गोरखपुर जिले में उर्वरक वितरण को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। जिले की खाद्य समिति, IFFDC, एग्रीजक्सन और ई-बाजार से जुड़े प्रतिनिधियों ने डीएम दीपक मीणा को ज्ञापन सौंपकर आरोप लगाया कि सहकारिता समितियों और निजी संस्थाओं के बीच भेदभाव किया जा रहा है। उनका कहना है कि मौजूदा नियम के तहत सहकारिता समितियों को 80 प्रतिशत और निजी संस्थाओं को केवल 20 प्रतिशत उर्वरक दिया जा रहा है। इससे जिले के करीब 100 निजी वितरण केन्द्रों पर आजीविका का संकट खड़ा हो गया है। प्रतिनिधियों का कहना है कि वर्ष 2002 में IFFDC और इफको ने शिक्षित बेरोजगार युवाओं को खाद और बीज बेचने का लाइसेंस दिया था। उस समय सहकारिता समितियां बंद थीं और पूरी बिक्री इन्हीं केन्द्रों के माध्यम से की जाती थी। अब अचानक 25 साल बाद इस नियम में बदलाव से निजी वितरकों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है।
निजी वितरकों की दलीलें और असमानता का आरोप
प्रतिनिधियों ने बताया कि जिले में सहकारिता समितियों के 150 और निजी संस्थाओं के 100 वितरण केन्द्र हैं। बावजूद इसके सहकारी समितियों को प्राथमिकता देकर 80 प्रतिशत कोटा दिया जा रहा है। उनका कहना है कि दोनों ही संस्थाएं एक जैसे नियमों और दाम पर किसानों को खाद बेचती हैं, तो फिर इस असमानता का औचित्य क्या है। समिति के जिला प्रमुख श्रीव प्रकाश सिंह ने कहा कि किसानों को भी पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। कई बार किसानों को उनका हिस्सा नहीं दिया जाता और कभी 50 प्रतिशत तो कभी 60 प्रतिशत ही वितरण होता है। उनके अनुसार, जब 100 किसानों में सिर्फ 20 प्रतिशत हिस्सा बांटा जाएगा तो यह व्यवस्था व्यावहारिक नहीं रह जाती। इस स्थिति को सौतेला व्यवहार बताते हुए उन्होंने औसतन 60-40 का अनुपात लागू करने की मांग की।
प्रशासनिक पहल और किसानों की चिंता
ज्ञापन में यह भी कहा गया कि इस व्यवस्था से न केवल निजी वितरकों का भविष्य प्रभावित हो रहा है, बल्कि किसानों को भी समय पर पर्याप्त उर्वरक नहीं मिल पा रहा। प्रतिनिधियों का कहना है कि मौजूदा सिस्टम में कई बार किसान पूरी तरह खाली हाथ लौट जाते हैं, जिससे उनकी फसल प्रभावित होती है। निजी संस्थाओं का तर्क है कि यदि उन्हें उचित हिस्सा दिया जाए तो किसानों को आसानी से खाद मिल सकेगी और कृषि उत्पादन में सुधार होगा। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगों पर जल्द विचार नहीं हुआ तो वे बड़े आंदोलन की राह पकड़ेंगे। वहीं प्रशासन का कहना है कि ज्ञापन प्राप्त हो गया है और इस पर उच्च स्तर पर विचार कर समाधान निकाला जाएगा।
गोरखपुर का यह विवाद यह दिखाता है कि कृषि वितरण व्यवस्था में पारदर्शिता और समानता कितनी अहम है। जहां एक ओर सहकारिता समितियां मजबूत हो रही हैं, वहीं निजी वितरकों की नाराजगी लगातार बढ़ रही है। आने वाले दिनों में प्रशासन किस तरह इस असमानता को दूर करता है, यह किसानों और बेरोजगार युवाओं दोनों के भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण होगा।