गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय (DDU) के गणित एवं सांख्यिकी विभाग में पिछले एक वर्ष से चल रहे विवाद का आखिरकार समाधान हो गया है। सोमवार को विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रो. उमा श्रीवास्तव को विभाग की नई अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। आदेश के अनुसार, वे 6 अक्तूबर से, विश्वविद्यालय के पुनः खुलने पर, आधिकारिक रूप से कार्यभार संभालेंगी। गणित विभाग में अध्यक्षता का यह विवाद प्रो. विजय कुमार की अधिवर्षिता पूरी होने के बाद शुरू हुआ था। उनकी सेवानिवृत्ति के पश्चात प्रशासन ने प्रो. विजय शंकर वर्मा को विभागाध्यक्ष नियुक्त किया, लेकिन प्रो. उमा श्रीवास्तव ने इसका विरोध किया और वरिष्ठता के आधार पर अपने अधिकार का दावा किया। इस मसले को लेकर उन्होंने न केवल कुलपति से संवाद किया बल्कि प्रदेश सरकार और राजभवन तक पत्राचार भेजा। विवाद बढ़ने से विभाग का शैक्षिक वातावरण लगातार प्रभावित हो रहा था और शिक्षक दो अलग खेमों में बंट गए थे।
वरिष्ठता सूची से उपजा विवाद और बढ़ा तनाव
विवाद को और गहराई तब मिली जब सात जुलाई को विश्वविद्यालय प्रशासन ने अनंतिम वरिष्ठता सूची जारी की, जिसमें प्रो. विजय शंकर वर्मा को वरिष्ठ बताया गया। इस निर्णय से असंतोष और बढ़ गया और विभाग का माहौल और अधिक तनावपूर्ण हो गया। स्थिति इतनी बिगड़ी कि 21 जुलाई को पीएचडी वाइवा के दौरान दोनों पक्षों में जमकर हंगामा हुआ। आरोप-प्रत्यारोप, गाली-गलौज और हाथापाई की घटनाओं ने पूरे विश्वविद्यालय का ध्यान आकर्षित किया। इस असामान्य स्थिति ने न केवल शिक्षण कार्य को प्रभावित किया बल्कि छात्रों के शैक्षिक वातावरण को भी बाधित किया। विवाद की गंभीरता देखते हुए 23 जुलाई को विश्वविद्यालय प्रशासन ने जांच समिति गठित की और समिति की रिपोर्ट आने तक विभागाध्यक्ष का कार्यभार अधिष्ठाता कला संकाय को सौंपा गया।
प्रशासनिक फैसले से खत्म हुआ गतिरोध
अब जब प्रो. उमा श्रीवास्तव को गणित विभाग की नई अध्यक्ष नियुक्त किया गया है, तो उम्मीद की जा रही है कि विभाग में स्थिरता और अनुशासन लौटेगा। प्रशासन ने साफ किया है कि इस निर्णय का उद्देश्य न केवल विवाद को समाप्त करना है बल्कि विभागीय गतिविधियों को सामान्य करना और शिक्षण-शोध कार्य को सुचारू बनाए रखना भी है। प्रो. उमा श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में विभाग से यह अपेक्षा की जा रही है कि वह छात्रों और शिक्षकों के बीच समन्वय स्थापित करते हुए शैक्षिक माहौल को बेहतर बनाएंगी। विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि इस कदम से विभागीय कार्यों में बाधा नहीं आएगी और आने वाले समय में विभाग की शैक्षणिक उपलब्धियों में वृद्धि होगी। इस नियुक्ति ने जहां विवाद को विराम दिया है, वहीं छात्रों और शिक्षकों में भी एक सकारात्मक संदेश गया है कि अब विभाग अपनी शैक्षणिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित कर सकेगा।