गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – गोरखपुर में आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवैद्यनाथ की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन करते हुए उनके योगदान को याद किया। उन्होंने कहा कि साधु अकेला नहीं होता, पूरा समाज उसका परिवार होता है और सनातन धर्म ही उसकी जाति है। सीएम योगी ने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवैद्यनाथ जैसे संतों ने न केवल धार्मिक क्षेत्र में, बल्कि शिक्षा, समाजसेवा और राष्ट्र निर्माण में भी अमूल्य योगदान दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकल्प “विकसित भारत” का उल्लेख करते हुए कहा कि यह मात्र राजनीतिक लक्ष्य नहीं, बल्कि राष्ट्र का मंत्र है। उन्होंने “वसुधैव कुटुंबकम्” की अवधारणा को भारत ही पूर्ण कर सकता है और यह तभी संभव है जब हर नागरिक आत्मनिर्भर बनकर राष्ट्र को शक्तिशाली बनाए। इस दौरान सीएम योगी ने यह भी कहा कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण संतों के संघर्ष और बलिदान का परिणाम है, जिसके लिए महंत दिग्विजयनाथ और उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ ने दशकों तक संघर्ष किया।
शिक्षा, समाजसेवा और राम मंदिर आंदोलन में भूमिका
कार्यक्रम के दौरान सीएम योगी ने महंत दिग्विजयनाथ के बहुआयामी योगदान को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ ने 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना कर पूर्वांचल में शिक्षा की ज्योति जगाई और गोरखपुर में विश्वविद्यालय स्थापित करने का सपना देखा। बालिकाओं की शिक्षा के लिए संस्थान खोले और समाज में शैक्षिक जागरण का अभियान चलाया। उनका मानना था कि गुलामी के प्रतीक ढांचे को हटाकर अयोध्या में भव्य मंदिर बनना चाहिए और आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह सपना साकार हो चुका है। महंत दिग्विजयनाथ ने 34 वर्षों तक गोरक्षपीठ की बागडोर संभाली और राष्ट्र, धर्म, अध्यात्म और संस्कृति की सेवा में जीवन समर्पित किया। किशोरावस्था से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे और आजादी के बाद उन्होंने समाज सुधार और शिक्षा के क्षेत्र को अपना मुख्य उद्देश्य बनाया। उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ ने भी राम मंदिर आंदोलन को निर्णायक मोड़ दिया और कोर्ट के फैसले के बाद मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ।
महंत दिग्विजयनाथ का जीवन परिचय और राजनीतिक योगदान
महंत दिग्विजयनाथ का जन्म 1894 में मेवाड़ (राजस्थान) में हुआ था और बचपन में उनका नाम नान्हू सिंह था। पांच वर्ष की आयु में वह गोरखनाथ मंदिर पहुंचे और यहीं से उनका जीवन साधु परंपरा से जुड़ गया। 1933 में उन्हें योग दीक्षा मिली और 1935 में वह गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर बने। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने असहयोग आंदोलन का समर्थन किया और क्रांतिकारियों को सहयोग दिया। 1922 के चौरी-चौरा कांड में उनका नाम जुड़ा लेकिन अंग्रेजी हुकूमत उनकी दृढ़ता के आगे झुक गई। शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान इतना व्यापक था कि उन्होंने महाराणा प्रताप डिग्री कॉलेज को गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु दान में दिया। राजनीति में भी वह सक्रिय रहे और 1937 में हिन्दू महासभा से जुड़े। 1961 में वह अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और धर्म व सामाजिक एकता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए। संत समाज को संगठित करने के लिए उन्होंने 1939 में अखिल भारतीय अवधूत भेष बारहपंथ योगी महासभा की स्थापना की। सीएम योगी ने श्रद्धांजलि सभा में कहा कि ऐसे संतों की प्रेरणा और आशीर्वाद ही राष्ट्र को आगे बढ़ाने की ऊर्जा है और उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श है।