आपदा और शांतिपूर्ण राजनीतिक बहस के बीच गोरखपुर की राजनीतिक हवा ताम्परिंग के साथ गर्म हो गई है, जब भाजपा सांसद और फिल्म अभिनेता रवि किशन को फोन के जरिए जान से मारने की धमकी मिली। मामला तब प्रकाश में आया जब सांसद के निजी सचिव शिवम द्विवेदी को गुरुवार रात लगभग ग्यारह बजे एक अज्ञात नंबर से कॉल आया। कॉल करने वाले ने स्वयं को आरा के जवनियां गांव का रहने वाला अजय कुमार यादव बताया और कहा कि वह भोजपुरी अभिनेता व राजद प्रत्याशी खेसारीलाल यादव का समर्थक है। वार्तालाप में आरोपी ने कहा कि रवि किशन यादव समाज पर टिप्पणी करते हैं और इसी के बहाने बिहार आने पर उन्हें गोली मार दी जाएगी। कॉल के दौरान आरोपी ने राम और राम मंदिर के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणियाँ भी कीं, जिनसे न केवल सांसद के निजी सम्मान पर चोट पहुंची बल्कि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचने की बात भी सामने आई। मामले के तुरंत बाद निजी सचिव और सांसद के पीआरओ पवन दुबे ने गोरखपुर के पुलिस अधिकारियों से संपर्क कर लिखित शिकायत दी तथा सांसद की सुरक्षा बढ़ाने की मांग की। पुलिस ने गंभीरता से लेते हुए तुरंत जांच शुरू कर दी है; कॉल के नंबर और लोकेशन का पता लगाने के प्रयास जारी हैं ताकि आरोपी को शीघ्र हिरासत में लिया जा सके और कानूनी प्रक्रिया आगे बढ़ाई जा सके। गोरखपुर के एसएसपी तथा सिटी एसपी अभिनव त्यागी ने भी पुष्टि की कि रामगढ़ ताल थाने में मामला दर्ज कर लिया गया है और जांच प्रगतिशील रूप से चल रही है।
घटना की पृष्ठभूमि और राजनीतिक संदर्भ बेहद संवेदनशील हैं क्योंकि यह तब हुआ है जब रवि किशन बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान एनडीए के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं और कई सभाओं में भाग ले रहे हैं। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कॉल करने वाले ने खेसारीलाल यादव के उन बयानों का समर्थन करते हुए धमकी दी, जिनमें उन्होंने कहा था कि मंदिर के स्थान पर स्वास्थ्य व शिक्षा जैसी सुविधाओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए – इस टिप्पणी के बाद दोनों राजनैतिक हस्तियों के बीच तकरार लगातार बढ़ी है। खेसारी ने पहले कहा था कि मंदिर होना चाहिए पर साथ ही लोगों की पेट की चिंता भी महत्वपूर्ण है; इस तरह के बयान से राजनीतिक हवा गरम रही है और विरोधी दलों के बीच तीखे बयानबाजी ने तनाव बढ़ाया है। रवि किशन ने इस घटना के बाद सार्वजनिक रूप से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिक्रिया दी और स्पष्ट कर दिया कि वे धमकियों से न तो डगमगाएंगे और न ही अपनी विचारधारा से पीछे हटेंगे; उन्होंने कहा कि राष्ट्र सेवा, जनहित और आस्था उनके लिए किसी राजनीति का उपकरण नहीं बल्कि जीवन का सिद्धांत है। साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि यदि इतने कहर भरे व्यवहार के बावजूद किसी को कानून के दायरे में लाने की आवश्यकता पड़ेगी तो सख्ती से कार्रवाई की जाएगी क्योंकि ऐसे कृत्य समाज में नफरत और अशांति फैलाने का प्रयास हैं।
मामले के प्रशासनिक और सुरक्षा पहलुओं में भी कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं जो आगे की कार्रवाई के संकेत देते हैं। सांसद के निजी सचिव ने फोन कॉल की रिकॉर्डिंग तथा फोन से जुड़ी जानकारी के आधार पर स्थानीय पुलिस के साथ-साथ लीगल प्रक्रिया को सक्रिय किया; शिकायत के बाद पुलिस ने कहा कि कॉल के स्रोत का पता लगाने हेतु तकनीकी सर्वेक्षण और मोबाइल टॉवर लोकेशन ट्रेस किया जा रहा है। साथ ही यह भी पता चला है कि रवि किशन को केंद्र व राज्य की ओर से Y+ श्रेणी की सुरक्षा दी गई है, जो उन्हें अक्टूबर 2020 से प्रदान है – यह सुरक्षा स्तर उन सार्वजनिक हस्तियों को दिया जाता है जिनके खतरों का आकलन विशेष रूप से उच्च माना जाता है। सुरक्षा पर मिली यह जानकारी और भी मायने रखती है क्योंकि धमकी कॉल में आरोपी ने सांसद और उनके परिवार पर भी गालियाँ दीं, जिससे समर्थकों में भारी आक्रोश देखा गया और सुरक्षा बढ़ाने की मांग उठी। पुलिस अधिकारियों ने आश्वस्त किया है कि मामले की फॉरेंसिक जाँच, कॉल डेटा रिकॉर्ड (CDR) की पड़ताल और संभावित फोन लोकेशन के आधार पर आरोपी की पहचान कर गिरफ्तारी सुनिश्चित की जाएगी; इसके साथ ही यदि कॉल में किसी और व्यक्ति, नेटवर्क या साजिश के संकेत मिलते हैं तो उसके अनुरूप कानूनी धाराओं के तहत कार्रवाई की जाएगी।
राजनीतिक रवैये और सार्वजनिक प्रतिध्वनि दोनों स्तरों पर यह घटना व्यापक चर्चा का विषय बनी है। विपक्षी और समर्थक दोनों पक्षों ने बयान दिए और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएँ तेज़ी से आईं, जबकि स्थानीय जनमानस में भी इस तरह की हिंसक भाषा के इस्तेमाल पर चिंता व्यक्त की जा रही है। घटना ने यह प्रश्न भी उठाया है कि चुनावी उद्धोषण और सार्वजनिक बयान कितनी सावधानीपूर्वक दिए जाने चाहिए ताकि उनके कारण किसी की जान को खतरा न हो और समाज में अमन-शांति बनी रहे। कानून के मुताबिक किसी भी प्रकार की जान से मारने की धमकी गंभीर अपराध है और इससे निपटने के लिए त्वरित व निर्णायक कार्रवाई अपेक्षित है। इस पृष्ठभूमि में यह देखना होगा कि पुलिस जांच कितनी तेज़ी और पारदर्शिता के साथ आगे बढ़ती है, आरोपित की पहचान व गिरफ्तारी कब तक की जाती है, तथा क्या भविष्य में राजनीतिक सहमति और संवेदनशील बयानों के संबंध में कोई अहंकार और भाषा की मर्यादा हेतु चर्चा या प्रतिबंध आवश्यक समझा जाएगा।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह रेखांकित कर दिया कि लोकतांत्रिक बहस और मतभेदों का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से ही संभव है और हिंसा की भाषा को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। सांसद रवि किशन की प्रतिक्रिया, सुरक्षा प्रावधानों का विवरण, आरोपी द्वारा की गई कथित टिप्पणियाँ तथा पुलिस की तफ्तीश – सभी मिलकर इस मामले को न केवल स्थानीय पुलिसिया कार्रवाई का विषय बनाते हैं बल्कि चुनाव-सम्बद्ध राजनीति और सामाजिक सामंजस्य की चुनौती के रूप में भी सामने लाते हैं। जनता और सरकारी संस्थानों दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि वे ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए उचित कदम उठाएँ, और यह सुनिश्चित करें कि संवैधानिक व्यवस्था के तहत सभी मत व्यक्त किए जा सकें परंतु हिंसा और नफरत के दायरों से बाहर रहकर।




