मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीन चंद्र रामगुलाम की भारत यात्रा ने एक बार फिर गोरखपुर और इस छोटे से गांव बसावनपुर को सुर्खियों में ला दिया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गृह जनपद होने के कारण गोरखपुर का नाम पहले से ही देशभर में चर्चित है, लेकिन अब यह स्थान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बना रहा है। नवीन चंद्र रामगुलाम की वंशावली सीधे बसावनपुर गांव से जुड़ती है, जहां से उनके पूर्वज किसी जमाने में जीविका की तलाश में मॉरीशस गए थे। ऐतिहासिक दस्तावेजों और वरिष्ठ पत्रकारों की रिपोर्टों से यह तथ्य प्रमाणित होता है कि बसावनपुर निवासी सुखराम त्रिपाठी अंग्रेजी हुकूमत के दौर में गिरमिटिया मजदूर बनकर मॉरीशस पहुंचे थे और वहीं बस गए। इस प्रवास ने न केवल उनके जीवन की दिशा बदली, बल्कि आगे चलकर उनके वंशज मॉरीशस की राजनीति और सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे। यही कारण है कि आज भी इस गांव के लोग गर्व से इस रिश्ते को याद करते हैं और इसे अपनी सांस्कृतिक धरोहर मानते हैं।
गिरमिटिया मजदूरी से राष्ट्रपिता बनने तक का संघर्ष
सुखराम त्रिपाठी के पुत्र डॉ. शिवसागर रामगुलाम मॉरीशस के पहले प्रधानमंत्री बने और उन्हें वहां का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है। उनका सफर बेहद संघर्षपूर्ण रहा। अजनबी भूमि, भाषा की दीवारें और सामाजिक कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने न केवल खुद को स्थापित किया बल्कि पूरे राष्ट्र की दिशा बदल दी। उनकी राजनीति ने मॉरीशस को स्वतंत्रता दिलाई और आधुनिक पहचान बनाने में मदद की। बसावनपुर गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि सुखराम के मॉरीशस जाने के पीछे भूमि विवाद और राप्ती नदी की बाढ़ जैसी परिस्थितियां प्रमुख कारण थीं। हर साल नदी की तबाही से गांव के लोग अपनी खेती-किसानी खो बैठते थे और जीवन यापन संकट में पड़ जाता था। इन्हीं मुश्किल हालातों में सुखराम ने विदेश जाने का जोखिम उठाया। स्थानीय लोग आज भी एक रोचक कहानी बताते हैं कि विवाद के दौरान गांव की एक महिला ने उन्हें अपमानित किया था, जिसके बाद वे गांव छोड़कर मॉरीशस चले गए। चाहे यह कथा पूरी तरह सत्य न हो, पर इतना जरूर है कि पलायन के पीछे सामाजिक और आर्थिक दबाव अहम कारण थे। इस प्रवास का ही परिणाम था कि शिवसागर रामगुलाम जैसे नेता का जन्म हुआ जिन्होंने न केवल अपने देश को स्वतंत्र कराया बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव भी रखी।
आज का बसावनपुर और रामगुलाम परिवार की विरासत
बसावनपुर गांव आज भी अपनी ऐतिहासिक पहचान और रामगुलाम परिवार से जुड़े रिश्ते पर गर्व करता है। गांव सरयूपारी ब्राह्मण समाज का है और यहां के अधिकतर लोग अपने नाम के साथ ‘राम’ उपनाम जोड़ते हैं। शिवसागर रामगुलाम ने भी इस परंपरा को कायम रखा, हालांकि ‘गुलाम’ शब्द उनके उपनाम में परिस्थितियों के कारण जुड़ गया। समय-समय पर इस रिश्ते को प्रमाणित करने वाले कई दस्तावेज और यात्राएं सामने आती रही हैं। 1977 में मशहूर पत्रिका ‘दिनमान’ ने इस विषय पर रिपोर्ट प्रकाशित की थी और उसी वर्ष मॉरीशस की साध्वी पतित पावनी ने बसावनपुर का दौरा भी किया था। उन्होंने गांववासियों से वादा किया था कि वे मॉरीशस जाकर डॉ. शिवसागर रामगुलाम तक उनका संदेश पहुंचाएंगी और उन्हें पितृभूमि आने के लिए प्रेरित करेंगी। हालांकि शिवसागर स्वयं अपने पैतृक गांव नहीं आ पाए, लेकिन उनकी स्मृतियां और योगदान बसावनपुर के लोगों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। वर्तमान प्रधानमंत्री नवीन चंद्र रामगुलाम ने भी अपने राजनीतिक जीवन में कई बार इस रिश्ते का उल्लेख किया है। तीन बार मॉरीशस के प्रधानमंत्री रह चुके नवीन चंद्र रामगुलाम आज भी अपने भारतीय मूल को सम्मान देते हैं। गोरखपुर का यह छोटा सा गांव अब एक वैश्विक इतिहास से जुड़ा प्रतीक है, जो यह साबित करता है कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, मेहनत और संघर्ष इंसान को शिखर तक पहुंचा सकते हैं।