गोरखपुर के शाहपुर इलाके में डॉक्टर के पति और रिटायर्ड एयरफोर्स कर्मी अशोक जायसवाल के अपहरण कांड में बड़ा खुलासा हुआ है। पुलिस जांच में सामने आया कि इस साजिश का मास्टरमाइंड उनके करीबी और पड़ोसी ज्वेलर्स प्रदीप सोनी था। सोने-चांदी के कारोबार में नुकसान उठाने के बाद प्रदीप शॉर्टकट से अमीर बनने की सोच में था। उसे विश्वास था कि अपहरण के बाद फिरौती मांगकर वह करोड़पति बन जाएगा। प्रदीप के पास डॉक्टर के घर और हॉस्पिटल के CCTV कैमरों का एक्सेस था। इसी का फायदा उठाते हुए वह परिवार की हर गतिविधि पर नजर रखता और अपहरण की पूरी रणनीति बनाता रहा। उसकी योजना थी कि अशोक जायसवाल को उठाकर आसानी से फिरौती वसूली जाएगी क्योंकि पहले भी उनके परिवार में अपहरण की घटनाएं हो चुकी थीं और फिरौती देकर उन्हें छुड़ाया गया था।
पुलिस रिमांड में खुला पूरा राज, तीन आरोपी जेल भेजे गए
अशोक जायसवाल के अपहरण की घटना 25 जुलाई को कौआबाग अंडरपास के पास हुई थी। कार सवार बदमाशों ने उन्हें उस समय अगवा कर लिया जब वे रेलवे स्टेडियम की ओर जा रहे थे। घटना के बाद उनकी पत्नी डॉ. सुषमा जायसवाल के मोबाइल पर पांच करोड़ की फिरौती की कॉल आई। पुलिस ने सक्रियता दिखाते हुए महज 12 घंटे में अशोक जायसवाल को सकुशल बरामद कर तीन बदमाशों को गिरफ्तार कर लिया था। पूछताछ के दौरान पकड़े गए बदमाश कमालुद्दीन ने खुलासा किया कि ज्वेलर्स प्रदीप सोनी ही इस पूरी साजिश का सूत्रधार था। उसकी पहचान बस्ती निवासी के रूप में हुई है। साथ ही गोला क्षेत्र के देवेश मणि त्रिपाठी उर्फ तरुण और इन्द्रेश तिवारी उर्फ मोनू का नाम भी सामने आया। मोनू का आपराधिक इतिहास लंबा रहा है और उसके खिलाफ 12 मुकदमे दर्ज हैं। पुलिस ने प्रदीप, तरुण और मोनू को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया है और इनके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट में भी कार्रवाई की जाएगी।
कारोबार में घाटा और व्यक्तिगत नाराजगी से पनपी रंजिश
जांच से यह भी सामने आया कि प्रदीप सोनी ने अशोक जायसवाल से पहले पांच लाख रुपये उधार लिए थे और उनके मकान में सोने-चांदी की दुकान भी खोली थी। लेकिन फ्लाईओवर निर्माण के दौरान दुकान टूट गई, जिससे उसे बड़ा नुकसान हुआ और वह कर्जदार भी बन गया। इसी बीच उसने हॉस्पिटल में दुकान खोलने के लिए डॉक्टर से जगह मांगी थी, लेकिन डॉक्टर और उनके परिवार ने मना कर दिया। इस बात से प्रदीप काफी नाराज हो गया था। धीरे-धीरे उसने डॉक्टर के परिवार में विश्वास कायम कर लिया और CCTV लगाने का ठेका लेकर उनकी गतिविधियों पर नजर रखने लगा। आर्थिक संकट में फंसा होने और बदले की भावना से उसने तरुण त्रिपाठी और मोनू तिवारी के साथ मिलकर अपहरण की योजना बनाई। मोनू तिवारी पहले से ही आपराधिक मामलों में शामिल रहा है और उसने अपने साथियों के जरिए कमालुद्दीन व अन्य को इस काम में शामिल किया। योजना थी कि अशोक जायसवाल को अगवा कर दबाव डालकर भारी रकम वसूल की जाए और फिर रिहा कर दिया जाए।
गोरखपुर की इस सनसनीखेज घटना ने यह साबित कर दिया कि आर्थिक लालच और निजी रंजिश कैसे अपराध की राह पर ले जाती है। पुलिस ने तत्परता दिखाकर मामले का पर्दाफाश तो कर दिया, लेकिन यह घटना कानून-व्यवस्था और सामाजिक विश्वास दोनों पर गहरा सवाल खड़ा करती है। अब नजर इस पर होगी कि पुलिस गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई कर इन आरोपियों पर कितनी सख्ती दिखाती है और पीड़ित परिवार को कितना न्याय दिला पाती है।