गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – गोरखपुर में जारी पुस्तक महोत्सव में इस बार कुछ ऐसा देखने को मिला जिसने यह साबित कर दिया कि डिजिटल युग में भी किताबों का आकर्षण कम नहीं हुआ है। फेस्टिवल के तीसरे दिन पाठकों की भारी भीड़ उमड़ी और साहित्य प्रेमियों ने अपने-अपने पसंदीदा लेखकों की किताबें खरीदने में गहरी रुचि दिखाई। इस बीच चर्चा का सबसे बड़ा विषय बनी धर्मवीर भारती की प्रसिद्ध कृति ‘गुनाहों के देवता’। कई पाठकों ने कहा कि इस उपन्यास की भावनात्मक गहराई किसी भी फिल्म या वेब सीरीज से कहीं अधिक प्रभावशाली है। कृष्णा मिश्रा नामक पाठक ने कहा, “जब मैंने ‘गुनाहों के देवता’ पढ़ी तो मुझे एहसास हुआ कि किताबों में वो जज्बात छिपे हैं जो किसी भी मूवी को फीका कर सकते हैं। जितना भावनात्मक जुड़ाव लोग सैय्यारा जैसी फिल्मों से महसूस करते हैं, उससे कहीं अधिक यह उपन्यास पैदा करता है।” उन्होंने बताया कि यह किताब पढ़ने के बाद उनका झुकाव साहित्यिक रचनाओं की ओर और बढ़ गया है और वे ऐसी ही और कहानियों की तलाश में फेस्टिवल में पहुंचे हैं। यही नहीं, पुस्तक प्रेमियों ने यह भी कहा कि किताबें केवल कहानी नहीं, बल्कि सोचने की एक नई दिशा देती हैं। इंटरनेट अगर ज्ञान की नदी है तो किताबें ज्ञान का अथाह सागर हैं।
गोरखपुर पुस्तक महोत्सव में उमड़ा जनसैलाब: हर उम्र के पाठक हुए शामिल
देवदीन उपाध्याय विश्वविद्यालय परिसर में नेशनल बुक ट्रस्ट की ओर से आयोजित इस फेस्टिवल में लगभग दो सौ स्टॉल लगाए गए हैं, जिनमें हजारों किताबों का विशाल संग्रह मौजूद है। सुबह से लेकर शाम तक यहां हजारों की संख्या में लोग पहुंच रहे हैं और अपने पसंदीदा लेखकों की रचनाओं को पढ़ने के साथ खरीद भी रहे हैं। खास बात यह रही कि इस बार युवा वर्ग ने भी किताबों के प्रति अप्रत्याशित उत्साह दिखाया। पुस्तक विक्रेताओं ने बताया कि हर दिन सबसे अधिक विजिट करने वाले युवा ही हैं। स्टॉल पर हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत, उर्दू और भोजपुरी सहित भारतीय भाषाओं की साहित्यिक और शिक्षाप्रद किताबों की भरमार है। पाठकों की पसंद में मुंशी प्रेमचंद, ओशो, स्वामी विवेकानंद, राहुल सांकृत्यायन और तुलसीदास जैसे महान लेखकों की रचनाएं शीर्ष पर हैं। स्थानीय लेखक भी इस बार चर्चा में हैं। सेंट जोसेफ कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर कनक लता मिश्रा की किताब ‘डेढ़ पाव ज़िंदगी पुल भर मन’ को पाठकों ने खूब सराहा। प्रोफेसर कनक ने बताया कि उनकी किताब को बेहतरीन रिस्पॉन्स मिल रहा है और अब तक अधिकांश प्रतियां बिक चुकी हैं। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के युग में जहां लोग स्क्रीन के आदी हो गए हैं, ऐसे आयोजनों से पढ़ने की संस्कृति को नया जीवन मिल रहा है।
किताबों का बढ़ता क्रेज और ओशो की लोकप्रियता ने खींचा ध्यान
बुक फेस्टिवल में इस बार ओशो की किताबों की मांग सबसे अधिक रही। अमरीश मिश्रा, जो लखनऊ से किताबों का बड़ा कलेक्शन लेकर आए हैं, ने बताया कि उनके स्टॉल पर ज्यादातर युवा ओशो की किताबें खरीद रहे हैं। उन्होंने कहा, “सोशल मीडिया पर ओशो के कोट्स देखकर बहुत से युवाओं ने इन किताबों के प्रति रुचि दिखाई है, और अब वे उनकी पूरी फिलॉसफी को समझना चाहते हैं।” इसी तरह, कई छात्र-छात्राएं पॉकेट बुक्स की तलाश में पहुंचे, जिनमें केमिस्ट्री, फिजिक्स, बॉटनी और जियोग्राफी जैसे विषयों की किताबें शामिल हैं। अध्ययनशील बच्चों ने बताया कि ये किताबें सस्ती होने के साथ-साथ पढ़ाई में बेहद उपयोगी हैं। इस फेस्टिवल में साहित्यिक उपन्यासों के साथ-साथ धार्मिक, वैज्ञानिक, ऐतिहासिक और हास्य विधा की किताबें भी आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं।
आयोजन के दौरान रितेश कुमार नाम के पाठक ने कहा कि वह खासतौर पर दलित लेखक तुलसीराम की ‘मुरधईया’ किताब खोजने आए हैं, जो आमतौर पर बाजार में नहीं मिलती। वहीं, युवती शिवानी ने कहा कि वह कभी किताबें नहीं पढ़ती थी, लेकिन इस फेस्टिवल में आकर उसकी सोच बदल गई। अब उसने कई किताबें खरीदी हैं और पढ़ने की शुरुआत की है। छात्र आदर्श पांडेय ने कहा, “किताबों का कोई विकल्प नहीं हो सकता। जो लोग पढ़ते हैं, वही समझ सकते हैं कि किताबों में जो गहराई है, वह कहीं और नहीं मिलती।”
इस तरह गोरखपुर बुक फेस्टिवल ने यह साबित कर दिया कि चाहे दौर कितना भी डिजिटल क्यों न हो, किताबों की महक और उनका एहसास आज भी लोगों के दिलों को छूता है। युवाओं का यह बढ़ता रुझान न सिर्फ पढ़ने की आदत को पुनर्जीवित कर रहा है, बल्कि समाज में साहित्य के प्रति सम्मान और संवेदनशीलता की भावना को भी मजबूत बना रहा है।




