गोरखपुर में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश में बिजली का निजीकरण रोकना ही प्रदेश के विकास और नागरिकों की सुविधा के लिए सबसे आवश्यक कदम है। समिति का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा शुरू किए गए ‘समर्थ उत्तर प्रदेश – विकसित उत्तर प्रदेश – 2047’ विजन पोर्टल का वे स्वागत करते हैं और जल्द ही इस पर अपना विस्तृत प्रस्ताव अपलोड करेंगे। समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि यदि बिजली का संचालन सार्वजनिक क्षेत्र में नहीं रहा तो किसानों, गरीब परिवारों और मध्यम वर्गीय उपभोक्ताओं को सस्ती और निर्बाध बिजली उपलब्ध नहीं हो पाएगी। उन्होंने बताया कि विजन पोर्टल पर भेजे जाने वाले प्रस्ताव में विशेष रूप से घरेलू उपभोक्ताओं, किसानों और कर्मचारियों से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता दी जाएगी ताकि सरकार तक उनकी आवाज पहुंच सके। समिति का कहना है कि निजी कंपनियां बिजली को सेवा के बजाय व्यवसाय मानती हैं और यही कारण है कि दरें बढ़ने और आम जनता पर बोझ बढ़ने का खतरा है।
निजीकरण से जुड़ी समस्याएं और महंगे करार
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने विस्तार से पांच प्रमुख कारण गिनाए जिनसे बिजली का निजीकरण राज्य के विकास में बाधा बन सकता है। पहला कारण यह बताया गया कि किसानों और गरीब उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली उपलब्ध कराना केवल सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां ही कर सकती हैं, क्योंकि वे घाटे में भी सेवा देने को तैयार रहती हैं। दूसरा, सरकारी बिजली उत्पादन की लागत सबसे कम है जबकि निजी कंपनियों से खरीदी जाने वाली बिजली कहीं ज्यादा महंगी पड़ती है। तीसरा, वर्तमान में निजी कंपनियों के साथ 25 साल तक चलने वाले महंगे बिजली खरीद समझौते लागू हैं, जिन्हें समाप्त कर सौर ऊर्जा जैसे सस्ते विकल्पों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। चौथा, निजी कंपनियों का नजरिया सेवा नहीं बल्कि मुनाफाखोरी पर आधारित होता है, जिससे बिजली दरों में कई गुना वृद्धि की आशंका बनी रहती है। पांचवां और सबसे महत्वपूर्ण कारण समिति ने यह बताया कि बिजली का पूरा नेटवर्क साइबर सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील है और इसे निजी हाथों में सौंपना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी उचित नहीं है।
आंदोलन जारी रहेगा जब तक निर्णय वापस न हो
समिति ने यह भी स्पष्ट किया कि निजीकरण के खिलाफ उनका आंदोलन लगातार जारी है और यह अब 281वें दिन में प्रवेश कर चुका है। पदाधिकारियों ने कहा कि सरकार का फैसला वापस लिए जाने तक यह विरोध समाप्त नहीं होगा। समिति से जुड़े राघवेंद्र कुमार सिंह, योगेश यादव, विनय कुमार मल्ल, अखिलेश मल्ल, भोला प्रसाद, सीबी उपाध्याय, इस्माइल खान, पुष्पेंद्र सिंह समेत कई सदस्यों ने एक स्वर में कहा कि ‘विकसित उत्तर प्रदेश 2047’ का लक्ष्य तभी हासिल किया जा सकता है जब बिजली का संचालन पूरी तरह से सार्वजनिक क्षेत्र में रहेगा। उनका कहना था कि यदि राज्य सरकार वास्तव में किसानों, गरीबों और मध्यम वर्ग के हितों की रक्षा करना चाहती है तो उसे बिजली का निजीकरण रोकने के साथ ही उत्पादन और वितरण व्यवस्था को सरकारी तंत्र के माध्यम से ही संचालित करना होगा। समिति ने सरकार से अपील की कि जनता के व्यापक हित में निजीकरण की नीति पर तत्काल पुनर्विचार किया जाए और बिजली को सेवा के रूप में ही बनाए रखा जाए।