लखनऊ में हलाल सर्टिफिकेशन के खिलाफ देश का पहला मामला नवंबर 2023 में दर्ज किया गया था। हजरतगंज थाने में दर्ज इस एफआईआर के अनुसार मोतीझील कॉलोनी के शैलेंद्र कुमार शर्मा ने आरोप लगाया कि चेन्नई, दिल्ली और मुंबई की कई हलाल कंपनियां धार्मिक भावनाओं का फायदा उठाकर “हलाल सर्टिफिकेट” बेच रही थीं। शिकायत में बताया गया कि ये संस्थाएं बिना किसी सरकारी मान्यता और परीक्षण के खाद्य, साबुन, तेल, टूथपेस्ट, कपड़े और अन्य उत्पादों पर हलाल प्रमाणन जारी कर रही थीं। प्रारंभिक जांच में यह सामने आया कि चार आरोपी मौलाना हबीब यूसुफ पटेल, मौलाना मुइदशिर सपाडिया, मोहम्मद ताहिर जाकिर हुसैन और मोहम्मद अनवर, हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया से जुड़े थे और यह गिरोह प्रति वर्ष बड़ी रकम वसूल रहा था। STF ने 12 फरवरी 2024 को इन चारों को मुंबई से गिरफ्तार किया था, हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महीने के भीतर उन्हें जमानत दे दी।
फंडिंग और अवैध सर्टिफिकेशन की जांच
एसटीएफ की रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि बिना किसी जांच या मानक प्रक्रिया के हलाल सर्टिफिकेट जारी किए गए थे। FSSAI पहले ही स्पष्ट कर चुका था कि किसी भी संस्था को भारत में हलाल सर्टिफिकेशन जारी करने का अधिकार नहीं है। प्रारंभिक जांच में यह भी संदेह व्यक्त किया गया कि इस अवैध व्यवसाय से जुटाई गई रकम चरमपंथी गतिविधियों और देशविरोधी संगठनों को वित्तीय सहायता देने में इस्तेमाल हो रही थी। वादी शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि करोड़ों रुपए धार्मिक भावनाओं का लाभ उठाकर इकठ्ठा किए गए और उनका उपयोग आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बनने वाली गतिविधियों में किया गया। STF अब तक कई बैंक खातों की लेन-देन रिपोर्ट हासिल कर चुकी है और मनी ट्रेल की गहन जांच जारी है।
CM योगी का रुख और बाजार में स्थिति
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में कहा कि उत्तर प्रदेश में हलाल सर्टिफिकेशन पर पूरी तरह रोक लगाई जा चुकी है और कोई भी संस्था अब अपने उत्पाद पर हलाल प्रमाणन नहीं दे सकती। FSDA की टीमें मल्टी-ब्रांड स्टोर्स, सुपरमार्केट और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर जाकर ऐसे उत्पादों की जांच कर रही हैं। प्रारंभिक निरीक्षण में पाया गया कि अभी भी कुछ पुराने स्टॉक के रूप में हलाल सर्टिफाइड उत्पाद बिक्री में मौजूद हैं। राज्यसभा सांसद और पूर्व डीजीपी बृजलाल ने कहा कि यह प्रतिबंध आतंकवाद और चरमपंथी गतिविधियों के लिए आर्थिक रास्ते बंद करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। सुप्रीम कोर्ट में इस विवाद पर लंबित याचिकाओं के चलते मामले की अगली सुनवाई 2025 के अंत तक हो सकती है। इस पूरी जांच से यह स्पष्ट हो गया है कि हलाल सर्टिफिकेशन पर नियंत्रण केवल सरकारी संस्थाओं के अधिकार में होना चाहिए।




