प्रयागराज जिले के शांतिपुरम क्षेत्र में 9 वर्षीय आराध्या पांडेय के साथ हुई चिकित्सीय लापरवाही ने स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अगस्त महीने में जेपी मेमोरियल अस्पताल में उसका अपेंडिक्स ऑपरेशन किया गया था, लेकिन डॉक्टरों की लापरवाही के चलते उसके पेट में धागा और कुछ ऊतक रह गए, जिससे संक्रमण फैल गया और उसकी हालत खराब हो गई। बच्ची को लगातार तेज दर्द और बुखार की शिकायत होने पर जब दोबारा जांच कराई गई तो यह खुलासा हुआ कि ऑपरेशन अधूरा रह गया था। चिकित्सकीय गलती के चलते नाबालिग बच्ची को न केवल दोबारा सर्जरी करानी पड़ी बल्कि कई दिनों तक दर्द और संक्रमण झेलना पड़ा। इस मामले ने तब तूल पकड़ा जब आराध्या ने स्वयं डिप्टी सीएम बृजेश पाठक से मिलकर न्याय की गुहार लगाई। उसके साहस और पिता की पहल के बाद पूरा मामला प्रशासनिक स्तर तक पहुंचा और स्वास्थ्य विभाग ने तुरंत जांच कमेटी गठित की।
शिकायत के बाद हुई जांच, डॉक्टरों की गलती साबित
बच्ची के पिता शिरीष चंद्र पांडेय ने बताया कि 30 अगस्त को उन्होंने आराध्या को पेट दर्द और बुखार की शिकायत पर जेपी मेमोरियल अस्पताल में भर्ती कराया था। डॉक्टरों ने अपेंडिक्स निकालने का ऑपरेशन किया, लेकिन कुछ ही दिनों में उसकी सर्जरी लाइन से मवाद निकलने लगा। 6 सितंबर को स्थिति बिगड़ने पर उसे ऊषा अस्पताल में सर्जन डॉ. शरद कुमार साहू को दिखाया गया, जहां दोबारा ऑपरेशन करने पर पेट में छूटा धागा और मृत ऊतक मिले। इसी दौरान 5 अक्टूबर को जब डिप्टी सीएम बृजेश पाठक प्रयागराज आए थे, तो आराध्या अपने पिता की गोद में बैठकर उनसे सीधे जाकर मिली और हाथ जोड़कर अपनी पीड़ा बताई। डिप्टी सीएम ने तत्काल प्रभारी सीएमओ को जांच के आदेश दिए और तीन सदस्यीय समिति गठित की। इस कमेटी में एसीएमओ डॉ. आरसी पांडेय, डिप्टी सीएमओ डॉ. प्रमोद कुमार और तेज बहादुर सप्रू अस्पताल के सर्जन डॉ. अजय द्विवेदी शामिल थे। समिति ने शिकायतकर्ता, अस्पताल प्रबंधन और संबंधित चिकित्सकों से पूछताछ की। जांच में यह प्रमाणित हुआ कि सर्जरी के दौरान साफ तौर पर लापरवाही हुई थी। रिपोर्ट में लिखा गया कि यदि सर्जन और टीम सावधानी बरतती तो बच्ची को इस स्थिति से नहीं गुजरना पड़ता।
अस्पताल पर कार्रवाई और स्वास्थ्य विभाग की सख्ती
जांच रिपोर्ट आने के बाद प्रयागराज के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. एके तिवारी ने जेपी मेमोरियल अस्पताल का पंजीकरण निलंबित कर दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि किसी भी चिकित्सक को मरीज के जीवन से खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। रिपोर्ट में दोषी पाए गए डॉक्टरों के खिलाफ आगे की अनुशासनात्मक कार्रवाई की प्रक्रिया भी शुरू की जा रही है। डॉ. तिवारी ने बताया कि जांच में यह साफ हुआ कि ऑपरेशन के दौरान मरीज के पेट में धागा और ऊतक रह जाने की वजह से गंभीर संक्रमण हुआ, जो चिकित्सकीय लापरवाही का गंभीर उदाहरण है। उन्होंने कहा कि भविष्य में ऐसे मामलों पर शून्य सहिष्णुता की नीति अपनाई जाएगी ताकि किसी और मरीज को इस तरह की पीड़ा न झेलनी पड़े। वहीं आराध्या के परिवार ने सरकार और स्वास्थ्य मंत्री का आभार व्यक्त किया कि उनकी शिकायत पर तत्काल कार्रवाई हुई। इस घटना ने जहां चिकित्सा प्रणाली की कमियों को उजागर किया है, वहीं यह भी दिखाया कि आम नागरिक की आवाज अगर दृढ़ता से उठे तो न्याय मिल सकता है। फिलहाल जेपी मेमोरियल अस्पताल बंद है और मामला निगरानी में है। स्वास्थ्य विभाग ने जिले के सभी निजी अस्पतालों को निर्देश जारी किए हैं कि वे उपचार के दौरान पूरी सावधानी बरतें, वरना कठोर दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। यह मामला स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता और जिम्मेदारी की आवश्यकता पर एक बड़ा संदेश देता है कि हर नागरिक की सुरक्षा सर्वोपरि है और चिकित्सा क्षेत्र में किसी भी प्रकार की लापरवाही अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी।




