गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – गोरखपुर के बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में चल रहे ‘गोरखपुर रंग महोत्सव’ के चौथे दिन मंगलवार की शाम दर्शकों ने एक अनोखा अनुभव किया, जब भारतेन्दु नाट्य अकादमी, लखनऊ की टीम ने महाभारत कालीन योद्धा ‘कर्ण’ के जीवन पर आधारित नाटक ‘कर्ण-गाथा’ का मंचन किया। नाटक की शुरुआत से लेकर अंत तक प्रेक्षागृह में सन्नाटा पसरा रहा, और जब भी कलाकारों ने अपनी भावनाओं को संवादों के माध्यम से व्यक्त किया, दर्शकों की तालियां गूंज उठीं। निर्देशक ओएसिस सउगाइजम के निर्देशन और आसिफ अली की लेखनी में सजी इस प्रस्तुति ने दर्शकों को उस युग में पहुंचा दिया, जहां एक योद्धा अपने कर्म, कर्तव्य और वचन के प्रति अडिग खड़ा था, भले ही भाग्य और समाज दोनों उसके विरुद्ध क्यों न हों। नाटक में कुंती द्वारा अपने पुत्र का त्याग, परशुराम और द्रोणाचार्य द्वारा अस्वीकार, द्रौपदी द्वारा अपमान और इंद्र द्वारा कवच-कुंडल हरण जैसे प्रसंगों को इतनी गहराई से प्रस्तुत किया गया कि दर्शक भावविभोर हो उठे। मंच सज्जा और प्रकाश व्यवस्था ने कहानी के हर भाव को और अधिक प्रभावशाली बना दिया।
कलाकारों के अभिनय ने छुआ दिल, पारंपरिक और आधुनिकता का संगम बनी प्रस्तुति
‘कर्ण-गाथा’ की सबसे बड़ी खूबी थी इसके कलाकारों का दमदार अभिनय और दृश्य संयोजन। कर्ण की भूमिका में आशुतोष जायसवाल ने अपने अभिनय से एक साधारण इंसान के भीतर छिपे त्याग और संघर्ष को बखूबी जीवंत किया। कृष्ण के रूप में राजश्री राय चौधरी और कुंती की भूमिका में श्रुतिकीर्ति सिंह ने भी अपनी संवेदनशील अदायगी से दर्शकों का दिल जीत लिया। इसके अलावा अमृता सिंह (राधा व द्रौपदी), प्रखर पांडेय (अधिरथ), वैष्णवी सेठ (वृषाली), अर्घ्य सामंत (द्रोणाचार्य), धीरज कुमार (अर्जुन) और चैतन्य महाप्रभु त्रिपाठी (दुर्योधन) जैसे कलाकारों ने भी अपने किरदारों को गहराई से निभाया। इस नाट्य प्रस्तुति की कहानी रवीन्द्रनाथ टैगोर के ‘कर्ण-कुंती संवाद’ से प्रेरित थी, जिसमें रामधारी सिंह दिनकर की ‘रश्मिरथी’, शिवाजी सावंत की ‘मृत्युंजय’ और अज्ञेय की कविताओं के अंशों को बड़ी खूबसूरती से जोड़ा गया था। मंच की साज-सज्जा पारंपरिक भारतीय रंगमंच की झलक लिए हुए थी, लेकिन उसमें आधुनिक तकनीक का ऐसा संयोजन था जिसने प्रस्तुति को नई ऊंचाई दी। नाटक के समापन पर जब कर्ण अपने वचन को निभाने के लिए कवच-कुंडल त्यागता है, तो पूरा सभागार भावनाओं से भर उठता है।
पेंटिंग-नुक्कड़ नाटक विजेताओं का सम्मान और लोकगीतों ने बांधा समां
नाटक के आरंभ से पहले मंच पर पेंटिंग और नुक्कड़ नाटक प्रतियोगिता के विजेताओं को सम्मानित किया गया। इन प्रतिभागियों को क्रमशः ₹11,000, ₹5,000 और ₹2,500 के पुरस्कार प्रदान किए गए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आर.डी. सिंह और विशिष्ट अतिथि अतुल सराफ, राजू जायसवाल तथा कुमार आनंद ने विजेताओं को सम्मानित करते हुए कहा कि ऐसे आयोजनों से शहर की सांस्कृतिक परंपरा मजबूत होती है और युवा पीढ़ी को अपनी कला को मंच देने का अवसर मिलता है। नाटक से पूर्व लोकगायकों पिंटू प्रीतम और साक्षी श्रीवास्तव की जोड़ी ने अपने पारंपरिक गीतों से माहौल को रंगीन बना दिया। “सेरवा चढ़ल देवी माई गर्जत आवें हो” और “कवन रंग मुंगवा कवन रंग मोतिया” जैसे गीतों पर दर्शक झूम उठे। संचालन डॉ. ब्रजेन्द्र नारायण ने किया और स्वागत अभियान थिएटर ग्रुप के अध्यक्ष नारायण पांडेय ने किया। आयोजकों ने बताया कि महोत्सव के अंतिम दिन जबलपुर के रंगाभरण थिएटर ग्रुप द्वारा विजयदान देथा की कहानी पर आधारित नाटक ‘जस की तस’ का मंचन किया जाएगा। गोरखपुर रंग महोत्सव का यह चौथा दिन न केवल नाट्य प्रस्तुति के लिए बल्कि कला, संगीत और सृजनशीलता के उत्सव के रूप में भी यादगार बन गया।