गोरखपुर शहर की सबसे चर्चित और महंगी जमीनों में से एक पर आखिरकार 22 साल से चला आ रहा विवाद खत्म हो गया। गोलघर इलाके में स्थित लगभग 95,000 वर्ग फीट क्षेत्रफल की इस नजूल संपत्ति की कीमत मौजूदा बाजार भाव के हिसाब से 500 करोड़ रुपये से अधिक आंकी जा रही है। उद्यमी ओमप्रकाश जालान की कंपनी ने इस जमीन को 2003 में फ्री होल्ड करा लिया था और रजिस्ट्री भी करा ली थी। उस समय इस संपत्ति पर पूर्व विधायक केदार सिंह अपने परिवार सहित रह रहे थे और किराया अदा कर रहे थे। रजिस्ट्री के बाद पांच वर्षों तक स्थिति यथावत रही, लेकिन उसके बाद मामला अदालत में पहुंचा। केदार सिंह ने 2012 तक कानूनी लड़ाई लड़ी, किंतु उनके निधन के बाद पैरवी के अभाव में एक्स पार्टी आदेश हो गया। मामला हाईकोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक गया। सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2025 तक परिवार को संपत्ति खाली करने की समय-सीमा दी थी। अदालत में शपथ पत्र देकर परिवार ने मकान खाली करने की पुष्टि की। इसी आदेश के बाद जमीन उद्यमी को सौंप दी गई और कब्जा मिलने के बाद वहां बाउंड्री और गेट लगाने का कार्य भी शुरू हो गया।
सैंथवार समाज का विरोध और मूर्ति विवाद
जमीन पर कब्जा मिलने के बाद विवाद उस समय और गहराया जब पूर्व विधायक स्व. केदार सिंह की प्रतिमा को ढकने की कोशिश की गई। यह सूचना फैलते ही पूरे मंडल से सैंथवार समाज के नेता गोलघर पहुंच गए और विरोध प्रदर्शन किया। 25 अगस्त को हुए इस प्रदर्शन में स्थिति बिगड़ने पर पुलिस को 36 लोगों को हिरासत में लेना पड़ा। बाद में समझाने-बुझाने के बाद सभी को छोड़ दिया गया। समाज का कहना है कि केदार सिंह ने सैंथवार समुदाय को आरक्षण दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और उन्हें मसीहा के रूप में देखा जाता है। इस वजह से उनकी प्रतिमा को हटाने या छेड़छाड़ की किसी भी कोशिश का विरोध किया जाएगा। इसी बीच, कैंट क्षेत्र के इंस्पेक्टर मौके पर पहुंचे और पाया कि प्रतिमा को सुरक्षा के लिहाज से घेरा जा रहा था, लेकिन अफवाह के कारण भारी तनाव फैल गया। तत्पश्चात, पुलिस और पीएसी के जवानों को मौके पर तैनात कर दिया गया ताकि कोई अप्रिय घटना न हो।
प्रशासन और पुलिस की सफाई, आगे की संभावनाएं
इस पूरे विवाद पर प्रशासन और पुलिस ने साफ किया कि उनका इसमें कोई प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं था। एसएसपी राजकरन नैय्यर ने कहा कि जमीन खाली कराने का आदेश सुप्रीम कोर्ट का है और प्रशासन केवल आदेश का पालन कर रहा है। पुलिस की मौजूदगी केवल शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए थी। दूसरी ओर, शहर के आर्किटेक्ट्स और विशेषज्ञों का मानना है कि गोलघर क्षेत्र में इतनी बड़ी और महंगी जमीन का खाली होना गोरखपुर के विकास के लिहाज से बड़ा अवसर है। आमतौर पर यहां जमीन की रजिस्ट्री मुश्किल से होती है और बिल्डर एग्रीमेंट के आधार पर ही काम चलता है। इस जमीन पर यदि बड़ा प्रोजेक्ट आता है तो शहरवासियों को आधुनिक सुविधाएं मिल सकती हैं और क्षेत्र की काया पलट हो सकती है। उद्यमी की ओर से कब्जा मिलने के बाद प्रारंभिक विकास कार्य शुरू कर दिए गए हैं और उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले समय में यह स्थान गोरखपुर का एक नया लैंडमार्क बन सकता है।
गोरखपुर की 500 करोड़ से अधिक मूल्य वाली यह जमीन लंबे समय से चले विवाद, कानूनी लड़ाई और सामाजिक विरोध का केंद्र रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अंततः इसे उद्यमी को सौंप दिया गया है। हालांकि, पूर्व विधायक स्व. केदार सिंह की प्रतिमा और समाज की भावनाओं को लेकर विवाद फिलहाल शांत नहीं हुआ है। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि यहां किस प्रकार का प्रोजेक्ट विकसित होता है और शहर के लिए यह कितनी नई संभावनाओं के द्वार खोलता है। यह घटना एक ओर जहां न्यायपालिका की निर्णायक भूमिका को रेखांकित करती है, वहीं दूसरी ओर गोरखपुर के शहरी परिदृश्य में बड़े बदलाव की ओर भी संकेत करती है।