गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – गोरखपुर के मोगलहा क्षेत्र में हुई एक दर्दनाक घटना ने बिजली विभाग की कार्यप्रणाली पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यहां 18 वर्षीय साक्षी ऊर्फ प्रज्ञा की मौत छत पर काम करते समय हाईटेंशन तार की चपेट में आने से हो गई। यह हादसा केवल एक तकनीकी गलती नहीं बल्कि बिजली विभाग की लापरवाही और मनमानी का परिणाम माना जा रहा है। जानकारी के अनुसार, मकान मालिक शशिबाला मौर्या ने अपनी दूसरी मंजिल का काम शुरू कराया था और इसके लिए शटडाउन की मांग की थी। हालांकि विभाग ने शटरिंग और सरिया बिछाने के लिए एक दिन और लिंटर डालने के लिए अलग दिन बिजली आपूर्ति बंद की। जांच से यह भी पता चला कि काम के दौरान 11 हजार वोल्ट की हाईटेंशन लाइन पर प्लास्टिक की पाइप चढ़ाई गई थी, जबकि यह सुरक्षा के लिहाज से बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं थी। बिजली अभियंताओं का कहना है कि इतनी उच्च क्षमता वाली लाइन पर पाइप लगाने से भी करंट का खतरा कम नहीं होता।
जांच में सामने आई खामियां और भ्रष्टाचार की गंध
इस पूरे मामले की जांच में कई नई परतें खुल रही हैं। शुरुआती रिपोर्ट में कहा गया था कि लिंटर पांच अगस्त को डाला गया था, लेकिन आगे की जांच में खुलासा हुआ कि शटरिंग और सरिया बिछाने का काम भी उसी दिन हुआ और फिर 11 अगस्त को लिंटर डाला गया। इसका सीधा मतलब है कि विभाग ने दो अलग-अलग दिन शटडाउन देकर कार्यवाही की, जबकि सामान्य प्रक्रिया में एक ही दिन में पूरा काम निपटाना जरूरी होता है। इस दोहरे शटडाउन को लेकर भ्रष्टाचार की आशंका भी जताई जा रही है, क्योंकि स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि शटडाउन दिलाने के लिए रुपए लिए जाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यही कारण है कि क्षेत्र में बार-बार बिजली कटौती की समस्या बनी रहती है। जांच अधिकारियों ने अब तक अपनी रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को नहीं सौंपी है और उम्मीद जताई जा रही है कि बुधवार तक विस्तृत रिपोर्ट सामने आएगी।
सुरक्षा नियमों की अनदेखी और जिम्मेदारी तय करने की मांग
अभियंताओं और विशेषज्ञों के अनुसार, हाईटेंशन तार के बेहद नजदीक मकान निर्माण करना अपने आप में खतरनाक होता है। मोगलहा में बनी इमारत के ऊपर से गुजर रही 11 हजार वोल्ट की लाइन छत से मात्र चार फीट की दूरी पर थी, जबकि सुरक्षा मानकों के अनुसार इतनी कम दूरी पर किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य प्रतिबंधित है। बावजूद इसके, विभाग की मिलीभगत से मकान की मंजूरी दी गई और कार्य भी जारी रहा। दुर्घटना के बाद जब साक्षी छत पर गई तो तार से संपर्क होते ही वह करंट की चपेट में आ गई और उसकी मौके पर ही मौत हो गई। प्लास्टिक पाइप भी करंट के दबाव से पिघल गई। अभियंताओं का कहना है कि इतनी बड़ी लापरवाही बिना विभागीय कर्मचारियों की संलिप्तता के संभव नहीं है। अब सवाल यह है कि विभाग और संबंधित कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय कब होगी और क्या साक्षी जैसी घटनाओं से सबक लेते हुए भविष्य में ऐसे हादसों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे। स्थानीय लोगों की मांग है कि दोषियों पर कठोर कार्रवाई की जाए और क्षेत्र में बिजली आपूर्ति व्यवस्था को पारदर्शी और सुरक्षित बनाया जाए।