गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – गोरखपुर के एक निजी अस्पताल में उस समय हंगामा खड़ा हो गया जब कान दर्द की शिकायत लेकर भर्ती हुई महिला की ऑपरेशन के दौरान मौत हो गई। मृतका की पहचान 35 वर्षीय पूनम जायसवाल, पत्नी गोविंद जायसवाल निवासी हरकपुरा, घुघली थाना क्षेत्र, महराजगंज के रूप में हुई है। परिजनों का आरोप है कि महिला को सुबह लगभग 11 बजे अस्पताल में भर्ती कराया गया और शाम तक डॉक्टरों ने ऑपरेशन करने का निर्णय लिया। ऑपरेशन थिएटर में ले जाने के बाद महिला लगभग तीन घंटे तक बाहर नहीं आईं। परिजनों का कहना है कि अस्पताल प्रशासन ने स्थिति स्पष्ट नहीं की और अचानक उन्हें एक अन्य निजी अस्पताल में शिफ्ट कर दिया। इससे परिवार में आशंका और बढ़ गई। आरोप है कि अस्पताल ने सच्चाई छिपाई और परिजनों को गुमराह करने की कोशिश की।
ऑपरेशन थिएटर से दूसरे अस्पताल तक की कहानी
परिवार के अनुसार शाम करीब छह बजे महिला को ऑपरेशन थिएटर में ले जाया गया, जहां कई घंटों तक कोई जानकारी नहीं दी गई। तीन घंटे बीत जाने के बाद जब परिवार चिंतित हुआ तो उन्हें बताया गया कि मरीज को दूसरे अस्पताल ले जाया जा रहा है। वहां मौजूद डॉक्टरों ने बताया कि महिला की स्थिति बेहद गंभीर है और उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट के साथ बड़े संस्थान, जैसे पीजीआई, में भेजना आवश्यक होगा। परिजन वेंटिलेटर एम्बुलेंस की व्यवस्था करने लगे, लेकिन एम्बुलेंस कर्मियों ने जांच के दौरान यह कह दिया कि महिला की मौत पहले ही हो चुकी है। इस खुलासे से परिवार सदमे में आ गया और उन्होंने अस्पताल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना है कि महिला की मौत ऑपरेशन के दौरान ही हो चुकी थी, लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने इस तथ्य को छुपाया और भ्रामक जानकारी दी।
पुलिस हस्तक्षेप और कानूनी कार्रवाई
घटना की जानकारी मिलते ही कैंट थाना प्रभारी संजय सिंह अपनी टीम के साथ अस्पताल पहुंचे और वहां पर बढ़ते आक्रोश को शांत करने की कोशिश की। पुलिस ने परिजनों को भरोसा दिलाया कि यदि वे लिखित शिकायत देंगे तो मामले की पूरी जांच की जाएगी और दोषी पाए जाने पर सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। फिलहाल, महिला की मौत को लेकर परिजनों और स्थानीय लोगों में गुस्सा बना हुआ है। अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही के आरोपों ने एक बार फिर निजी स्वास्थ्य संस्थानों की कार्यप्रणाली और जवाबदेही पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह मामला केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि उस व्यवस्था की खामियों को उजागर करता है जहां पारदर्शिता और जिम्मेदारी की कमी अक्सर मरीजों और उनके परिवारों को भारी कीमत चुकाने पर मजबूर कर देती है। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस गंभीर मामले में क्या कदम उठाता है और क्या मृतका के परिवार को न्याय मिल पाता है या नहीं।