गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – गोरखपुर में प्रस्तावित ‘नया गोरखपुर’ परियोजना को लेकर जारी की गई सामाजिक प्रभाव अध्ययन रिपोर्ट ने क्षेत्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। शहर की बढ़ती जनसंख्या और आवासीय जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से बनाई जा रही यह परियोजना अब विकास की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकती है। रिपोर्ट के अनुसार, परियोजना के पूरा होने पर न केवल आधुनिक आवासीय और वाणिज्यिक संरचनाओं का निर्माण होगा, बल्कि स्थानीय स्तर पर हजारों रोजगार अवसर भी पैदा होंगे। अध्ययन में बताया गया है कि यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों की आय में वृद्धि, सामाजिक स्थिति में सुधार और आधारभूत सुविधाओं के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। दिल्ली स्थित एग्रीमा संस्था ने इस सामाजिक प्रभाव अध्ययन को तैयार किया है और इसे विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी के कार्यालय को सौंप दिया गया है। गोरखपुर विकास प्राधिकरण (GDA) ने इस रिपोर्ट को अपने पोर्टल पर सार्वजनिक कर दिया है ताकि पारदर्शिता बनी रहे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि परियोजना के क्रियान्वयन में देरी होती है, तो इसकी लागत तेजी से बढ़ेगी, जिससे न केवल सरकारी संसाधनों की हानि होगी बल्कि स्थानीय लोगों को भी असुविधा का सामना करना पड़ेगा। परियोजना को रोकने या विलंबित करने से धन, समय और श्रम-तीनों की बर्बादी होगी, इसलिए इसे शीघ्र गति देने की अनुशंसा की गई है।
6000 एकड़ में बनेगा नया शहर, किसानों को मिलेगा नियमानुसार मुआवजा
रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि ‘नया गोरखपुर’ को कुल 6000 एकड़ भूमि पर विकसित किया जाएगा, जिसमें से लगभग 619 एकड़ भूमि कुसम्ही क्षेत्र के तीन गांवों में आती है। इन गांवों के कुछ किसानों ने स्वेच्छा से जमीन देने से इंकार कर दिया, जिसके बाद सरकार ने अनिवार्य अर्जन की प्रक्रिया शुरू की। इसी प्रक्रिया के अंतर्गत सामाजिक प्रभाव अध्ययन कराया गया ताकि प्रभावित परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का आकलन किया जा सके। रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से अनुशंसा की गई है कि जिन लोगों की भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है, उन्हें नियमानुसार मुआवजा दिया जाए और उनकी आय में संभावित नुकसान की भरपाई के लिए विशेष पुनर्वास और आय-सृजन कार्यक्रम शुरू किए जाएं। यदि अधिग्रहण के दौरान किसी प्रकार की सामुदायिक संरचना-जैसे सड़कें, शैक्षणिक संस्थान या धार्मिक स्थल-प्रभावित होते हैं, तो उनके पुनर्निर्माण की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए। रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि परियोजना क्षेत्र की अधिकांश भूमि कृषि योग्य है, जहां किसान वर्षों से खेती, लघु उद्योग और आवासीय प्रयोजनों में इसका उपयोग कर रहे थे। अधिग्रहण के बाद इन उपयोगों पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है, लेकिन दीर्घकाल में यह परियोजना स्थानीय लोगों को बेहतर आधारभूत संरचना, परिवहन, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सुविधाओं के साथ मजबूत रोजगार अवसर प्रदान करेगी। यह विकास मॉडल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को शहरी अर्थव्यवस्था से जोड़ने की दिशा में एक ठोस कदम साबित होगा।
किसानों की आपत्तियां और आगे की प्रक्रिया
हालांकि परियोजना के सामाजिक और आर्थिक लाभों की बात रिपोर्ट में विस्तार से की गई है, लेकिन कई किसान अपनी भूमि देने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि 2016 के बाद से गोरखपुर जिले में सर्किल रेट में कोई संशोधन नहीं हुआ है, जबकि वर्तमान बाजार मूल्य कई गुना बढ़ चुका है। किसानों की मांग है कि सर्किल रेट में बढ़ोतरी की जाए और उसके चार गुना के बराबर भुगतान किया जाए ताकि उन्हें उचित मुआवजा मिल सके। जिला प्रशासन ने किसानों की इन आपत्तियों पर ध्यान देने का आश्वासन दिया है और आगे की प्रक्रिया भी तय कर दी गई है। अब बहुसाखीय समूह का गठन किया जाएगा, जिसमें दो अर्थशास्त्री, दो समाजशास्त्री, एक तकनीकी विशेषज्ञ और प्रभावित पंचायतों के दो प्रधान शामिल होंगे। यह समूह एग्रीमा संस्था द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का विश्लेषण करेगा और अपनी अनुशंसा शासन को भेजेगा। इसके बाद शासन धारा 11 के अंतर्गत अधिसूचना जारी करेगा, जिसमें प्रस्तावित भूमि का गजट प्रकाशन, मुनादी और आपत्ति दर्ज करने की प्रक्रिया शामिल होगी। 60 दिनों की अवधि में प्राप्त आपत्तियों की सुनवाई की जाएगी और फिर धारा 19 के तहत अधिग्रहण की अंतिम कार्रवाई की जाएगी। इसके साथ ही किसानों को मुआवजा वितरण की प्रक्रिया शुरू होगी। रिपोर्ट का यह चरण दर्शाता है कि प्रशासन परियोजना को पारदर्शी तरीके से आगे बढ़ाना चाहता है ताकि विकास और न्याय, दोनों का संतुलन बना रहे। ‘नया गोरखपुर’ परियोजना न केवल शहर की आवासीय जरूरतों को पूरा करेगी बल्कि ग्रामीण जीवन को भी आधुनिक विकास की धारा से जोड़ेगी। दीर्घकाल में यह योजना पूर्वांचल के लिए एक आर्थिक और सामाजिक बदलाव का केंद्र बन सकती है।




