गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – गोरखपुर के चर्चित महुआचाफी कांड ने पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जांच में यह खुलासा हुआ है कि हाईवे किनारे के थानों और चौकियों पर लंबे समय से तैनात कुछ पुलिसकर्मी पशु तस्करों के लिए सुरक्षाकवच बन गए थे। वे न केवल तस्करों को रास्तों की जानकारी देते थे, बल्कि गश्त और बैरियर की स्थिति तक बता देते थे ताकि तस्कर बिना किसी रोकटोक के अपने ट्रकों और पिकअप से माल को सुरक्षित स्थान तक पहुंचा सकें। यह सांठगांठ महज एक या दो घटनाओं तक सीमित नहीं थी बल्कि लंबे समय से चल रही थी, जिससे तस्कर निडर होकर अपने नेटवर्क का विस्तार कर रहे थे।
बैरियर और चेकिंग महज औपचारिकता
एसटीएफ और क्राइम ब्रांच की संयुक्त जांच में साफ हो गया है कि हाईवे पर लगाए गए बैरियर और नियमित चेकिंग मात्र औपचारिकता बनकर रह गई थी। तस्करों को पहले से सूचना मिल जाती थी कि कब और कहां गश्त कमजोर है, किस रास्ते से निकलना सुरक्षित रहेगा और कहां पर पुलिस की मौजूदगी नहीं है। इस तरह की अंदरूनी जानकारी मिलने के बाद तस्कर रातों-रात सैकड़ों किलोमीटर दूर तक माल पहुंचाने में सफल हो जाते थे। बदले में मोटी रकम पुलिसकर्मियों तक पहुंचती थी। यह व्यवस्था इतनी मजबूत हो चुकी थी कि स्थानीय लोग भी अब इस पूरे तंत्र पर सवाल उठाने लगे हैं।
एडीजी-डीआईजी की सख्त कार्रवाई की तैयारी
महुआचाफी कांड के बाद एडीजी जोन और डीआईजी रेंज ने इस पूरे नेटवर्क पर सख्त रुख अपनाया है। उन्होंने संकेत दिए हैं कि हाईवे थानों और चौकियों पर लंबे समय से तैनात पुलिसकर्मियों को जल्द ही हटाया जाएगा और बड़े पैमाने पर फेरबदल किया जाएगा। पुलिस विभाग का कहना है कि इस तरह के भ्रष्टाचार और सांठगांठ को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। आने वाले दिनों में न केवल संबंधित पुलिसकर्मियों पर विभागीय जांच बैठाई जाएगी बल्कि यदि किसी की संलिप्तता पाई गई तो निलंबन और मुकदमा दर्ज करने तक की कार्रवाई की जाएगी। प्रशासन का लक्ष्य है कि भविष्य में इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों और आम जनता का पुलिस पर भरोसा बहाल हो सके।