लखनऊ में शुक्रवार की रात डॉक्टरों की एक टीम ने वह कर दिखाया जो किसी मिशन से कम नहीं था। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (SGPGI) के डॉक्टरों ने मात्र 23 मिनट में 9 किलोमीटर की दूरी तय कर 32 वर्षीय मरीज को नई जिंदगी दी। यह ऑपरेशन किसी फिल्मी सीन से कम नहीं था, क्योंकि यह सब बिना किसी ग्रीन कॉरिडोर या पुलिस एस्कॉर्ट के किया गया। घटना की शुरुआत तब हुई जब लखनऊ के कमांड हॉस्पिटल में भर्ती 56 वर्षीय महिला को गंभीर न्यूरोलॉजिकल बीमारी के कारण ब्रेन डेड घोषित किया गया। महिला के पूर्व सैनिक पति और परिजनों ने बड़ा दिल दिखाते हुए अंगदान का फैसला लिया। उनकी दोनों किडनियां ट्रांसप्लांट के लिए दान की गईं — एक कमांड हॉस्पिटल में और दूसरी SGPGI में भेजी गई। SGPGI की डॉक्टरों की टीम रात करीब ढाई बजे अस्पताल से रवाना हुई और तेजी से कमांड हॉस्पिटल पहुंची। वहां से ऑर्गन को सुरक्षित निकालने के बाद 4:35 पर टीम ने वापसी की और 5 बजे से पहले SGPGI कैंपस में किडनी पहुंच गई। सुबह के समय ट्रैफिक कम होने के कारण सफर सुचारू रहा और समय पर ट्रांसप्लांट प्रक्रिया शुरू हो सकी।
समय से पहुंची किडनी ने बदल दी जिंदगी
SGPGI के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. राजेश हर्षवर्धन के अनुसार, यह मिशन पूरी तरह से डॉक्टरों के टीमवर्क और समर्पण का परिणाम था। बिना किसी प्रशासनिक सहायता के भी टीम ने सटीक योजना के तहत समय पर ऑर्गन ट्रांसपोर्ट कर लिया। कैंपस पहुंचते ही डॉक्टरों ने तुरंत सर्जरी की प्रक्रिया शुरू की। प्रोफेसर नारायण प्रसाद, जो नेफ्रोलॉजी विभाग से इस ट्रांसप्लांट के प्रमुख विशेषज्ञ हैं, ने बताया कि ऑपरेशन पूरी तरह सफल रहा। सर्जरी के बाद मरीज की यूरिन आउटपुट सामान्य रही और शरीर ने किडनी को सकारात्मक रूप से स्वीकार किया। मरीज लंबे समय से गुर्दे की गंभीर बीमारी से जूझ रहा था और हर सप्ताह डायलिसिस पर निर्भर था। डॉक्टरों का कहना है कि अगर यह किडनी समय पर नहीं पहुंचती, तो मरीज की जान खतरे में पड़ सकती थी। इस मिशन ने यह साबित कर दिया कि समर्पित चिकित्सा टीम और सुव्यवस्थित तालमेल से बिना किसी बाहरी सहायता के भी असंभव कार्य संभव हो सकता है।
अंगदान से मिला जीवन, समाज के लिए संदेश
प्रोफेसर नारायण प्रसाद ने इस सफल ट्रांसप्लांट के बाद कहा कि इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर साबित किया है कि अंगदान जीवन का सबसे बड़ा उपहार है। उन्होंने कहा कि अगर ब्रेन डेड मरीजों के परिजन इस तरह आगे आते रहें, तो हजारों लोगों को नई जिंदगी मिल सकती है। कमांड हॉस्पिटल की ऑर्गन डोनेशन टीम की काउंसलिंग और परिवार के सहयोग से यह प्रक्रिया समय पर पूरी हो सकी। डॉक्टरों ने बताया कि इस मिशन में ट्रांसप्लांट टीम में प्रोफेसर एमएस अंसारी, प्रोफेसर संजय सुरेखा, प्रोफेसर उदय प्रताप सिंह, प्रोफेसर रवि शंकर कुशवाहा और प्रोफेसर तपस भी शामिल रहे। सभी ने बारीकी से सर्जरी की प्रत्येक स्टेज की मॉनिटरिंग की और मरीज को सुरक्षित रखा। यह पूरी प्रक्रिया मेडिकल विज्ञान के लिए भी प्रेरणादायक उदाहरण बनी है। लखनऊ के SGPGI और कमांड हॉस्पिटल की इस संयुक्त कोशिश ने न केवल एक जीवन बचाया बल्कि पूरे समाज को यह संदेश दिया कि समय पर ऑर्गन डोनेशन कितनी जिंदगियों को नया अर्थ दे सकता है। जब डॉक्टरों की निष्ठा और परिवार की सहमति एक साथ आती है, तो चमत्कार की कहानी खुद-ब-खुद लिखी जाती है।




