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संजय निषाद ने बेटे को प्रदेश प्रभारी पद से हटाया, नई राजनीतिक चर्चा तेज

परिवारवाद के आरोपों से बचाव या पॉलिटिकल स्टंट? भाजपा विधायक सरवन निषाद की भूमिका पर उठे सवाल

Gorakhpur News: Sanjay Nishad removes son BJP MLA Sarvan Nishad from party post

गोरखपुर की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिला जब निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद) के संस्थापक और कैबिनेट मंत्री डॉ. संजय निषाद ने अपने बेटे और भाजपा विधायक ई. सरवन निषाद को पार्टी के प्रदेश प्रभारी पद से हटा दिया। इस फैसले ने राजनीतिक गलियारों में नई चर्चा को जन्म दिया है। ई. सरवन ने 2022 में चौरी-चौरा सीट से भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीता था और विधायक बने थे। विधायक बनने के बाद भी वे अपने पिता की पार्टी में प्रदेश प्रभारी बने रहे। अब पिता ने उन्हें इस पद से हटाते हुए उनकी व्यस्तताओं का हवाला दिया है। डॉ. संजय निषाद का कहना है कि बेटे को हटाया नहीं गया बल्कि पद पर बदलाव हुआ है और उन्हें जल्द ही एक और बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी।

परिवारवाद पर उठे सवाल और विपक्षी हमले

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम परिवारवाद के आरोपों से बचने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। लंबे समय से डॉ. संजय निषाद पर यह आरोप लगता रहा है कि उनकी पार्टी में परिवार का दबदबा ज्यादा है और महत्त्वपूर्ण पदों पर उनके बेटे सक्रिय हैं। अब उन्होंने दो नए कार्यकर्ताओं को प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश प्रभारी का पद सौंपकर संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी में परिवार से बाहर के लोगों को भी मौका दिया जा रहा है। हालांकि सवाल अभी भी बने हुए हैं क्योंकि उनके दोनों बेटे सक्रिय राजनीति में मौजूद हैं। भाजपा जिलाध्यक्ष जनार्दन तिवारी ने इस मामले पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया और कहा कि यह ऊपर का मामला है, वहीं पूछा जाए। वहीं भाजपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य जयप्रकाश निषाद ने इसे पॉलिटिकल ड्रामेबाजी करार देते हुए कहा कि कोई विधायक दूसरी पार्टी में पदाधिकारी हो ही नहीं सकता और यह सिर्फ दिखावा है।

संजय निषाद की रणनीति या सियासी दबाव?

इस फैसले को लेकर यह भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या भाजपा नेतृत्व की ओर से दबाव था कि विधायक रहते हुए सरवन निषाद किसी अन्य पार्टी में पद न संभालें। हालांकि डॉ. संजय निषाद ने फोन पर बातचीत में साफ कहा कि बदलाव सामान्य प्रक्रिया है और बेटे को और बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी। लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि भाजपा विधायक का उनकी पार्टी में पदाधिकारी बने रहना कितना वैध था। इस पूरे घटनाक्रम से साफ है कि निषाद राजनीति एक बार फिर सुर्खियों में आ गई है और परिवारवाद बनाम संगठनवाद की बहस को नया ईंधन मिला है।

गोरखपुर की इस सियासी हलचल ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह बदलाव केवल दिखावे भर का है या वास्तव में पार्टी को परिवारवाद से बाहर निकालने की कोशिश है। आने वाले दिनों में सरवन निषाद को कौन-सी नई जिम्मेदारी दी जाती है और भाजपा व निषाद पार्टी इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाते हैं, यह राजनीतिक परिदृश्य तय करेगा।

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