गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – गोरखपुर के गीता वाटिका प्रांगण में इस वर्ष भक्ति और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम देखने को मिला। सार्वभौम गृहस्थ संत नित्यलीलालीन परम श्रद्धेय भाईजी श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार और पूज्य श्री राधाबाबा की 133वीं जयंती के उपलक्ष्य में 10 से 17 सितंबर तक श्रीमद्भागवत कथा का भव्य आयोजन किया गया। कथा का संचालन पूज्य श्री नरहरि दास महाराज के व्यासत्व में हुआ, जिनके मधुर प्रवचनों ने श्रद्धालुओं को गहरे आध्यात्मिक भाव में डुबो दिया। तीसरे दिन की कथा में उन्होंने जीवन को एक कैदखाना बताते हुए कहा कि हर इंसान अपने कर्मों के आधार पर जीवन जीता है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जीवन में संगत का अत्यधिक महत्व है और यदि साधु-संतों की संगति मिल जाए तो ईश्वर के चरणों तक पहुंचना सहज हो जाता है। महाराज ने सहनशीलता को साधुत्व की पहली शर्त बताया और कहा कि संतों के सान्निध्य से ही भक्ति का मार्ग स्पष्ट होता है। इस आयोजन में वातावरण भक्ति गीतों, श्लोकों और कथा प्रसंगों से गूंज उठा, जिससे उपस्थित जनमानस में आस्था और श्रद्धा का भाव और गहरा हो गया।
योग और भक्ति मार्ग की गहराई
नरहरि दास महाराज ने अपने प्रवचन में योग और भक्ति के मार्ग की विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा कि योग के पांच लक्षण हैं जिन्हें अपनाकर जीवन को पवित्र और अनुशासित बनाया जा सकता है। उन्होंने पहला लक्षण बताया अपनी शक्ति से धर्म की रक्षा करना, दूसरा अकर्म से मन को दूर रखना, तीसरा अल्प और सात्त्विक आहार ग्रहण करना, चौथा एकांतवास में रहकर आत्मचिंतन करना और पांचवां अपने आराध्य देव के चरणों का ध्यान करना। उन्होंने कहा कि यदि साधक इन गुणों को आत्मसात कर ले तो वह योग के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है। इसके साथ ही महाराज ने भक्ति के चार प्रकारों की भी चर्चा की। उन्होंने बताया कि तमोगुणी, रजोगुणी, सत्त्वगुणी और निर्गुणी भक्ति अलग-अलग स्तरों पर साधकों की आध्यात्मिक प्रगति का प्रतीक हैं। निर्गुणी भक्ति को सर्वोच्च बताते हुए उन्होंने कहा कि इसमें भक्त पूरी तरह से ईश्वर में लीन हो जाता है। इसके अतिरिक्त उन्होंने प्रिय-प्रियतम की मुस्कान को भक्ति का अत्यंत मधुर भाव बताते हुए कहा कि यह भाव साधक को ईश्वर के और करीब ले जाता है।
श्रद्धालुओं की उपस्थिति और कार्यक्रम का समापन
भव्य आयोजन का समापन श्रीमद्भागवत जी की आरती के साथ हुआ जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। आयोजन समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि आगामी चतुर्थ दिवस की कथा दोपहर तीन बजे से प्रारंभ होगी, जिसमें और भी विस्तृत प्रसंगों की व्याख्या होगी। कार्यक्रम में श्रद्धालुओं की भारी उपस्थिति ने यह सिद्ध कर दिया कि गोरखपुर की जनता का धार्मिक और सांस्कृतिक जुड़ाव कितनी गहराई से इस आयोजन से है। इस मौके पर श्री उमेश कुमार सिंहानिया, श्री रसेन्दु फोगला, श्री दीपक गुप्ता, श्री राकेश तिवारी और श्री हीरालाल त्रिपाठी सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। श्रद्धालुओं का कहना था कि नरहरि दास महाराज के प्रवचन से उन्हें न केवल आध्यात्मिक शांति मिली बल्कि जीवन को सही दिशा में जीने की प्रेरणा भी प्राप्त हुई। इस तरह यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी लोगों को एकजुट करने का माध्यम बना। आयोजकों ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आने वाले दिनों में भी गीता वाटिका ऐसे आयोजनों के माध्यम से भक्ति और आध्यात्मिकता का संदेश जनमानस तक पहुंचाती रहेगी।