गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – गोरखपुर जिले के चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र की सियासी फिज़ा एक बार फिर बदलती नज़र आ रही है। जहां कुछ दिन पहले चंद परिवार की बहू अस्मिता चंद ने चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, वहीं अब उनके पारंपरिक विरोधी नंद परिवार ने भी राजनीतिक मैदान में उतरने की तैयारी शुरू कर दी है। गोला क्षेत्र में जगह-जगह लगे नए होर्डिंग्स ने इस चुनावी मुकाबले को नया मोड़ दे दिया है। नंद परिवार के युवा चेहरे साहिल विक्रम तिवारी ने अपने पोस्टरों के जरिए यह संकेत दे दिया है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में वे भी ताल ठोकने वाले हैं। उनके होर्डिंग्स पर लिखा है – “किसमें कितना है दम, अब बताएंगे हम,” और नीचे मोटे अक्षरों में अंकित है – “आगाज़-ए-2027।” इन पोस्टरों पर साहिल विक्रम की तस्वीर और “नंद परिवार, गोला” का नाम साफ दिखाई देता है। इन होर्डिंग्स ने न केवल राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है, बल्कि स्थानीय स्तर पर चर्चा का केंद्र बन गए हैं। लोग इसे चंद बनाम नंद परिवार की परंपरागत राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की अगली कड़ी मान रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि जिस समय अस्मिता चंद की गाड़ियों पर “चिल्लूपार दिखाएगा दम, 2027 लड़ेंगे हम” लिखा नजर आया, उसी दौरान नंद परिवार की ओर से जवाबी पोस्टर आ गए, जिससे दोनों परिवारों के बीच सियासी तापमान और बढ़ गया।
दोनों परिवारों का राजनीतिक इतिहास: परंपरा, प्रभाव और वर्चस्व की जंग
गोला और चिल्लूपार क्षेत्र में चंद और नंद परिवारों की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता कई दशकों पुरानी है। चंद परिवार क्षेत्र का प्रभावशाली क्षत्रिय परिवार माना जाता है। इस परिवार के वरिष्ठ नेता मारकंडेय चंद उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके हैं। उनके पुत्र सीपी चंद लगातार दो बार से गोरखपुर-महराजगंज स्थानीय निकाय निर्वाचन क्षेत्र से एमएलसी हैं और पार्टी संगठन में मजबूत पकड़ रखते हैं। परिवार का कारोबार रियल एस्टेट और सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़ा है। इसी परिवार से अस्मिता चंद आती हैं, जो मारकंडेय चंद के भाई की बहू हैं। अस्मिता ने हाल ही में चिल्लूपार से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, जिससे स्थानीय राजनीति में हलचल मच गई है। दूसरी ओर, नंद परिवार क्षेत्र का एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार है। इस परिवार के डॉ. अच्युतानंद तिवारी 1984 से 1989 तक धुरियापार विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक रहे। उनकी राजनीतिक यात्रा कांग्रेस और सपा तक भी पहुंची, हालांकि दोबारा विधानसभा नहीं पहुंच सके। बावजूद इसके चिकित्सक होने के नाते उनका सामाजिक प्रभाव क्षेत्र में गहरा रहा। उनके भाई डॉ. विजयानंद तिवारी ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं, जबकि अब अगली पीढ़ी से साहिल विक्रम तिवारी ने राजनीतिक बागडोर संभाल ली है। साहिल, जो कभी कांग्रेस के जिला महासचिव रहे, अब स्वतंत्र रूप से अपनी छवि और प्रभाव को आगे बढ़ा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, वे आगामी विधानसभा चुनाव में बसपा से टिकट की दावेदारी कर सकते हैं।
परंपरा से परिवारवाद तक: दोनों घरानों की सियासी ताकत पर नजर
चंद और नंद परिवारों का प्रभाव इतना गहरा है कि गोला नगर में इनके नाम पर दो प्रमुख चौराहे “चंद चौराहा” और “नंद चौराहा” के रूप में जाने जाते हैं। चंद चौराहा नगर पंचायत के अभिलेखों में दर्ज है, जबकि नंद चौराहा स्थानीय लोगों की बोली में प्रसिद्ध है। यह दोनों चौराहे इन परिवारों की सियासी जड़ें और सामाजिक पहचान का प्रतीक माने जाते हैं। नंद परिवार का इतिहास भी गौरवशाली रहा है। 1920 में भगवान दत्त तिवारी डिप्टी इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स थे, उनके पुत्र श्याम सुंदर तिवारी एक्साइज डिपार्टमेंट में डिप्टी सुपरिंटेंडेंट रहे। उनके तीन पुत्रों में डॉ. अच्युतानंद, घनानंद और डॉ. विजयानंद तिवारी ने अपने-अपने क्षेत्र में पहचान बनाई। डॉ. अच्युतानंद तिवारी ने एमबीबीएस में गोल्ड मेडल हासिल किया और विधायक बने, वहीं घनानंद तिवारी 1960 से 1967 तक गोला नगर पालिका के चेयरमैन रहे। इस परिवार के सदस्य आज भी चिकित्सक, व्यवसायी और सरकारी सेवा में सक्रिय हैं। वहीं 1992 में परिवार के सदस्य प्रफुल्ल तिवारी की हत्या ने दोनों परिवारों के बीच वैमनस्य को और गहरा कर दिया था। तब से दोनों पक्षों के रिश्तों में राजनीतिक टकराव बना हुआ है। अब जब नई पीढ़ी चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले विधानसभा चुनाव में किस परिवार का प्रभाव भारी पड़ता है। क्षेत्र में माना जा रहा है कि साहिल विक्रम की नई पीढ़ी की राजनीति और अस्मिता चंद की पारंपरिक राजनीतिक विरासत के बीच चिल्लूपार की सियासत एक बार फिर चर्चा में रहेगी। आने वाले महीनों में यह मुकाबला न केवल दो परिवारों के वर्चस्व की परीक्षा होगा, बल्कि स्थानीय मतदाताओं के रुझान को भी दिशा देगा कि वे परंपरा के साथ हैं या बदलाव के साथ।




