गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – गोरखपुर के एम्स में महिला डॉक्टरों के साथ छेड़छाड़ का गंभीर मामला सामने आया है, जिसने संस्थान की कार्यप्रणाली और आंतरिक व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। चार महिला डॉक्टरों ने अपने ही विभागाध्यक्ष पर अनुचित व्यवहार और मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाया। शिकायत के अनुसार विभागाध्यक्ष का रवैया न केवल असहज करने वाला था, बल्कि उन्होंने कई बार महिला डॉक्टरों को सार्वजनिक रूप से अपमानित भी किया। यह घटना 2023 की है, जब पीड़ित डॉक्टरों ने तत्कालीन कार्यकारी निदेशक डॉ. सुरेखा किशोर को शिकायत सौंपी थी। हालांकि निदेशक ने मामले को केवल समझौते से सुलझाने की कोशिश की, जिससे विभागाध्यक्ष का व्यवहार और आक्रामक हो गया। महिला डॉक्टरों ने आरोप लगाया कि शिकायत के बाद भी उन्हें बार-बार धमकाया गया और ओपीडी या ऑपरेशन थिएटर में काम से दूर रखने की कोशिश की गई। इस शिकायत के बाद मामला विशाखा कमेटी के पास पहुंचा, जिसने विस्तृत जांच शुरू की।
जांच में सामने आए तथ्य और गवाहियों के बयान
विशाखा कमेटी की जांच में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। आरोपित विभागाध्यक्ष को 24 जुलाई से 20 अगस्त 2025 के बीच कई बार ईमेल और पंजीकृत डाक से बुलावा भेजा गया, लेकिन वे व्यक्तिगत रूप से जांच में शामिल नहीं हुए। बाद में 26 अगस्त को उन्होंने ऑनलाइन माध्यम से अपनी बात रखी और सभी आरोपों को खारिज कर दिया। इसके बावजूद कमेटी ने पाया कि महिला डॉक्टरों के बयान गंभीर हैं और कार्रवाई आवश्यक है। शिकायत में एसोसिएट प्रोफेसर नंबर-1 ने आरोप लगाया कि विभागाध्यक्ष अक्सर बात करते समय उनके कंधों पर हाथ रख देते थे और कॉफी बनाने के लिए कहते थे। एसोसिएट प्रोफेसर नंबर-2 ने कहा कि एक बार उनकी जांघ छूने की कोशिश की गई और उन्हें प्रमोशन में जानबूझकर रोका गया। एसोसिएट प्रोफेसर नंबर-3 ने बताया कि विभागाध्यक्ष मीटिंग के दौरान महिला रेजिडेंट्स को उपनाम से बुलाते थे और अक्सर फुसफुसाते थे। असिस्टेंट प्रोफेसर नंबर-4 ने कहा कि विभागाध्यक्ष ने उनके वजन पर टिप्पणी की और लगातार घूरते रहते थे। इतना ही नहीं, एक स्नातकोत्तर छात्रा ने भी दावा किया कि उसे शुरू में ही चेतावनी दी गई थी कि विभागाध्यक्ष से दूरी बनाए रखें। इन बयानों ने यह साबित किया कि मामला केवल व्यक्तिगत मतभेद का नहीं बल्कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का है।
प्रशासन की भूमिका और आगे की कार्रवाई
एम्स प्रशासन पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं क्योंकि शिकायत मिलने के बाद तत्कालीन कार्यकारी निदेशक ने केवल मतभेद दूर करने की सलाह दी थी और कोई ठोस कार्रवाई नहीं की थी। इससे आरोपी विभागाध्यक्ष का मनोबल और बढ़ गया और उन्होंने पीड़ित डॉक्टरों का सार्वजनिक रूप से अपमान करना शुरू कर दिया। अब जब विशाखा कमेटी की रिपोर्ट सामने आई है, तो यह मामला फिर सुर्खियों में है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि आरोपी विभागाध्यक्ष जो अब गोरखपुर एम्स छोड़कर दूसरे एम्स में चले गए हैं, उनकी नई संस्था के डीन या निदेशक को इस मामले की जानकारी दी जानी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके। एम्स गोरखपुर की कार्यकारी निदेशक मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) डॉ. विभा दत्ता ने कहा कि रिपोर्ट आने के बाद प्रशासन आवश्यक कदम उठाएगा। महिला डॉक्टरों की मांग है कि आरोपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए और संस्थान में कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। यह मामला कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों में संवेदनशीलता और त्वरित कार्रवाई की जरूरत को एक बार फिर सामने लाता है।