गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्देश पर गठित डेलीगेशन का गोरखपुर दौरा दूसरी बार टल जाने से राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। 21 सितंबर को घोषित किए गए इस प्रतिनिधिमंडल का कार्यक्रम स्वर्गीय केदारनाथ सिंह की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने और उनके परिवार से मुलाकात का था। 25 सितंबर की दोपहर बाद आगमन तय था, मगर ठीक एक दिन पहले अचानक रद्द कर दिया गया। आधिकारिक तौर पर व्यस्तता का हवाला दिया जा रहा है, लेकिन पार्टी के भीतर भी इस फैसले पर असमंजस साफ दिखाई दे रहा है। सूत्रों के अनुसार, किसी प्रभावशाली व्यक्ति के हस्तक्षेप के चलते यात्रा बार-बार टल रही है। यह भी कहा जा रहा है कि प्रतिमा जिस भूखंड पर स्थापित है, वह निजी संपत्ति है और वहां जाने की अनुमति मिलने की संभावना कम है, हालांकि इस तथ्य की जानकारी पहले से मौजूद थी। दिलचस्प पहलू यह भी है कि जिस वरिष्ठ नेता के करीबी संबंधों के कारण पहली बार दौरा स्थगित हुआ, उनका नाम दूसरी बार बने डेलीगेशन में शामिल ही नहीं किया गया। फिर भी, प्रभावशाली दखलअंदाजी की चर्चा लगातार जारी है। इस अचानक लिए गए फैसले ने स्थानीय स्तर पर सपा कार्यकर्ताओं को असमंजस में डाल दिया है।
सैंथवार नेताओं की साख पर संकट और पार्टी का आधिकारिक रुख
गोरखपुर का यह घटनाक्रम सपा के सैंथवार नेताओं के लिए विशेष चुनौती बन गया है। स्वर्गीय केदारनाथ सिंह की प्रतिमा स्थापना से जुड़ी जंग में कुशीनगर से चुनाव लड़ चुके पिंटू सिंह और डॉ. कृष्णभान उर्फ किसान सिंह ने सक्रिय भूमिका निभाई थी। माना जाता है कि पहली बार दौरा पिंटू सिंह के प्रयासों से तय हुआ था लेकिन अंतिम समय में स्थगित हो गया। दूसरी ओर, किसान सिंह भी लगातार इस मुद्दे को उठाते रहे हैं, मगर लगातार रद्दीकरण से दोनों नेताओं की विश्वसनीयता दांव पर है। जिले के पदाधिकारी हालांकि इस निर्णय को सामान्य बताते हुए व्यस्तता का हवाला दे रहे हैं। जिलाध्यक्ष ब्रजेश कुमार गौतम का कहना है कि यह निर्णय उच्च स्तर से लिया गया है और इसमें असाधारण कुछ नहीं। वहीं, विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी यादव की व्यस्तता को भी कारण बताया जा रहा है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बार-बार रद्दीकरण स्थानीय कार्यकर्ताओं के बीच गलत संदेश भेज रहा है। खासतौर पर सैंथवार समाज, जो पहले से ही भाजपा का कोर वोट बैंक माना जाता है, अब और अधिक दूरी महसूस कर सकता है। स्व. केदारनाथ सिंह दो बार विधायक रहे और अपने अंतिम दिनों तक सपा से जुड़े रहे। ऐसे में उनका मुद्दा लगातार ठंडे बस्ते में जाना सपा की रणनीति पर सवाल उठाता है।
भाजपा ने दिखाया सक्रिय रुख
जहां समाजवादी पार्टी लगातार डेलीगेशन का दौरा टाल रही है, वहीं भाजपा इस मामले में सक्रिय होती नजर आ रही है। सैंथवार समाज की नाराजगी को भांपते हुए भाजपा नेताओं ने मुख्यमंत्री से मिलकर आश्वासन दिलाया है कि स्व. केदारनाथ सिंह की प्रतिमा को किसी उपयुक्त स्थान पर स्थापित किया जाएगा। माना जा रहा है कि जल्द ही इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे, जिससे भाजपा को समाज में सीधा राजनीतिक लाभ मिलेगा। वहीं, सपा के भीतर यह चर्चा भी है कि यदि पार्टी ने इस मुद्दे पर ठोस पहल नहीं की तो स्थानीय स्तर पर उसकी विश्वसनीयता बुरी तरह प्रभावित होगी। पार्टी के पदाधिकारी मानते हैं कि आम जनता इस तरह की बार-बार की असमंजसपूर्ण स्थिति को लेकर सवाल उठा रही है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि बड़े स्तर पर भले ही यह मामूली मुद्दा लगे, लेकिन गोरखपुर और आसपास के क्षेत्रों में यह सपा के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। दूसरी ओर, किसान सिंह जैसे सपा नेता अब भी प्रयासरत हैं कि जल्द ही प्रतिनिधिमंडल का दौरा सुनिश्चित हो, ताकि संदेश जाए कि पार्टी अपने पुराने नेताओं और उनके परिवार के साथ खड़ी है। बावजूद इसके, दो बार स्थगित हुए दौरे ने सपा के लिए रणनीतिक संकट खड़ा कर दिया है, जिससे बाहर निकलना आसान नहीं होगा।