गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – गोरखपुर के बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में चल रहे गोरखपुर रंग महोत्सव के तीसरे दिन सोमवार को जब प्रसिद्ध अभिनेता राजपाल यादव मंच पर पहुंचे तो पूरा सभागार तालियों की गूंज से भर उठा। उनकी सादगी और आत्मीयता ने दर्शकों का दिल जीत लिया। प्रवेश के साथ ही दर्शकों की भीड़ ने उन्हें घेर लिया, कोई उनसे सेल्फी लेने को आतुर था तो कोई हाथ मिलाने की कोशिश कर रहा था। उनके साथ मंच साझा कर रहे थे प्रसिद्ध रंग समीक्षक और ‘नाद रंग’ पत्रिका के संपादक आलोक पराड़कर। दोनों के बीच “रंगमंच से सिनेमा: अभिनय की कला का बदलता स्वरूप” विषय पर गहन चर्चा हुई, जिसने दर्शकों को अभिनय की जड़ों और सिनेमा की आत्मा से जोड़ दिया। राजपाल यादव ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि “रंगमंच ही सिनेमा की जड़ है। थियेटर एक कलाकार की दाईमां है, जो उसे परिपक्वता और अनुशासन सिखाती है।” उन्होंने आगे कहा कि “रंगमंच की सिद्धि ही सिनेमा में प्रसिद्धि दिलाती है, दोनों में कोई विरोध नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।” यादव ने रंगमंच की तुलना शून्य से करते हुए कहा कि जैसे शून्य किसी भी संख्या के साथ जुड़कर उसकी कीमत बढ़ा देता है, वैसे ही रंगमंच भी कलाकार को मूल्यवान बनाता है। उनके विचारों ने न केवल युवाओं को प्रेरित किया बल्कि रंगकर्मियों को अपने मूल मंच की ओर लौटने का संदेश भी दिया।
सकारात्मकता और जीवन दर्शन का संदेश
राजपाल यादव ने अपनी बातचीत के दौरान एक संस्कृत श्लोक पढ़ा – “धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, सुकर्म की जय हो, कुकर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो।” उन्होंने कहा कि जीवन में सकारात्मकता और सद्भावना ही सच्ची सफलता का आधार है। उनके मुताबिक, हर व्यक्ति अपने जीवन रूपी रंगमंच में एक पात्र है, फर्क बस इतना है कि कोई पात्र तप कर भभूत बनता है और कोई गंदगी में पड़ा रह जाता है। इस उदाहरण से उन्होंने युवाओं को समझाया कि दिशा और उद्देश्य जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है। उन्होंने कहा कि “पढ़ो, करो, आगे बढ़ो” जीवन का सबसे सटीक मंत्र है। यादव ने यह भी कहा कि उन्हें केवल कॉमेडियन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि एक ऐसे कलाकार के रूप में समझा जाना चाहिए जो हर भूमिका को एक चुनौती की तरह निभाता है। उन्होंने अपने थिएटर प्रेम को दर्शाते हुए घोषणा की कि अगले रंग महोत्सव में वे अपनी सोलो एक्टिंग नाटक ‘कलास्त्र’ को निःशुल्क प्रस्तुत करेंगे, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग रंगमंच की ताकत को महसूस कर सकें। यह घोषणा सुनकर दर्शक देर तक तालियां बजाते रहे।
कठपुतली कला और संगीतमय ‘रामायण’ ने बांधा समां
कार्यक्रम में रंगमंच की विविधता भी देखने को मिली। मंच पर कठपुतलियों की अनोखी प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। भोपाल की रंगश्री लिटिल बैले ट्रूप ने संगीतमय नाटक ‘रामायण’ का मंचन किया, जो 1953 से निरंतर प्रदर्शित हो रहा है। इस नाटक में लोकगीतों, नृत्य और कठपुतली शैली के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक एकता का सुंदर संदेश दिया गया। कथा को दो सूत्रधारों ने राजस्थानी अंदाज में आगे बढ़ाया, जबकि कलाकारों की भाव-भंगिमाओं ने कठपुतलियों जैसी सटीकता दिखाई। नाटक में 52 भूमिकाएं केवल 12 कलाकारों ने निभाईं। मुख्य पात्रों में प्रताप मोहंता (राम), उपेंद्र मोहंता (लक्ष्मण), दीप्ति मोहंता (सीता), अपूर्व दत्त मिश्रा (रावण), दयानिधि मोहंता (हनुमान) और सपना यादव (मंथरा) प्रमुख रहे। नाटक के निर्देशक शांति वर्धन और गुलवर्धन के निधन के बाद भी उनकी टीम सामूहिक रूप से इस परंपरा को आगे बढ़ा रही है। कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. रोली लाट, विकास केजरीवाल और अन्य अतिथियों ने दीप प्रज्वलन कर किया। स्वागत नारायण पांडेय ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन सुधा मोदी ने दिया। इसी क्रम में चल रही थिएटर वर्कशॉप में प्रसिद्ध निर्देशक महादेव सिंह लखावत ने प्रशिक्षुओं को अभिनय की बारीकियां सिखाईं। महोत्सव के चौथे दिन लखनऊ की भारतेन्दु नाट्य अकादमी की टीम ‘कर्ण गाथा’ नाटक प्रस्तुत करेगी, जिसका निर्देशन ओएसिस सउगाइजम करेंगे। इस प्रकार गोरखपुर रंग महोत्सव न केवल मनोरंजन का माध्यम बना, बल्कि कला, संस्कृति और मानवीय मूल्यों का संगम भी प्रस्तुत किया।