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Uttar Pradesh News : मथुरा में गोवर्धन पूजा, 21 किमी परिक्रमा पर भक्तों का सैलाब, विदेशी महिलाएं ढोल‑मंजीरे पर नाचीं

UP news in hindi : तीन लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने भाग लिया; गिरिराज का पंचामृत अभिषेक, 1008 व्यंजनों का अन्नकूट और भक्तिमय उत्सव का भव्य मंजर

Devotees performing Govardhan parikrama with foreign visitors dancing on drums in Mathura | UP News

गोवर्धन पूजा के प्रमुख दिन मथुरा-वृंदावन क्षेत्र श्रद्धालुओं के लिए भक्ति और उल्लास का केन्द्र बन गया। इस वर्ष भी परंपरा के अनुरूप श्रद्धालु गिरिराज की 21 किमी लंबी परिक्रमा में जुटे हुए थे। सुबह से ही दूर-दूर से आए लोगों का सैलाब दिखा और आधिकारिक आयोजनों के अनुसार अब तक तीन लाख से अधिक भक्तों ने परिक्रमा पूरी की। राधे‑राधे के जयघोष, भजन‑कीर्तन और हर‑हर‑गोवर्धन के उद्घोष परिक्रमा मार्ग पर गुंज रहे थे। देश के अलग‑अलग राज्यों के अलावा अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों से भी श्रद्धालु पधारे, जिन्होंने स्थानीय रीति‑रिवाजों में भाग लेकर कार्यक्रम को अंतरराष्ट्रीय रंग दिया। परिक्रमा के दौरान भक्तों ने पारंपरिक भोग सिर पर रखकर गिरिराज को अर्पित किए और कई स्थानों पर सामूहिक आरती तथा दुग्धाभिषेक के दृश्य देखने को मिले। आयोजकों और पुजारियों ने बताया कि परिक्रमा के दौरान सुरक्षा और व्यवस्थाओं का विशेष ध्यान रखा गया; मार्ग पर पानी, प्राथमिक चिकित्सा और कल्प‑बिंदु स्थापित किए गए थे ताकि बड़ी संख्या में आए श्रद्धालुओं के लिए सुविधा बनी रहे।

पूजा विधि, अन्नकूट और अनुष्ठानिक कार्यक्रम

गोवर्धन परिक्रमा में केवल चलना ही नहीं, बल्कि पर्वत की विशेष पूजा‑विधियों का भी आयोजन हुआ। सुबह‑सुबह मुकुट मुखारबिंद और जतीपुरा जैसे प्रमुख मंदिरों में गिरिराज का पंचामृत तथा दुग्धाभिषेक संपन्न हुआ, जिसके बाद मंदिरों में भव्य आरती आयोजित की गई। इस वर्ष इस्कॉन वृंदावन में सूजी, मेवा और फलों से बनाए गए गिरिराज की प्रतिमा का निर्माण और पूजन भी विशेष आकर्षण था – बताया गया कि इसमें लगभग 1000 किलो सूजी तथा मेवा का उपयोग किया गया। अन्नकूट के रूप में 1008 व्यंजनों या कई स्थानों पर 56, 108 व 1008 व्यंजनों का भोग चढ़ाया गया, जो समृद्धि और कृतज्ञता का प्रतीक माना जाता है। स्थानीय समुदायों‑जैसे अहीर, पंडा समाज और अन्य ब्रजवासी संस्थाओं ने सामूहिक रूप से अन्नकूट और शोभायात्राओं का आयोजन किया। परम्परागत रीति के अनुसार कई घरों में गाय के गोबर से छोटे‑छोटे गिरिराज बनाकर उन्हें विशेष पूजा अर्चना दी गई, वहीं कुछ जगहों पर पर्वत की तलहटी में सामूहिक गोवर्धन पूजा कर अन्नवितरण भी किया गया। पुजारीयों और पंडितों ने गर्ग संहिता तथा लोककथाओं के संदर्भ में गोवर्धन पूजा का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व समझाया – बताया गया कि यह परंपरा कृष्ण‑लीला से जुड़ी हुई है और आज भी भक्तों के बीच गहन आस्था बनाए रखती है।

विविधता, विदेशी भागीदारी और स्थानीय सामाजिक प्रभाव

इस वर्ष गोवर्धन परिक्रमा में जो बात सर्वाधिक ध्यानाकर्षक रही, वह थी धार्मिक उत्सव की विविधता और अंतरराष्ट्रीय भाव। अमेरिका, जर्मनी सहित अनेक देशों से आये श्रद्धालु न केवल परिक्रमा में शामिल हुए, बल्कि कई जगहों पर उन्होंने सार्वजनिक रूप से गोवर्धन का दुग्धाभिषेक कर भक्ति प्रकट की। कुछ विदेशी महिलाएं ढोल‑नगाड़े और मंजीरों पर नाचते हुए नजर आईं, जिससे उत्सव का भाव और रंगीन बन गया तथा स्थानीय लोगों में भी उत्साह दिखा। परिक्रमा मार्ग पर छोटे‑बड़े व्यापारियों को भी राहत मिली क्योंकि भक्तों के आने से स्थानीय अर्थव्यवस्था में कुछ गतिविधि बढ़ी; वहीं वहीं आयोजनों के कारण यातायात और सार्वजनिक व्यवस्थाओं पर दबाव भी पड़ा, इसलिए प्रशासन ने भीड़ नियंत्रण और सुरक्षा के ठोस इंतजाम किए। धार्मिक व सांस्कृतिक पाकृर्याओं के साथ‑साथ ज्ञानवर्धक सत्रों और मंदिरों द्वारा तुलसी, वेदाहमेतं जैसे मंत्रों के पाठ से धार्मिक शिक्षा का भी प्रसार हुआ। आयोजकों ने यह भी कहा कि गोवर्धन पूजा न केवल आध्यात्मिक बल्कि सामाजिक समरसता और परोपकार का संदेश देती है – अन्नकूट के माध्यम से गरीबों और यात्रियों का भोजन कराना, सामुदायिक सेवा व स्थानीय परंपराओं का संरक्षण इसका अभिन्न हिस्सा है। कुल मिलाकर मथुरा‑वृंदावन में आज का दिन श्रद्धा, भक्ति और सामुदायिक सहयोग का प्रतिरूप रहा, जिसने देश-विदेश से आये सैकड़ों हजारों लोगों के दिलों में ब्रज की परंपरा को और सुदृढ़ किया।

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