समाज सुधार और दलित उत्थान के प्रणेता – गोरक्षपीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ का जीवन संत परंपरा, सामाजिक चेतना और राष्ट्र सेवा का अनूठा संगम था। उन्होंने ऐसे दौर में दलित समाज की ओर हाथ बढ़ाया जब अस्पृश्यता की जकड़न गहरी थी। काशी के डोमराजा के घर भोजन करके उन्होंने न सिर्फ अपने समाज को चौंकाया बल्कि समरसता का संदेश भी दिया। यह कदम उनके जीवन मिशन का आधार बना और दलित उत्थान की दिशा में उनका अभियान निरंतर आगे बढ़ता गया। यही परंपरा आज उनके शिष्य और गोरक्षपीठ के वर्तमान पीठाधीश्वर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी आगे बढ़ा रहे हैं। 1981 में मीनाक्षीपुरम (तमिलनाडु) में हुए धर्मांतरण की घटना से व्यथित होकर उन्होंने सामाजिक एकता के लिए संत समाज को साथ लेकर चलना शुरू किया। यही सोच उन्हें राजनीति के क्षेत्र में भी ले आई, जहां उन्होंने हिंदू समाज की कुरीतियों को समाप्त करने और एकजुटता की अलख जगाई। उनकी पुण्यतिथि हर सितंबर गोरखनाथ मंदिर में विशेष आयोजन का अवसर बनती है। इस साल महंत दिग्विजयनाथ की 56वीं और महंत अवेद्यनाथ की 11वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि समारोह 4 से 11 सितंबर तक चलेगा जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विशेष रूप से शामिल होंगे।
राम मंदिर आंदोलन में केंद्रीय भूमिका
महंत अवेद्यनाथ का नाम राम मंदिर आंदोलन के इतिहास में अमर है। वे 1984 में गठित श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष रहे और आजीवन रामजन्म भूमि न्यास समिति के सदस्य रहे। उन्हें आंदोलन का प्राण कहा जाता था क्योंकि उन्होंने संत समाज की विभिन्न परंपराओं को जोड़कर इसे जनांदोलन का रूप दिया। विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक स्वर्गीय अशोक सिंघल ने उनके निधन पर उन्हें “रामजन्मभूमि आंदोलन के प्राण” बताया था। उनकी सबसे बड़ी अभिलाषा अयोध्या में रामलला का भव्य मंदिर देखना थी। यद्यपि यह सपना उनके जीवनकाल में पूरा न हो सका, लेकिन आज जब राम मंदिर साकार रूप ले चुका है तो कहा जाता है कि उनकी आत्मा प्रसन्न होगी। राजनीति में उन्होंने चार बार सांसद और पांच बार विधायक के रूप में जनप्रतिनिधित्व किया। उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत करने के लिए गोरक्षपीठ से जुड़ी संस्थाओं का विकास किया और मासिक पत्रिका “योगवाणी” का संपादन भी किया। उनका जीवन नाथ परंपरा की आध्यात्मिक शक्ति और समाज सुधार की व्यवहारिक दृष्टि का अद्वितीय उदाहरण था।
संत की इच्छा मृत्यु और आध्यात्मिक विरासत
12 सितंबर 2014 को महंत अवेद्यनाथ का ब्रह्मलीन होना एक संत की इच्छा मृत्यु जैसा था। बताया जाता है कि उन्होंने अपने गुरुदेव महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर ही गोरखनाथ मंदिर में शरीर त्यागने की इच्छा जताई थी और नियति ने उनकी यह कामना पूरी कर दी। लंबे समय तक कैंसर से जूझने के बावजूद उनका जीवन चिकित्सकों की भविष्यवाणियों से परे चला। डॉक्टर जहां तीन वर्ष की आयु सीमा बताते थे, वहीं वे चौदह वर्ष अतिरिक्त जीवित रहे। योगी आदित्यनाथ अक्सर इसे अपने गुरुदेव के योग और अध्यात्म का चमत्कार बताते हैं। अपने अंतिम वर्षों में भी उनका जीवन समाज और पीठ की सेवा में समर्पित रहा। गोरखनाथ मंदिर की भव्यता, शिक्षा और सांस्कृतिक संस्थाओं का विस्तार और जनसेवा की परंपरा उनकी ही देन है जिसे आज योगी आदित्यनाथ और भी आगे बढ़ा रहे हैं। महंत अवेद्यनाथ का जीवन यह दर्शाता है कि संत का मार्ग त्याग, संघर्ष और समाज सेवा का होता है। उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें नमन करना न सिर्फ श्रद्धांजलि है बल्कि उनके आदर्शों को आगे बढ़ाने का संकल्प भी है।