गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – गोरखपुर के पिपराइच थाना क्षेत्र के महुआचापी गांव में पशु तस्करों के हमले में युवक दीपक गुप्ता की मौत ने पूरे इलाके को झकझोर दिया। घटना के बाद स्थानीय लोगों का गुस्सा सीधे पुलिस पर फूटा। भीड़ ने जहां कहीं वर्दीधारी दिखाई दिया, उस पर पत्थरों की बरसात कर दी। हालात इतने तनावपूर्ण हो गए कि कई पुलिस अधिकारी और थानेदार घायल हो गए। लोगों का आक्रोश केवल इसलिए नहीं था कि युवक की जान गई, बल्कि इसके पीछे वर्षों से चली आ रही लापरवाही और शिकायतों की अनदेखी भी कारण बनी। ग्रामीणों का आरोप है कि उन्होंने बार-बार पशु तस्करों की गतिविधियों की सूचना पुलिस तक पहुंचाई, मगर कार्रवाई करने के बजाय मामले को रफा-दफा कर दिया गया। यहां तक कि 21 दिन पहले भी इसी क्षेत्र में एक हमला हुआ था जिसमें किसी तरह पीड़ित की जान बच गई थी, लेकिन पुलिस ने उसे गंभीर घटना मानने के बजाय अल्पीकरण कर मामला बंद कर दिया।
पशु तस्करों की बढ़ती दहशत और शिकायतों की अनदेखी
पिपराइच और आसपास के जंगलों का इलाका लंबे समय से पशु तस्करों की गतिविधियों का गढ़ बना हुआ है। स्थानीय लोग बताते हैं कि कई बार असलहा लहराते पशु तस्कर खुलेआम निकलते दिखाई दिए, लेकिन पुलिस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। सोशल मीडिया पर वायरल हुए सीसीटीवी फुटेज में भी पशु तस्करों की हरकतें कैद हुईं, फिर भी ठोस कार्रवाई नहीं हुई। शिकायत करने वालों को पुलिस चौकियों पर उल्टा डांट सुननी पड़ती थी और अधिकांश मामलों में एफआईआर तक दर्ज नहीं की जाती थी। इसका नतीजा यह हुआ कि तस्करों का मनोबल बढ़ता गया और वे आए दिन स्थानीय लोगों को निशाना बनाने लगे। 26 अगस्त की रात भी पिपराइच चीनी मिल के सुरक्षा प्रभारी दुर्गेश तिवारी पर हमला हुआ। पशु तस्करों ने उन्हें पिकअप से कुचलने की कोशिश की, मारपीट की और मोबाइल लूटकर भाग निकले। दुर्गेश की तहरीर में स्पष्ट लिखा था कि हमलावरों के पास हथियार थे और उन्होंने जान से मारने की नीयत से हमला किया। मगर अगले दिन जो एफआईआर दर्ज हुई उसमें घटनाक्रम को इस तरह लिखा गया कि गंभीर धाराएं कमजोर पड़ गईं। स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस की यह कार्यप्रणाली तस्करों को संरक्षण देती है और आम जनता को असुरक्षित बनाती है।
पुलिस पर सवाल और दीवान का विवादित अतीत
दीपक गुप्ता की मौत और दुर्गेश तिवारी के मामले के बाद गोरखपुर पुलिस की कार्यप्रणाली कठघरे में है। खासकर पिपराइच थाने पर तैनात एक दीवान का नाम फिर से सुर्खियों में है। उस पर पहले भी सोनबरसा चौकी पर तैनाती के दौरान पशु तस्करों से मिलीभगत के आरोप लग चुके हैं। कहा जाता है कि बिहार जाने वाले तस्करों को वह संरक्षण देता था और इसी दौरान उसने संपत्ति भी अर्जित की। स्थानीय सूत्र बताते हैं कि उसके कामकाज से सहकर्मी भी भलीभांति परिचित हैं और अब उसके खिलाफ कार्रवाई की तैयारी चल रही है। यह मामला केवल एक व्यक्ति की भूमिका तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल उठाता है। आखिर क्यों शिकायतों को हल्के में लिया गया, क्यों हर बार घटनाओं का अल्पीकरण किया गया और क्यों ग्रामीणों की आवाज को अनसुना किया गया। यही वे सवाल हैं जिन्होंने दीपक की मौत के बाद जनआक्रोश को पुलिस के खिलाफ मोड़ दिया। नागरिकों का कहना है कि जब तक पुलिस अपने रवैये में बदलाव नहीं लाएगी और तस्करों पर सख्त कार्रवाई नहीं होगी, तब तक लोगों का भरोसा बहाल नहीं हो सकेगा।