गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – गोरखपुर जिले की गोर्रा नदी पर हुआ यह हादसा एक परिवार की जिंदगी में अंधेरा बनकर आया। महज 15 मीटर की दूरी पर किनारा था, जब नाविक ने मोटर की रफ्तार बढ़ा दी। तेज़ स्पीड के कारण नाव घाट से टकराई और उसमें बड़ा छेद हो गया। कुछ ही सेकेंडों में नाव में पानी भरने लगा और लोग घबराकर चिल्लाने लगे। मदनेश, जो अपने बेटे कृष्ण और भतीजे के साथ नाव पर सवार थे, ने अनिकेत को गोद में उठा लिया और बेटे कृष्ण का हाथ थाम लिया। लेकिन नाव अचानक पलट गई। मदनेश का हाथ फिसल गया और 15 साल का कृष्ण नदी की लहरों में समा गया। पिता की आंखों के सामने यह सब कुछ 30 सेकेंड में हुआ, पर कुछ भी नहीं कर सके। नाव में कुल 8 लोग थे, जिनमें से तीन बच्चे शामिल थे। ग्रामीणों ने सात लोगों को किसी तरह बाहर निकाल लिया, मगर किशोर क्रिकेटर कृष्ण का कोई पता नहीं चला। एसडीआरएफ टीम ने करीब 28 घंटे की खोजबीन के बाद उसकी लाश को बरामद किया। जिस स्थान पर हादसा हुआ, वह कृष्ण के घर से मात्र डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर था। हादसे के अगले दिन जोगिया गांव में सन्नाटा पसरा था। घर के बाहर मातम पसरा था, महिलाएं परिवार को ढांढस बंधा रही थीं। कृष्ण की मां सुमन बार-बार बेहोश हो रही थीं और बस एक ही बात दोहरा रही थीं, “कोई मेरे बाबू को ले आओ, वो कहां चला गया।” जब दोपहर करीब दो बजे कृष्ण की लाश मिलने की खबर आई, तो माता-पिता बाइक से नदी की ओर दौड़ पड़े। शव देखकर दोनों अपने बच्चे से लिपट गए, और पुलिस को उन्हें समझाकर हटाना पड़ा।
पिता की व्यथा: वीडियो लेने निकले थे, पर लौटे बेटे की लाश लेकर
कृष्ण के पिता मदनेश बताते हैं कि छह महीने पहले बेटे का जनेऊ हुआ था। उसका वीडियो पास के कस्बे बरही के एक फोटो स्टूडियो वाले ने बनाया था। पेन ड्राइव में सेव वीडियो लेने के लिए वे उस दिन बेटे कृष्ण और 6 वर्षीय भतीजे को साथ लेकर निकले थे। बाइक से घाट तक पहुंचे, फिर सरकारी नाव में चढ़े। लकड़ी की नाव में पहले से पांच बाइक और आठ लोग सवार थे। नाविक ने स्टीमर मोटर लगाई हुई थी। किनारा नजदीक था, लेकिन अचानक नियंत्रण खो गया। नाव घाट से टकराई और पीछे की ओर फिसलती चली गई। इसी झटके में नाव के तले में छेद हुआ और पानी तेजी से भरने लगा। मदनेश बताते हैं, “अगर मैं कृष्ण को गोद में ले लेता तो आज वो मेरे साथ होता, लेकिन सब इतनी जल्दी हुआ कि मौका नहीं मिला।” वहीं मां सुमन ने कहा कि वे दिवाली पर वडोदरा से घर आए थे और छठ के बाद लौटने वाले थे। लेकिन अब वे कहती हैं, “बिना बेटे के कैसे जाऊंगी, कैसे रहूंगी।” यह परिवार पहले भी एक गहरी त्रासदी झेल चुका है – साल 2012 में उनकी आठ साल की बेटी की इंसेफेलाइटिस से मौत हो गई थी। उसके बाद परिवार गुजरात चला गया था। अब बेटे कृष्ण के जाने से सुमन पूरी तरह टूट चुकी हैं। वे बार-बार कहती हैं, “पहले बेटी चली गई, अब बेटा भी चला गया।”
जिम्मेदारी और लापरवाही: जर्जर नाव बनी हादसे की वजह
ग्रामीणों ने बताया कि करही घाट पर चलने वाली यह नाव सरकारी थी और उसकी हालत बेहद खराब थी। नाव पर कोई मरम्मत या सुरक्षा इंतज़ाम नहीं थे। पहले यहां पीपा पुल बना था, लेकिन बारिश के दौरान पानी बढ़ने से वह मार्ग बंद कर दिया गया था। इसके बाद ग्रामीणों के लिए यह नाव ही एकमात्र साधन रह गई। ग्रामीणों का कहना है कि इस नाव में कई बार पहले भी पानी भरने की शिकायतें आई थीं, मगर प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया। हादसे वाले दिन नाव में पांच बाइक और आठ लोग थे, जो क्षमता से कहीं अधिक था। टक्कर के बाद नाव में बड़ा छेद हुआ और पानी तेज़ी से भर गया, जिससे वह डूब गई। एनडीआरएफ टीम ने जब कृष्ण का शव निकाला, तो लोगों को लगा कि शायद उसमें जान बाकी है क्योंकि कुछ आवाजें आ रही थीं। बाद में पता चला कि वह आवाज उसकी घड़ी की टिक-टिक थी। किशोर के कान से खून आ रहा था और उसके हाथ में ब्रेसलेट तथा गले में चेन थी। शव को पोस्टमॉर्टम के लिए बीआरडी मेडिकल कॉलेज भेजा गया। वडोदरा में कृष्ण तीन साल से क्रिकेट कैंप में प्रशिक्षण ले रहा था। उसने कई स्थानीय टूर्नामेंट खेले थे और सोशल मीडिया पर विराट कोहली और महेंद्र सिंह धोनी को फॉलो करता था। उसका सपना भारतीय टीम में खेलना था, लेकिन किस्मत ने उसे महज 10वीं कक्षा में ही छीन लिया। यह हादसा सिर्फ एक परिवार के लिए नहीं, बल्कि पूरे गांव के लिए गहरा सदमा बन गया। ग्रामीण प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि नाव संचालन की जिम्मेदारी तय की जाए और भविष्य में ऐसी लापरवाही दोबारा न हो। नदी किनारे अब भी कृष्ण के माता-पिता का रोना नहीं थमा है, और हर किसी की जुबान पर एक ही सवाल है-क्या यह मौत रोकी जा सकती थी?




