गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – गोरखपुर समेत उत्तर प्रदेश के कई बड़े शहरों में बिजली आपूर्ति व्यवस्था के निजीकरण को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति का आरोप है कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के साथ-साथ कानपुर, मेरठ, अलीगढ़, बरेली और लखनऊ में भी वर्टिकल रिस्ट्रक्चरिंग की आड़ में निजीकरण लागू करने की तैयारी हो रही है। समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि इसका असली मकसद सरकारी बिजली निगमों को धीरे-धीरे निजी हाथों में सौंपना है, जिससे न केवल उपभोक्ताओं पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा बल्कि कर्मचारियों की नौकरी भी खतरे में पड़ जाएगी। समिति का आरोप है कि पावर कॉरपोरेशन द्वारा तैयार किया गया RFP डॉक्यूमेंट अब अंतिम चरण में पहुंच चुका है और विद्युत नियामक आयोग की आपत्तियों का जवाब भी तैयार कर लिया गया है। सूत्रों का कहना है कि इस दस्तावेज को जल्द ही अनुमोदन के लिए आयोग में भेजा जा सकता है, जिससे निजीकरण प्रक्रिया को तेज गति मिल सकती है।
संघर्ष समिति की आपत्ति और मांगें
समिति के नेताओं ने विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार से अपील की है कि पावर कॉरपोरेशन द्वारा लाए गए निजीकरण प्रस्ताव को पूरी तरह अस्वीकृत किया जाए। उनका कहना है कि प्रदेश स्तर पर कर्मचारियों के प्रतिनिधियों से बिना चर्चा किए इस तरह के निर्णय थोपना अनुचित होगा। समिति ने स्पष्ट किया कि निजीकरण से बिजली कर्मचारियों का भविष्य असुरक्षित हो जाएगा और उपभोक्ताओं को भी स्थिर और सस्ती बिजली उपलब्ध कराना मुश्किल होगा। संघर्ष समिति ने पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष डॉ. आशीष गोयल पर भी गंभीर आरोप लगाए हैं। समिति का दावा है कि वह ऑल इंडिया डिस्कॉम एसोसिएशन के महामंत्री के रूप में निजीकरण का समर्थन कर रहे हैं और एसोसिएशन की वेबसाइट पर पूर्वांचल व दक्षिणांचल निगमों के साथ पांच प्रमुख शहरों की वर्टिकल रिस्ट्रक्चरिंग को सुधार की पहल के रूप में पेश किया गया है। इसके खिलाफ समिति का तर्क है कि देश के कई शहर जैसे बेंगलुरु, पटियाला, पुणे, हैदराबाद, विजयवाड़ा, विशाखापत्तनम, गुड़गांव और हिसार में सरकारी ढांचे के तहत बिजली व्यवस्था में व्यापक सुधार दर्ज किए गए हैं, लेकिन वहां कभी वर्टिकल रिस्ट्रक्चरिंग की आवश्यकता महसूस नहीं हुई।
प्रदेशभर में व्यापक प्रदर्शन
गोरखपुर से शुरू हुआ यह आंदोलन अब पूरे प्रदेश में व्यापक विरोध के रूप में सामने आ रहा है। शुक्रवार को लगातार 295वें दिन बिजली कर्मचारियों ने गोरखपुर, वाराणसी, आगरा, मेरठ, कानपुर, मिर्जापुर, आजमगढ़, बस्ती, अलीगढ़, मथुरा, एटा, झांसी, बांदा, बरेली, देवीपाटन, अयोध्या, सुल्तानपुर, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, नोएडा, गाजियाबाद और मुरादाबाद में सामूहिक सभाएं कीं और निजीकरण प्रस्ताव के खिलाफ जोरदार नारेबाजी की। इन सभाओं में कर्मचारियों ने साफ कहा कि सरकार और पावर कॉरपोरेशन ने यदि कर्मचारियों और उपभोक्ताओं की राय लिए बिना निजीकरण लागू करने का प्रयास किया तो आंदोलन और तेज होगा। प्रदर्शनकारियों ने यह भी चेतावनी दी कि यदि आयोग ने पावर कॉरपोरेशन के प्रस्ताव को मंजूरी दी तो प्रदेशभर में कामकाज ठप कर दिया जाएगा। समिति का कहना है कि बिजली जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में निजी कंपनियों को बढ़ावा देने से सेवा की गुणवत्ता प्रभावित होगी और आम जनता पर आर्थिक दबाव बढ़ेगा। कर्मचारियों ने यह भी दोहराया कि सरकारी ढांचे में रहते हुए ही बिजली व्यवस्था को और अधिक पारदर्शी तथा उपभोक्ता-केंद्रित बनाया जा सकता है, न कि निजीकरण के जरिए।