जांच में मिली मिलावट, मानकों से बाहर पाई गई दाल
गोरखपुर के बाजारों में बेची जा रही मटर की दाल की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। खाद्य सुरक्षा विभाग की ओर से की गई जांच में पाया गया कि थोक और खुदरा बाजार में उपलब्ध दाल में प्रतिबंधित खेसारी दाल की मिलावट की जा रही थी। यह कार्रवाई 19 मई को खाद्य सुरक्षा अधिकारी नरेंद्र कुमार के नेतृत्व में हुई थी, जब विभागीय टीम ने महेवा मंडी स्थित साईं जी ट्रेडर्स और पिपराइच क्षेत्र के खुदरा विक्रेता अमरनाथ गुप्ता से दाल के नमूने लिए। यह दाल वीके पल्सेस, हमीरपुर से सप्लाई हुई थी। नमूनों को राज्य प्रयोगशाला लखनऊ भेजा गया और लगभग तीन महीने बाद आई रिपोर्ट में पाया गया कि दाल में 16.57 प्रतिशत तक खेसारी की मिलावट मौजूद है। इसके अलावा जांच में यह भी सामने आया कि दाल में गंभीर दोष वाले बीजों की मात्रा 17.6 प्रतिशत पाई गई, जबकि मानक सीमा केवल 1 प्रतिशत है। वहीं हल्के दोष वाले बीज 17.12 प्रतिशत पाए गए, जो कि मानक सीमा 7 प्रतिशत से कहीं ज्यादा हैं। इन आधारों पर दाल को पूरी तरह अवमानक और असुरक्षित घोषित कर दिया गया है।
स्वास्थ्य पर मंडराता बड़ा खतरा
राज्य प्रयोगशाला की रिपोर्ट ने उपभोक्ताओं की सेहत पर गंभीर खतरे की ओर इशारा किया है। जांच में सामने आया कि मटर की दाल में बीटा-ओडीएपी (ODAP) नामक जहरीला तत्व 0.242 प्रतिशत मात्रा में मौजूद है। यह तत्व तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है और लंबे समय तक सेवन करने पर स्थायी लकवे जैसी गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है। यही कारण है कि भारत सरकार ने खेसारी दाल की बिक्री और उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी दाल का सेवन आम उपभोक्ताओं के लिए गंभीर जोखिम पैदा कर सकता है, खासकर उन परिवारों के लिए जो नियमित रूप से दाल को अपने भोजन का हिस्सा बनाते हैं। इस मामले ने न केवल प्रशासन बल्कि आम जनता को भी चिंता में डाल दिया है, क्योंकि मिलावटी खाद्य पदार्थ सीधे तौर पर स्वास्थ्य पर असर डालते हैं और भविष्य में गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं।
विभाग की कार्रवाई और कानूनी प्रक्रिया
खाद्य सुरक्षा विभाग ने रिपोर्ट आने के बाद तत्काल कदम उठाए हैं। सहायक आयुक्त खाद्य सुरक्षा डॉ. सुधीर कुमार सिंह ने बताया कि विक्रेता अमरनाथ गुप्ता, आपूर्तिकर्ता साईं जी ट्रेडर्स और निर्माता वीके पल्सेस को नोटिस जारी कर दिया गया है। नोटिस में कहा गया है कि संबंधित पक्ष चाहें तो 30 दिनों के भीतर नमूनों की दोबारा जांच रेफरल लैब में करवा सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें 13,570 रुपये (18 प्रतिशत जीएसटी सहित) शुल्क जमा करना होगा। यदि दोबारा जांच में भी मिलावट की पुष्टि होती है तो दोषियों के खिलाफ खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी। विभाग ने उपभोक्ताओं से भी अपील की है कि वे खाद्य वस्तुएं खरीदते समय सावधानी बरतें और संदिग्ध गुणवत्ता वाली वस्तुओं की जानकारी तुरंत प्रशासन को दें। इस मामले ने गोरखपुर में मिलावटी खाद्य पदार्थों की निगरानी पर सवाल खड़े किए हैं और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता को उजागर किया है।