गोरखपुर की सांस्कृतिक धरती पर रविवार की शाम लोकसंगीत की ऐसी महक बिखरी, जिसने हर श्रोता के मन को छू लिया। शहर के पुस्तक महोत्सव के मंच पर जैसे ही प्रसिद्ध लोकगायिका मालिनी अवस्थी ने कदम रखा, पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट और जयघोष से गूंज उठा। उनके आगमन से पहले ही दर्शकों का उत्साह देखने लायक था। दोपहर से ही लोग कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने लगे थे ताकि उन्हें अपने पसंदीदा कलाकार की झलक मिल सके। शाम ढलते ही मैदान खचाखच भर गया और जब मालिनी अवस्थी ने माइक संभाला, तो हर किसी की निगाहें बस मंच पर टिकी रहीं। उन्होंने शुरुआत एक मधुर लोकभक्ति गीत से की, जिसने पंडाल के माहौल को आध्यात्मिक बना दिया। गीत के सुरों के साथ दर्शकों ने “जय श्रीराम”, “हर हर महादेव” और “वंदे मातरम्” के नारों से वातावरण को भक्तिमय बना दिया। मालिनी की आवाज़ और दर्शकों की श्रद्धा का यह संगम उस शाम को अविस्मरणीय बना गया।
गोरखपुर से जुड़ाव पर कही दिल छू लेने वाली बात, गोरखनाथ की धरती को बताया ‘गुरु भूमि’
कार्यक्रम के दौरान मालिनी अवस्थी ने गोरखपुर से अपने भावनात्मक जुड़ाव को याद करते हुए कहा कि यह शहर उनके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा रहा है। उन्होंने बताया, “बहुत कम लोग जानते हैं कि गोरखनाथ मेरी गुरु भूमि है। मैंने यहीं की गलियों में अपना बचपन बिताया है और इस धरती से मेरी आत्मा तक जुड़ी हुई है।” उनके इन शब्दों पर दर्शक भावुक हो उठे और तालियों से उनका अभिवादन किया। इसके बाद उन्होंने बाबा गुरु गोरखनाथ पर आधारित एक भक्ति गीत प्रस्तुत किया, जिसके हर शब्द में भक्ति और श्रद्धा की झलक थी। गीत के आरंभ होते ही पंडाल में बैठे सैकड़ों लोग एक साथ गुनगुनाने लगे। उनके स्वर के साथ जब श्रोताओं की आवाज़ें जुड़ीं, तो लगा मानो पूरा माहौल एक सामूहिक प्रार्थना में बदल गया हो। मालिनी की गायकी में न केवल संगीत का रस था, बल्कि लोक परंपराओं की वह गहराई भी झलक रही थी, जो उत्तर भारत की मिट्टी की पहचान है। इस गीत के माध्यम से उन्होंने अपने कला-सफर और अपनी जड़ों के प्रति सम्मान को बड़े सलीके से व्यक्त किया।
‘रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे’ ने बांधा समां, तालियों से गूंजा पंडाल
दर्शकों की लगातार मांग पर मालिनी अवस्थी ने जब अपना लोकप्रिय गीत ‘रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे’ गाया, तो पूरा पंडाल झूम उठा। इस गीत ने जैसे ही मंच पर स्वर लिया, लोगों के चेहरे खिल उठे। कुछ दर्शक अपनी जगह पर खड़े होकर थिरकने लगे तो कुछ ने मोबाइल में उस पल को कैद कर लिया। गीत के समाप्त होते ही तालियों और जयघोष की आवाज़ें गूंजने लगीं। उनकी इस प्रस्तुति ने यह साबित कर दिया कि मालिनी अवस्थी न केवल एक गायिका हैं बल्कि लोकसंस्कृति की जीवंत धरोहर भी हैं। कार्यक्रम के अंत में उन्होंने भगवान श्रीराम और माता सीता को समर्पित एक भक्तिगीत प्रस्तुत किया, जिसने पूरे सभागार को भावविभोर कर दिया। गीत के हर शब्द में आस्था और प्रेम की गहराई थी। दर्शक देर तक तालियां बजाते रहे और मंच की ओर श्रद्धा से देखते रहे। इस प्रस्तुति के साथ गोरखपुर पुस्तक महोत्सव की यह शाम एक यादगार सांस्कृतिक अनुभव बन गई, जिसने लोकसंगीत की परंपरा और भक्ति की शक्ति दोनों को एक साथ जीवंत कर दिया। मालिनी अवस्थी ने अपने सुरों और भावनाओं से न केवल गीत सुनाया, बल्कि गोरखपुर की जनता के दिलों में भक्ति और आनंद का अमिट छाप छोड़ दी।




