गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – गोरखपुर में करोड़ों रुपये के स्मार्ट मीटर घोटाले को लेकर विवाद लगातार गहराता जा रहा है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने गंभीर आरोप लगाए हैं कि इस पूरे प्रकरण में निजी कंपनी मेसर्स जीनस को बचाने के लिए विभागीय अधिकारियों ने घोटाले को उजागर करने वाले अभियंताओं पर कार्रवाई की है। समिति का कहना है कि पुराने मीटरों की जगह लगाए गए स्मार्ट मीटरों की रीडिंग में लगातार गड़बड़ियां सामने आ रही थीं, जिन्हें विभागीय अधिकारियों ने रिजेक्ट किया था और पुराने मीटर उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे। इसके बावजूद कंपनी ने मीटर उपलब्ध नहीं कराए। आरोप है कि 17 सितंबर की आधी रात को विभागीय पोर्टल की आईडी से छेड़छाड़ कर 13,355 रिजेक्टेड केस बिना अनुमति अप्रूव कर दिए गए, जिससे राजस्व को भारी नुकसान पहुंचा। समिति का आरोप है कि मुख्य अभियंता स्तर से लेकर उच्च प्रबंधन तक किसी ने इस मामले में जांच समिति का गठन नहीं किया और इसके उलट घोटाला सामने लाने वाले अभियंताओं को निलंबित कर दिया गया। कई अभियंताओं से दबाव में बयान दिलवाए गए कि उन्होंने अपनी आईडी से केस अप्रूव किए थे, जिससे असली दोषियों को बचाया जा सके।
निजीकरण और आंदोलन की चेतावनी
विद्युत कर्मचारी संघर्ष समिति ने इस प्रकरण को सिर्फ एक घोटाले का मामला नहीं बल्कि बिजली विभाग के निजीकरण से जोड़कर देखा है। समिति का कहना है कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण की प्रक्रिया पहले से ही कर्मचारियों में आक्रोश का कारण बनी हुई है। आंदोलनकारी कर्मचारियों ने चेतावनी दी है कि यदि जबरन निजीकरण का टेंडर जारी किया गया तो प्रदेशभर में बिजलीकर्मी सामूहिक रूप से जेल भरो आंदोलन करेंगे। समिति ने बताया कि यह निजीकरण विरोधी आंदोलन 300 दिनों से लगातार जारी है और मंगलवार को प्रदेश के हर जिले में कर्मचारियों ने जोरदार प्रदर्शन किया। कर्मचारियों का आरोप है कि टेंडर प्रक्रिया को जानबूझकर गोपनीय रखा गया है और आरएफपी डॉक्यूमेंट केवल पांच लाख रुपये का शुल्क और गोपनीयता शपथ पत्र जमा करने के बाद ही देखा जा सकता है। कर्मचारियों का मानना है कि यह देश में पहली बार हो रहा है कि इतनी बड़ी सरकारी संपत्तियों को इस तरह गुपचुप तरीके से बेचा जा रहा है।
सरकार की नीति पर सवाल और जांच की मांग
विद्युत कर्मचारी संघर्ष समिति ने योगी आदित्यनाथ सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि सरकार वाकई पारदर्शिता के प्रति गंभीर है तो इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष और उच्च स्तरीय जांच कराई जानी चाहिए। समिति का दावा है कि जांच होने पर मुख्य अभियंता से लेकर शीर्ष प्रबंधन तक कई अधिकारी इस घोटाले में संलिप्त पाए जा सकते हैं। कर्मचारियों का कहना है कि यह मामला केवल वित्तीय अनियमितताओं का नहीं बल्कि जनहित से जुड़ा है, क्योंकि स्मार्ट मीटर घोटाले से आम उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ सकता है। समिति ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही जांच शुरू नहीं की गई और निलंबित अभियंताओं को न्याय नहीं मिला तो आंदोलन और उग्र होगा और जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी। कर्मचारियों ने सरकार से यह भी मांग की है कि निजीकरण की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी ढंग से सार्वजनिक की जाए और बिजली वितरण निगमों को टुकड़ों में बांटकर बेचने की योजना रद्द की जाए।