उत्तर प्रदेश की राजनीति में बसपा सुप्रीमो मायावती एक बार फिर सक्रिय मोड में दिखाई दे रही हैं। उन्होंने शनिवार को राजधानी लखनऊ में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) नेताओं और पदाधिकारियों के साथ बड़ी बैठक की, जिसमें उन्होंने संगठन के विस्तार, सामाजिक समीकरण और आगामी चुनावी रणनीति पर विस्तार से चर्चा की। मायावती ने इस बैठक में साफ कहा कि “अच्छे दिन हम लाएंगे, लेकिन इसके लिए सत्ता की चाबी हमारे हाथों में आनी जरूरी है।” उन्होंने सपा और भाजपा पर तीखा हमला बोलते हुए दोनों दलों की विचारधारा को जातिवादी बताया और कहा कि बसपा ही वह ताकत है जो हर वर्ग को समान अवसर और सम्मान दे सकती है। बैठक में करीब 250 ओबीसी पदाधिकारी मौजूद रहे, हालांकि पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्र और बसपा के युवा चेहरे आकाश आनंद बिहार चुनाव व्यस्तता के कारण शामिल नहीं हो सके। बैठक के दौरान मायावती ने अपने संबोधन में बताया कि ओबीसी समाज बसपा की रीढ़ है और अब समय आ गया है कि यह समाज एकजुट होकर बसपा की सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाए। उन्होंने कहा कि पार्टी अब हर बूथ तक पहुंचकर अपने मतदाताओं की सूची का सत्यापन करेगी ताकि कोई भी बसपा समर्थक मतदाता सूची से बाहर न रह जाए। उन्होंने चुनाव आयोग की गाइडलाइन के पालन पर भी जोर देते हुए निर्देश दिए कि बसपा कार्यकर्ता प्रत्येक स्तर पर संगठन को मजबूत करें और जनसंपर्क अभियान को तेज करें।
सवर्णों को लेकर मायावती का नया संदेश, भाईचारा संगठन की नहीं जरूरत
मायावती ने अपने संबोधन में सवर्ण समाज को लेकर भी महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि “अपर कास्ट यानी सवर्ण अब राजनीतिक रूप से परिपक्व हो चुका है। उन्हें बसपा से जोड़ने के लिए किसी अलग भाईचारा संगठन की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह समाज समझ चुका है कि उसकी सुरक्षा और सम्मान बसपा में ही निहित है।” मायावती ने यह स्पष्ट किया कि बसपा की नीति सभी वर्गों के कल्याण की है, चाहे वह दलित, पिछड़ा या सवर्ण हो। उन्होंने कहा कि “जब सत्ता की चाबी बसपा के हाथ में होती है, तभी हर समाज के जीवन में सुधार आता है।” इस मौके पर उन्होंने बामसेफ संगठन को लेकर फैलाई जा रही भ्रांतियों पर भी विराम लगाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि “बामसेफ कोई राजनीतिक संगठन नहीं, बल्कि बहुजन समाज के शिक्षित कर्मचारियों का सामाजिक संगठन है, जिसकी नींव कांशीराम जी ने रखी थी।” मायावती ने अपने कार्यकर्ताओं को यह जिम्मेदारी सौंपी कि वे ओबीसी समाज में जाकर उन्हें जागरूक करें और यह बताएं कि बसपा की सरकारों में पिछड़े वर्गों को कितना सम्मान मिला। उन्होंने यह भी कहा कि बसपा की चारों सरकारों में ओबीसी समाज को न सिर्फ राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिला, बल्कि रोजगार और शिक्षा में भी उन्हें वास्तविक लाभ प्राप्त हुआ। वहीं दूसरी ओर, उन्होंने विरोधी दलों पर आरोप लगाया कि वे केवल वोट की राजनीति करते हैं, लेकिन कभी भी समाज के उत्थान के लिए ठोस कदम नहीं उठाते।
2027 की तैयारी में बसपा का DMP फॉर्मूला, सपा के PDA की काट
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मायावती की हालिया सक्रियता का मकसद 2027 विधानसभा चुनाव से पहले बसपा की सोशल इंजीनियरिंग को नई धार देना है। 9 अक्टूबर से लेकर 1 नवंबर तक बसपा सुप्रीमो लगातार पांच बड़ी बैठकों का आयोजन कर चुकी हैं-दलित, मुस्लिम और ओबीसी भाईचारा संगठनों के साथ। विशेषज्ञों का कहना है कि यह क्रम सपा के PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) समीकरण के जवाब में बसपा का DMP (दलित-मुस्लिम-पिछड़ा) फॉर्मूला है। लखनऊ की बैठक में मायावती ने यह संकेत दिया कि अब बसपा का ध्यान 30 प्रतिशत अति पिछड़े वर्ग को साधने पर रहेगा, जो अब तक किसी एक पार्टी के साथ स्थायी रूप से नहीं जुड़ सका है। उन्होंने यह भी कहा कि बसपा ने हमेशा पिछड़े समाज के उन वर्गों को प्रतिनिधित्व दिया जिन्हें पहले कभी राजनीति में स्थान नहीं मिला था। 1989 में मंडल कमीशन लागू करने की मांग बसपा के दबाव में ही बीपी सिंह सरकार ने मानी थी, यह बात मायावती ने बैठक में दोहराई। उन्होंने कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे अपने क्षेत्रों में छोटी-छोटी बैठकें कर जनता को बताएं कि बसपा ने पिछड़े वर्ग के लिए क्या-क्या कार्य किए हैं। वहीं, बसपा प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने कहा कि “बहनजी का लक्ष्य अब हर जिले में ओबीसी भाईचारा कमेटियों को सक्रिय करना है ताकि संगठन की जड़ें नीचे तक मजबूत हों।” राजनीतिक पंडितों का मानना है कि मायावती की यह रणनीति सपा और भाजपा दोनों के लिए चुनौती बन सकती है, क्योंकि ओबीसी वोट बैंक ही यूपी की सत्ता की कुंजी माना जाता है। बसपा अब यह संदेश देने में जुटी है कि “जो समाज बसपा को वोट देगा, वही अपने अच्छे दिन खुद लाएगा।”




