गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – गोरखपुर और पूरे उत्तर प्रदेश में बिजली निजीकरण की चर्चाओं के बीच विद्युत अभियंता और कर्मचारी संगठनों ने स्पष्ट कर दिया है कि वे किसी भी सूरत में निजीकरण को स्वीकार नहीं करेंगे। आगरा में आयोजित उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ के चिंतन मंथन शिविर में अभियंताओं ने निर्णायक संघर्ष का ऐलान किया। इस शिविर में मौजूद कर्मचारियों और अधिकारियों ने सामूहिक रूप से यह संकल्प लिया कि यदि राज्य सरकार ने विद्युत वितरण या उत्पादन के क्षेत्र में निजी कंपनियों को प्रवेश देने की प्रक्रिया आगे बढ़ाई तो तत्काल जेल भरो आंदोलन शुरू किया जाएगा। बैठक में यह जानकारी सामने आई कि हाल ही में ऊर्जा मंत्री ने विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार, पॉवर कॉर्पोरेशन के चेयरमैन आशीष गोयल और निजीकरण से जुड़े ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट ग्रांट थॉर्टन के साथ अहम चर्चा की है। इस खबर ने अभियंताओं में गुस्सा भड़का दिया और उन्होंने माना कि सरकार कर्मचारियों की राय को दरकिनार कर निजी कंपनियों के पक्ष में काम कर रही है। शिविर में उपस्थित प्रत्येक अभियंता और कर्मचारी ने निजीकरण के सभी प्रस्तावों को सिरे से खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया कि बिजली क्षेत्र की जिम्मेदारी केवल सार्वजनिक क्षेत्र में ही सुरक्षित रह सकती है।
विकल्पों पर मंथन और भविष्य की रणनीति
शिविर में प्रमुख वक्ता आल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने निजीकरण से जुड़े तीन विकल्पों-निजी कंपनियों में शामिल होना, अन्य निगमों में वापसी करना या स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेना-पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने साफ कहा कि ये सभी विकल्प न केवल कर्मचारियों के भविष्य को खतरे में डालते हैं बल्कि उपभोक्ताओं के हितों के भी विपरीत हैं। दुबे ने तर्क दिया कि निजी कंपनियां लाभ को प्राथमिकता देती हैं, जिसके कारण आम जनता को महंगी बिजली और अस्थिर सेवाओं का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी निगमों की जगह निजी कंपनियों को देना लंबे समय में प्रदेश के ऊर्जा ढांचे को कमजोर कर देगा। इसलिए इन विकल्पों को किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता। शिविर के दौरान कर्मचारियों को यह संदेश दिया गया कि संघर्ष केवल रोजगार बचाने का नहीं बल्कि उपभोक्ताओं के अधिकार और ऊर्जा सुरक्षा बनाए रखने का है। दुबे ने अभियंताओं से अपील की कि वे संगठित होकर तैयार रहें ताकि सरकार के किसी भी कदम का जवाब मजबूती से दिया जा सके।
विशेषज्ञों ने दी संघर्ष की चेतावनी और उदाहरण
चिंतन मंथन शिविर में अन्य विशेषज्ञों ने भी निजीकरण के खतरों पर प्रकाश डाला। ईस्टर्न इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन प्रशांत चतुर्वेदी ने झारखंड का उदाहरण दिया, जहां निजीकरण के बाद कर्मचारियों और उपभोक्ताओं दोनों को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि जब बिजली जैसी बुनियादी सेवा निजी हाथों में जाती है तो न तो कर्मचारियों की नौकरी सुरक्षित रहती है और न ही जनता को सस्ती दर पर बिजली मिलती है। महासचिव जितेन्द्र सिंह गुर्जर ने बताया कि इस शिविर का उद्देश्य केवल विरोध दर्ज करना नहीं बल्कि कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना है ताकि वे आंदोलन के लिए पूरी तरह तैयार रह सकें। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे पांच और शिविर आयोजित किए जा रहे हैं और यदि अभियंता और कर्मचारी संगठित होकर खड़े हों तो प्रदेश में किसी भी निजी घराने को पावर सेक्टर में प्रवेश करने से रोका जा सकता है। विशेषज्ञों ने यह भी चेतावनी दी कि आने वाले समय में यदि निजीकरण की प्रक्रिया आगे बढ़ती है तो प्रदेश में व्यापक स्तर पर हड़ताल और विरोध प्रदर्शन होंगे, जिसका सीधा असर बिजली आपूर्ति पर भी पड़ेगा। इस प्रकार गोरखपुर से शुरू हुई यह आवाज अब पूरे उत्तर प्रदेश में एक बड़े आंदोलन का रूप ले सकती है और सरकार के लिए कठिन चुनौती साबित हो सकती है।