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सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से पहले गोरखपुर में जोरदार प्रदर्शन, 95 हजार वर्ग फीट जमीन विवाद में सैँथवार समाज उतरा सड़क पर

स्व. केदारनाथ सिंह के परिवार के समर्थन में हुआ आंदोलन, उद्यमी ओमप्रकाश जालान के खिलाफ लगाए नारे, सुप्रीम कोर्ट में आज अवमानना याचिका पर सुनवाई

Gorakhpur News: 95,000 sq ft land dispute sparks protest before SC hearing

गोरखपुर के सिविल लाइन क्षेत्र में स्थित 95 हजार वर्ग फीट नजूल की जमीन पर लंबे समय से चला आ रहा विवाद अब और उग्र रूप ले चुका है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली अवमानना की सुनवाई से ठीक पहले सैंथवार मल्ल सभा के बैनर तले बड़ी संख्या में लोग सड़क पर उतर आए और जोरदार प्रदर्शन किया। सभा के पदाधिकारियों और समर्थकों ने पूर्व विधायक स्व. केदारनाथ सिंह के परिवार का समर्थन करते हुए पुलिस और प्रशासन पर पक्षपात के आरोप लगाए। प्रदर्शनकारियों का आरोप था कि उद्यमी ओमप्रकाश जालान ने प्रशासन की मदद से इस जमीन की रजिस्ट्री कराई और अब परिवार को हटाने का दबाव बनाया जा रहा है। प्रदर्शन के दौरान नारेबाजी की गई और कहा गया कि स्व. केदारनाथ सिंह की प्रतिमा को हटाने की भी तैयारी चल रही है, जिससे समाज में गहरी नाराजगी फैल गई है। वहीं प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार उस दिन केवल कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस बल तैनात किया गया था और किसी भी तरह की बेदखली की कार्रवाई नहीं की गई।

सुप्रीम कोर्ट में मामला और दोनों पक्षों की दलीलें

इस विवादित जमीन पर सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2024 में आदेश दिया था कि स्व. केदारनाथ सिंह का परिवार मकान और जमीन खाली करे। हालांकि परिवार की ओर से समय की मांग किए जाने पर कोर्ट ने फरवरी 2025 तक मोहलत दी थी। समयसीमा पूरी हो जाने के बाद अब उद्यमी ओमप्रकाश जालान ने कोर्ट में अवमानना का मामला दाखिल किया है, जिस पर आज सुनवाई होनी है। जालान का दावा है कि उन्होंने 2002 में यह जमीन विधिक प्रक्रिया के तहत फ्री होल्ड कराई थी और उसकी रजिस्ट्री भी कराई गई थी। उस समय इस भूमि के एक हिस्से पर पूर्व विधायक का परिवार और दूसरे हिस्से पर प्रोफेसर सहाय का परिवार रहता था। सहाय परिवार ने रजिस्ट्री के बाद जगह खाली कर दी थी, लेकिन स्व. केदारनाथ सिंह के परिवार ने कोर्ट आदेश तक जगह नहीं छोड़ी। वहीं पूर्व विधायक के पुत्र राकेश सिंह का कहना है कि यह जमीन 1986-87 में उनके पिता को 99 साल की लीज पर आवंटित की गई थी और तब से परिवार वहीं रह रहा है। उनका आरोप है कि उद्यमी गलत दस्तावेजों के आधार पर कब्जा करना चाहते हैं।

प्रशासन का रुख और पूर्व विधायक की राजनीतिक विरासत

जिला प्रशासन ने साफ किया है कि यह मामला पूरी तरह से दोनों पक्षों के बीच का है और प्रशासन केवल कानून-व्यवस्था बनाए रखने की भूमिका निभा रहा है। डीएम दीपक मीणा ने कहा कि प्रशासन जमीन या मकान खाली कराने में शामिल नहीं है, लेकिन किसी को भी कानून व्यवस्था से खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इस विवाद ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है क्योंकि स्व. केदारनाथ सिंह सैंथवार समाज के बड़े नेता रहे हैं। उन्हें ओबीसी आरक्षण दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला माना जाता है और उनकी स्मृति में 2013 में उसी जमीन पर प्रतिमा भी स्थापित की गई थी। यही कारण है कि समाज के लोग परिवार का समर्थन करने के लिए सड़कों पर उतरे हैं। वहीं उद्यमी पक्ष का कहना है कि परिवार ने लंबे समय तक टालमटोल कर कोर्ट आदेश का पालन नहीं किया, जिससे उन्हें न्यायालय की शरण लेनी पड़ी।

गोरखपुर का यह विवाद केवल जमीन के स्वामित्व तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें राजनीतिक, सामाजिक और कानूनी सभी पहलू जुड़े हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से पहले हुआ प्रदर्शन यह संकेत देता है कि यह मुद्दा आने वाले दिनों में और बड़ा रूप ले सकता है। अब देखना होगा कि अदालत का फैसला किस पक्ष के हक में जाता है और प्रशासन इसे शांतिपूर्ण ढंग से कैसे लागू करता है।

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