गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – गोरखपुर में स्मार्ट मीटर लगाए जाने के बाद से उपभोक्ताओं को बिजली बिल को लेकर गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। चौरी चौरा खंड क्षेत्र के शिवपुर गांव निवासी शिवकुमार की वेल्डिंग की छोटी सी दुकान है जहां चार किलोवाट क्षमता का कनेक्शन है। पहले हर महीने उनका बिल करीब 1500 रुपये आता था, लेकिन 28 दिसंबर 2024 को स्मार्ट मीटर लगने के बाद हालात बिगड़ गए। मीटर लगाने वाले कर्मचारी ने दो बड़ी गलतियां कीं—पहली, मीटर का नंबर गलत दर्ज किया और दूसरी, रीडिंग को 1850 की जगह 18,444 दर्ज कर दिया। इसके चलते शिवकुमार के बिल में लगातार वृद्धि होती गई और वह लाखों रुपये तक पहुंच गया। समस्या को लेकर उन्होंने अधिशासी अभियंता के कार्यालय के 90 से ज्यादा चक्कर काटे, लेकिन समाधान नहीं हुआ। स्थिति यह हो गई कि मीटर ढूंढने के लिए उन्हें खुद बिजली निगम के स्टोर खंड जाना पड़ा और 27 दिन की मशक्कत के बाद सही मीटर ढूंढने में सफलता मिली। जांच में रीडिंग 1850 ही पाई गई, लेकिन इसके बावजूद अब तक बिल सही नहीं हुआ है। आर्थिक और मानसिक तनाव ने उनकी जिंदगी मुश्किल बना दी है।
सरिता शर्मा समेत कई उपभोक्ता प्रभावित, लाखों का बिल बना सिरदर्द
यह समस्या केवल शिवकुमार तक सीमित नहीं है। गोरखनाथ क्षेत्र की उपभोक्ता सरिता शर्मा को भी स्मार्ट मीटर लगने के बाद भारी संकट झेलना पड़ा। उनके पुराने मीटर की रीडिंग 44,705 थी, लेकिन कर्मचारी ने इसे गलत दर्ज करते हुए चार लाख 44 हजार 709 लिख दिया। परिणामस्वरूप उनका बिजली बिल भी लाखों में पहुंच गया। ऐसे मामलों ने उपभोक्ताओं की नींद हराम कर दी है। स्मार्ट मीटर से पारदर्शिता और सुविधा की उम्मीद की गई थी, लेकिन कर्मचारियों की मनमानी और लापरवाही ने उपभोक्ताओं को उलझन में डाल दिया है। कई लोग बिल सही कराने के लिए लगातार विभागीय कार्यालयों के चक्कर लगा रहे हैं। चौरी चौरा खंड के अधिशासी अभियंता सुनील कुमार का कहना है कि संबंधित उपभोक्ताओं का बिल मंगलवार तक सही कर दिया जाएगा। हालांकि उपभोक्ताओं का कहना है कि वादों और आश्वासनों के बावजूद अब तक उन्हें कोई राहत नहीं मिली है।
मीटर जांच की प्रक्रिया और उपभोक्ताओं पर बोझ
बिजली निगम की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं। नियमों के मुताबिक, पुराने इलेक्ट्रॉनिक मीटर को हटाने के बाद उसकी जांच की जानी चाहिए और स्मार्ट मीटर की सीलिंग में दर्ज रीडिंग से उसका मिलान होना चाहिए। लेकिन वास्तविकता में बिना परीक्षण किए सीलिंग में दर्ज रीडिंग को सही मानकर बिल बना दिए जाते हैं। जब उपभोक्ता बिल अधिक होने की शिकायत करते हैं, तभी पुराने मीटर की जांच की जाती है। इस दौरान मीटर स्टोर खंड भेज दिया जाता है, जहां उपभोक्ता को खुद ही अपने मीटर की तलाश करनी पड़ती है। यह प्रक्रिया न केवल समय लेने वाली है बल्कि उपभोक्ताओं के लिए असहनीय बोझ भी बन गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय पर मीटर परीक्षण और सटीक रीडिंग दर्ज की जाए तो इस तरह की समस्याओं से बचा जा सकता है। लेकिन मौजूदा हालात ने यह साबित कर दिया है कि बिजली निगम की लापरवाही और अव्यवस्थित कार्यप्रणाली उपभोक्ताओं पर भारी पड़ रही है। उपभोक्ताओं की मांग है कि ऐसे मामलों की उच्चस्तरीय जांच हो और जिम्मेदार कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में किसी को ऐसी त्रासदी का सामना न करना पड़े।