्मों का परिणाम है, लेकिन आज के कर्म भी उतने ही जरूरी हैं।
भगवान का नाम लोगे तो जीवन में स्थिरता आएगी।” संत ने एल्विश को प्रतिदिन एक अंगूठी पहनने और दस हजार बार ‘राधा’ नाम जपने की सलाह दी। एल्विश ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे रोजाना राधा नाम का जाप करेंगे। प्रेमानंद महाराज ने उन्हें यह भी कहा कि जो व्यक्ति लाखों लोगों को प्रभावित करता है, उसकी हर क्रिया समाज में उदाहरण बनती है।
उन्होंने कहा, “अगर तुम हाथ में शराब लेकर वीडियो बनाओगे, तो लोग वही सीखेंगे; लेकिन अगर तुम भक्ति करोगे, तो वही लोग भगवान का नाम लेना शुरू करेंगे।” एल्विश ने इस पर सहमति जताई और कहा कि वे अब अपनी छवि और कर्मों को सुधारने पर ध्यान देंगे ताकि उनके प्रशंसक भी सही दिशा में प्रेरित हों।
प्रेमानंद महाराज का जीवन: साधना, त्याग और अध्यात्म का उदाहरण
प्रेमानंद महाराज का जीवन आध्यात्मिक तपस्या और त्याग का प्रतीक है। उनका जन्म कानपुर के नरवल क्षेत्र के अखरी गांव में हुआ था। बचपन में उनका नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था। उनके पिता शंभू नारायण पांडे पुरोहित थे और घर का वातावरण धार्मिक था। परिवार की हर पीढ़ी में कोई न कोई साधु-संत हुआ, जिससे बालक अनिरुद्ध का मन भी बचपन से अध्यात्म की ओर झुक गया।
एक बार उन्होंने अपने साथियों के साथ शिव मंदिर के लिए चबूतरा बनाना शुरू किया, लेकिन जब कुछ लोगों ने उसे रोक दिया तो वे निराश होकर घर छोड़कर चले गए। उनकी खोज कई दिनों तक चली और अंततः पता चला कि वे सरसौल के नंदेश्वर मंदिर में रह रहे हैं। परिवार उन्हें वापस घर लाना चाहता था, पर उन्होंने लौटा आने से इंकार कर दिया। इसके बाद उन्होंने पूरी तरह सांसारिक मोह छोड़ दिया और संन्यासी जीवन अपना लिया। नंदेश्वर मंदिर से वे महाराजपुर और फिर कानपुर के बिठूर में रहे। बाद में काशी पहुंचे, जहां उन्होंने गुरु गौरी शरण जी महाराज से दीक्षा ली।
वाराणसी में उन्होंने करीब पंद्रह महीने बिताए, जहां वे रोजाना गंगा स्नान करते और भगवान शिव का पूजन करते थे। भोजन के लिए वे भिक्षा नहीं मांगते थे; यदि कुछ समय में अन्न नहीं मिलता, तो केवल गंगाजल पीकर दिन गुजारते। उन्होंने कठिन साधना, संयम और भक्ति से अपना जीवन समर्पित कर दिया। आज प्रेमानंद महाराज देश के करोड़ों लोगों के लिए श्रद्धा और प्रेरणा के स्रोत हैं। गंभीर स्वास्थ्य स्थिति के बावजूद उनका विश्वास अडिग है- “प्रेमानंद जाएगा, पर राधा नाम सदा रहेगा।” यही संदेश उनका जीवन और तपस्या आज भी भक्तों को दे रही है।