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गोरखपुर पुस्तक मेले में युवाओं का उत्साह चरम पर: ‘ट्रुथ विदआउट अपॉलजी’ और ‘द हिडन हिंदू’ बनी हॉट सेलर, कई किताबें हुईं आउट ऑफ स्टॉक

दीन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय में चल रहे नौ दिवसीय पुस्तक महोत्सव में उमड़ी भारी भीड़, आध्यात्मिकता, सनातन धर्म और देशभक्ति से जुड़ी किताबों की रिकॉर्ड बिक्री

Youth crowd at Gorakhpur Book Fair exploring books like Truth Without Apology and The Hidden Hindu | Gorakhpur News

गोरखपुर के दीन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित नौ दिवसीय पुस्तक महोत्सव इस बार युवाओं के जोश और जिज्ञासा का प्रतीक बन गया है। मेले में जहां किताबों की महक चारों ओर फैली है, वहीं युवा पाठक अपनी पसंदीदा किताबें खोजते हुए बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं। खास बात यह है कि इस वर्ष युवाओं की रुचि केवल कथा या मनोरंजन तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने आध्यात्मिकता, देशभक्ति और सनातन संस्कृति से जुड़ी पुस्तकों की ओर गहरी दिलचस्पी दिखाई है। मेले के कई स्टॉल्स पर सुबह से शाम तक पाठकों की भीड़ उमड़ रही है और लोकप्रिय किताबें कुछ ही घंटों में आउट ऑफ स्टॉक हो रही हैं। सबसे ज्यादा मांग आचार्य प्रशांत की नई पुस्तक ‘ट्रुथ विदआउट अपॉलजी’ की देखी गई, जो युवाओं के बीच चर्चा का प्रमुख विषय बनी हुई है। इसके साथ ही ‘स्त्री’, ‘विद्यार्थी जीवन’ और ‘पेरेंटिंग’ जैसी किताबें भी लगातार बिक रही हैं। कई सेलर्स के अनुसार, मेले के पहले चार दिनों में ही इन शीर्षकों की सैकड़ों प्रतियां बिक चुकी हैं और उन्हें अतिरिक्त कॉपियों की मांग करनी पड़ी है। वहीं, अक्षय गुप्ता की ‘द हिडन हिंदू’ ने भी युवाओं के बीच एक अलग ही आकर्षण पैदा किया है, जिसे जानने और समझने की उत्सुकता युवाओं में साफ दिखाई दे रही है।

सोशल मीडिया से प्रेरित पीढ़ी और बढ़ता साहित्यिक रुझान

इस पुस्तक महोत्सव का एक उल्लेखनीय पहलू यह रहा कि बड़ी संख्या में ऐसे युवा पाठक आए, जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अपने पसंदीदा लेखकों को फॉलो करते हैं और उनकी किताबें खरीदने विशेष रूप से मेले में पहुंचे। कई युवाओं ने बताया कि वे वीडियो व्याख्यानों और ऑनलाइन चर्चाओं से प्रेरित होकर यहां आए हैं ताकि उन्हें अपनी मनपसंद किताबें मिल सकें। एक पाठक अमित ने कहा कि उन्होंने अवध ओझा का एक वीडियो देखा था जिसमें विवेकानंद की ‘माइंड’ पढ़ने की प्रेरणा दी गई थी, और उसी किताब को ढूंढने वे मेले पहुंचे। इसी तरह कई युवाओं ने बताया कि वे सोशल मीडिया पर आचार्य प्रशांत, अक्षय गुप्ता और अन्य लेखकों की बातों से प्रभावित हैं और अब उन विचारों को गहराई से समझने के लिए किताबें खरीद रहे हैं। मेले में ‘स्त्री’ किताब को पढ़ने वाली युवतियों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं, वहीं पुरुष पाठक भी इस किताब को महिलाओं के दृष्टिकोण को समझने का सशक्त माध्यम मान रहे हैं। इसके अलावा सनातन धर्म, न्यूमरोलॉजी, योग और आत्मविकास जैसे विषयों पर आधारित किताबों की भी खूब मांग है। एक पाठक मोहित राय ने बताया कि नई पीढ़ी को अपने धर्म और संस्कृति को जानने की इच्छा पहले से कहीं अधिक है और ‘द हिडन हिंदू’ जैसी किताबें इस जिज्ञासा को दिशा देती हैं। इसी तरह कई पाठक ऐसे भी रहे जो अंक ज्योतिष और आत्मज्ञान जैसे विषयों पर किताबें खोजते हुए स्टॉल्स पर पहुंचे, जिससे यह स्पष्ट है कि अब युवा पीढ़ी केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि आत्मविकास और ज्ञान के प्रति भी गंभीर है।

देशभक्ति, इतिहास और पेरेंटिंग पर भी बढ़ी मांग

पुस्तक मेले में युवाओं के साथ-साथ अभिभावक वर्ग का उत्साह भी देखने लायक रहा। माता-पिता ने बच्चों की परवरिश और व्यवहारिक शिक्षा से जुड़ी किताबों में विशेष रुचि दिखाई। आचार्य प्रशांत की ‘10 सूत्र बच्चों की परवरिश के’ किताब को लेकर सेलर्स ने बताया कि इसकी मांग दिल्ली और लखनऊ जैसे बड़े शहरों से भी अधिक गोरखपुर में है। राजपाल प्रकाशन के सेलर अशोक शुक्ला ने बताया कि उन्होंने कई बार गोरखपुर में पुस्तक मेले लगाए हैं, लेकिन इस बार जितना उत्साह और खरीदारी देखने को मिली, वह अब तक का सबसे शानदार अनुभव रहा। युवाओं के साथ परिवारों की भागीदारी ने इस आयोजन को एक सांस्कृतिक उत्सव का रूप दे दिया है। क्रांति के प्रतीक भगत सिंह पर आधारित पुस्तकों की बिक्री भी अभूतपूर्व रही। जनचेतना पब्लिशर्स के स्टॉल पर 150 से अधिक भगत सिंह से जुड़ी किताबें बिक चुकी हैं, जबकि राहुल सांकृत्यायन, रवींद्रनाथ टैगोर और मार्क्स-लेनिन पर लिखे साहित्य की भी मांग बढ़ी है। यह रुझान बताता है कि नई पीढ़ी अपने इतिहास, विचारधारा और सांस्कृतिक जड़ों से फिर से जुड़ना चाहती है। मेले के आयोजकों के अनुसार अब तक हजारों किताबें बिक चुकी हैं और गोरखपुर जैसे शहर में इस तरह की बौद्धिक ऊर्जा का प्रसार साहित्य के भविष्य के लिए शुभ संकेत है। कुल मिलाकर, यह पुस्तक मेला न केवल किताबों का प्रदर्शन रहा, बल्कि यह इस बात का प्रमाण भी है कि डिजिटल युग में भी पुस्तकों की गूंज पहले से कहीं अधिक प्रभावशाली है और युवाओं की यह पीढ़ी विचार, मूल्य और संस्कृति से जुड़ने की दिशा में गंभीरता से आगे बढ़ रही है।

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