गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – आज के दौर में जहां सोशल मीडिया को अक्सर केवल मनोरंजन या सूचनाओं का जरिया माना जाता है, वहीं गोरखपुर से शुरू हुआ ‘क्लब-3000’ यह साबित कर रहा है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म जरूरतमंदों के लिए जीवनदायी सहारा भी बन सकता है। संस्था की जिला प्रभारी पूजा पाल बताती हैं कि डेढ़ साल पहले इस पहल की शुरुआत कुछ लोगों के छोटे से समूह के साथ हुई थी। उद्देश्य केवल इतना था कि ऐसे परिवारों तक मदद पहुंचाई जाए जो गरीबी, बीमारी या किसी अन्य संकट के कारण असहाय स्थिति में हैं। शुरू में इस अभियान में महज सैकड़ों लोग जुड़े, लेकिन धीरे-धीरे फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म्स पर यह पहल चर्चा का विषय बनी और देखते ही देखते देश-विदेश के हजारों लोग इसमें शामिल हो गए। इस समय संस्था के पास करीब 2000 से अधिक सक्रिय सदस्य हैं जो स्वेच्छा से आर्थिक सहयोग कर रहे हैं। इसमें आईएएस, आईपीएस, पीसीएस अधिकारी, आर्मी-नेवी-एयरफोर्स के जवान, चिकित्सक, प्रोफेसर, अधिवक्ता, इंजीनियर, किसान और निजी संस्थानों से जुड़े प्रोफेशनल्स तक शामिल हैं। यही वजह है कि ‘क्लब-3000’ आज न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भरोसेमंद सामाजिक पहल के रूप में पहचाना जा रहा है। संस्था का तरीका बेहद पारदर्शी है। जब किसी परिवार या व्यक्ति से मदद की गुहार आती है तो टीम पहले मौके पर जाकर स्थिति की जांच करती है। फिर ग्रुप में एक क्यूआर कोड साझा किया जाता है, जिस पर सदस्य अपनी क्षमता और इच्छा अनुसार आर्थिक सहायता भेजते हैं। इसमें किसी पर दबाव नहीं होता और हर सहयोग पूरी तरह स्वेच्छा से आता है। इस व्यवस्था से न केवल जरूरतमंदों को त्वरित मदद मिलती है, बल्कि दानदाताओं के बीच भी भरोसे का माहौल बनता है।
देश-विदेश से जुड़ रहे मददगार: मानवता का अनूठा नेटवर्क
‘क्लब-3000’ की सबसे बड़ी ताकत इसका व्यापक नेटवर्क है। संस्था के साथ केवल भारत के विभिन्न राज्यों से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी लोग जुड़े हुए हैं। दक्षिण अफ्रीका, सऊदी अरब, ओमान, मलेशिया और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों से प्रवासी भारतीय इस अभियान का हिस्सा बने हैं। उनका योगदान साबित करता है कि भौगोलिक दूरी इंसानियत की सेवा में बाधा नहीं बनती। अब तक संस्था ने लगभग 30 परिवारों तक सीधी मदद पहुंचाई है। इनमें किसी को गंभीर बीमारी के इलाज के लिए आर्थिक सहयोग मिला तो किसी को आशियाना बनाने के लिए छत प्रदान की गई। उदाहरण के तौर पर जौनपुर जिले के राजनरायन को अस्पताल से पैसों की कमी के कारण डिस्चार्ज कर दिया गया था। उस समय ‘क्लब-3000’ ने आगे बढ़कर उनके इलाज का पूरा खर्च उठाया और आज वे स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। इसी तरह लखनऊ की सावित्री, जो सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गई थीं, उनका भी पूरा इलाज इस संस्था ने अपने जिम्मे लेकर उनकी जान बचाई। इतना ही नहीं, आगजनी में अपना घर गंवा चुके गरीब परिवारों को रहने और जीवनयापन की सामग्री उपलब्ध कराई गई। बाराबंकी की 17 वर्षीय प्रतिभाशाली छात्रा पूजा, जिसने अपने शोध कार्य से जापान तक पहचान बनाई, लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण पक्का घर नहीं बना पा रही थी, उसके लिए भी ‘क्लब-3000’ ने मकान बनाने का बीड़ा उठाया है। ऐसे अनेकों उदाहरण संस्था की प्रतिबद्धता और सामाजिक समर्पण को दर्शाते हैं।
सेवा भाव से प्रेरित टीम: भविष्य की योजनाएं और लक्ष्य
‘क्लब-3000’ का यह अभियान केवल कुछ व्यक्तियों के प्रयास का परिणाम नहीं है बल्कि एक समर्पित टीम की मेहनत और त्याग का नतीजा है। संयोजक उमाशंकर पाल, मुख्य संरक्षक डॉ. विकास पाल, गोरखपुर प्रभारी पूजा पाल, प्रयागराज प्रभारी कृपाशंकर, लखनऊ से इंजीनियर धीरेन्द्र और डॉ. दीपा पाल समेत कई अन्य लोग इस मुहिम को निरंतर आगे बढ़ा रहे हैं। इनकी कोशिश यही है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक राहत पहुंचाई जा सके। महिलाओं की सक्रिय भागीदारी इस अभियान को और भी सशक्त बनाती है। भविष्य में संस्था ने अपने साथ 5000 और फिर 10,000 सदस्यों को जोड़ने का लक्ष्य रखा है ताकि और बड़े पैमाने पर जरूरतमंदों को सहारा दिया जा सके। अब तक मिली सफलता ने यह सिद्ध कर दिया है कि अगर सामूहिक भावना और तकनीक का सही उपयोग किया जाए तो समाज की सबसे कमजोर परत तक भी मदद पहुंचाना संभव है। ‘क्लब-3000’ इस बात का सशक्त उदाहरण है कि डिजिटल युग में भी मानवीय संवेदनाएं जीवित हैं और सही दिशा में प्रयास किए जाएं तो सोशल मीडिया केवल मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि समाजसेवा का शक्तिशाली माध्यम बन सकता है।