कानपुर के बहुचर्चित अखिलेश दुबे प्रकरण में एक और बड़ा खुलासा हुआ है। मैनपुरी जिले के भोगांव में तैनात डीएसपी (सीओ) ऋषिकांत शुक्ला को शासन ने निलंबित कर दिया है। कानपुर पुलिस की एसआईटी जांच में यह सामने आया है कि शुक्ला ने अपनी सेवा अवधि के दौरान करीब 100 करोड़ रुपए से अधिक की बेनामी संपत्तियां बनाई हैं। एसआईटी की रिपोर्ट के अनुसार, उनके नाम पर 12 संपत्तियों के दस्तावेज मिले हैं जिनकी बाजार कीमत लगभग 92 करोड़ रुपए आंकी गई है। इसके अलावा तीन अन्य संपत्तियों के कागजात अभी तक नहीं मिल सके, लेकिन वे उनके पैन नंबर से जुड़ी पाई गई हैं। जांच में यह भी सामने आया है कि ऋषिकांत शुक्ला ने 1998 से 2009 तक कानपुर नगर में विभिन्न पदों पर तैनाती के दौरान अखिलेश दुबे और उसके नेटवर्क से गहरे संबंध बनाए रखे। इस दौरान उन्होंने कई विवादित मामलों में हस्तक्षेप कर दुबे को फायदा पहुंचाने का काम किया। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि शुक्ला की संपत्ति में विसंगतियों और उनकी आय से अधिक संपत्ति के ठोस प्रमाण मिले हैं। इसी के चलते शासन ने उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर विजिलेंस जांच शुरू करने के निर्देश दिए हैं। हालांकि, डीएसपी शुक्ला ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि यह उनके खिलाफ साजिश है और वे निर्दोष हैं।
पुलिस अफसरों और दुबे गैंग की पार्टनरशिप, कंस्ट्रक्शन कंपनी के नाम पर काली कमाई का खेल
एसआईटी जांच में एक और चौंकाने वाला पहलू यह सामने आया है कि ऋषिकांत शुक्ला ने अपने दो अन्य पुलिस अफसर साथियों-सीओ संतोष सिंह और विकास पांडेय-के साथ मिलकर अखिलेश दुबे और उसके परिवार के साथ एक कंस्ट्रक्शन कंपनी खड़ी की थी। सूत्रों के अनुसार, इस कंपनी में ऋषिकांत की पत्नी प्रभा शुक्ला, सीओ पांडेय के भाई प्रदीप कुमार पांडेय, संतोष सिंह के रिश्तेदार अशोक कुमार सिंह और अखिलेश दुबे के बेटे अखिल तथा भतीजे सात्विक शामिल थे। बताया जाता है कि इस कंपनी में पुलिस अफसरों ने अपनी कथित काली कमाई लगाकर उसे वैध दिखाने का प्रयास किया। यह कंपनी कंस्ट्रक्शन, जमीनों की खरीद-बिक्री और शहरी विकास परियोजनाओं से जुड़ी गतिविधियों में संलग्न थी। कानपुर में तैनाती के दौरान ये तीनों अफसर अखिलेश दुबे के करीबी माने जाते थे और उनके ‘साकेत नगर दरबार’ का हिस्सा थे। जांच रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि ट्रांसफर होने के बाद भी इन अधिकारियों का दुबे से संपर्क बना रहा और वे कानपुर में जमीन के कारोबार में भागीदार रहे। अब एसआईटी इन सबकी वित्तीय लेन-देन और प्रॉपर्टी रिकॉर्ड की जांच कर रही है, जिसमें बैंक खातों, संपत्ति दस्तावेजों और ट्रांजेक्शन की जानकारी जुटाई जा रही है।
अखिलेश दुबे का साम्राज्य: अपराध, राजनीति और प्रभाव का संगम
इस पूरे मामले के केंद्र में कानपुर का नामचीन वकील अखिलेश दुबे है, जो अपने प्रभाव और नेटवर्क के लिए बदनाम रहा है। बताया जाता है कि दुबे ने कभी अदालत में बहस नहीं की, बल्कि अपने दफ्तर में ही ‘कोर्ट’ चलाता था, जहां पुलिस अफसरों से लेकर स्थानीय नेताओं तक की पैरवी होती थी। उसके कार्यालय में बड़े केसों की जांच रिपोर्ट तैयार की जाती थी, जिससे वह कानपुर पुलिस और प्रशासनिक तंत्र पर गहरी पकड़ बनाए रखता था। दुबे ने अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए पहले एक न्यूज चैनल शुरू किया, फिर वकीलों और पुलिसकर्मियों का सिंडीकेट बनाया। धीरे-धीरे शहर के बड़े बिल्डरों और कारोबारी घरानों को अपने साथ जोड़ लिया। कानपुर में स्कूल, मॉल, गेस्ट हाउस और जमीनों के सौदों में उसका सीधा दखल था। उसके प्रभाव के कारण कोई भी विभाग उसकी संपत्तियों या प्रोजेक्ट्स पर आपत्ति दर्ज करने की हिम्मत नहीं करता था। 1980 के दशक में मेरठ से भागकर कानपुर आए दुबे ने यहां धीरे-धीरे अपना अपराधी और कारोबारी नेटवर्क खड़ा किया। वह शुरू में साइकिल स्टैंड चलाता था और बाद में मादक पदार्थों के कारोबार से जुड़ गया। समय के साथ उसने पुलिस और राजनेताओं से संबंध बनाकर खुद को ‘शहर का बादशाह’ बना लिया। अब जब एसआईटी की जांच ने उसकी जड़ों को हिलाया है, तो कई पुलिस अफसरों की संलिप्तता उजागर हो रही है। डीएसपी ऋषिकांत शुक्ला का निलंबन इस बात का संकेत है कि आने वाले दिनों में इस नेटवर्क के और भी बड़े नाम सामने आ सकते हैं। यह मामला न केवल पुलिस महकमे में नैतिकता और जवाबदेही पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सत्ता, भ्रष्टाचार और अपराध का गठजोड़ किस तरह कानून के दायरे को कमजोर कर देता है।




