Hindi News / State / Uttar Pradesh / Gorakhpur News Today (गोरखपुर समाचार) / डीडीयू की प्रो. तूलिका ने बढ़ाया यूनिवर्सिटी का मान: अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में जापान, चीन, ऑस्ट्रेलिया और इस्राइल के वैज्ञानिकों संग साझा किया मंच

डीडीयू की प्रो. तूलिका ने बढ़ाया यूनिवर्सिटी का मान: अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में जापान, चीन, ऑस्ट्रेलिया और इस्राइल के वैज्ञानिकों संग साझा किया मंच

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. तूलिका मिश्रा ने शिलांग में आयोजित अंतरराष्ट्रीय वनस्पति विज्ञान सम्मेलन में ‘बांस और फाइटोरेमेडिएशन’ विषय पर शोध प्रस्तुत कर भारत और गोरखपुर विश्वविद्यालय का नाम विश्व स्तर पर रोशन किया।

DDU Gorakhpur Professor Tulika Mishra with international scientists at Shillong conference | Gorakhpur News

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. तूलिका मिश्रा ने एक बार फिर साबित कर दिया कि शैक्षणिक उत्कृष्टता सीमाओं में बंधी नहीं होती। उन्होंने नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी, शिलांग में आयोजित इंडियन बॉटेनिकल सोसाइटी (IBS) की अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेकर न केवल विश्वविद्यालय बल्कि पूरे पूर्वांचल को गौरवान्वित किया है। 29 से 31 अक्टूबर तक चली इस तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में डॉ. तूलिका ने “बंबू एंड फाइटोरेमेडिएशन” विषय पर अपने शोधपत्र का प्रस्तुतीकरण किया और एक विशेष सत्र की अध्यक्षता भी की। इस अवसर पर उन्होंने अपने व्याख्यान के माध्यम से यह बताया कि कैसे बांस जैसी पर्यावरण-अनुकूल पौध प्रजातियाँ मिट्टी में मौजूद विषैले तत्वों और भारी धातुओं को अवशोषित कर पर्यावरण की शुद्धता बनाए रखने में अहम भूमिका निभा सकती हैं। उनके इस शोध ने उपस्थित अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय को प्रभावित किया और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में बांस की क्षमता पर वैश्विक स्तर पर एक नई दृष्टि प्रदान की। डॉ. तूलिका ने कहा कि “बांस सिर्फ पारंपरिक उपयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह धरती को स्वच्छ बनाने की दिशा में एक प्रभावी प्राकृतिक साधन भी है।”

बांस के माध्यम से प्रदूषण नियंत्रण पर केंद्रित रहा शोध

डॉ. तूलिका मिश्रा ने अपने शोध में यह बताया कि फाइटोरेमेडिएशन तकनीक के तहत बांस की विभिन्न प्रजातियाँ मिट्टी से भारी धातुओं जैसे मरकरी (पारा), लेड (सीसा) और कॉपर (तांबा) को अवशोषित कर मिट्टी की गुणवत्ता को सुधार सकती हैं। उन्होंने बताया कि जब ये भारी धातुएँ मिट्टी में घुल जाती हैं तो फसलों के माध्यम से हमारे शरीर में पहुंचकर गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करती हैं। लेकिन बांस, अपनी जैविक संरचना के कारण, इन तत्वों को अपने अंदर समाहित कर मिट्टी को स्वच्छ बनाने की क्षमता रखता है। यह प्रक्रिया न केवल प्रदूषण घटाने में मदद करती है बल्कि कार्बन अवशोषण में भी सहायक है, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम किया जा सकता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में बांस की विविधता इतनी समृद्ध है कि उसका सही उपयोग करके पर्यावरण संरक्षण में क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है। डॉ. तूलिका ने अपने प्रस्तुतीकरण के दौरान यह भी सुझाव दिया कि सरकारें और स्थानीय निकाय बांस आधारित पारिस्थितिक समाधान को अपने विकास मॉडल में शामिल करें ताकि प्रदूषण नियंत्रण के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिल सके। उनकी प्रस्तुति को जापान, चीन, ऑस्ट्रेलिया और इस्राइल के वैज्ञानिकों ने विशेष सराहना दी और कई ने उनके साथ भविष्य में संयुक्त शोध करने की इच्छा जताई।

विश्व वैज्ञानिकों की उपस्थिति में गूंजा गोरखपुर विश्वविद्यालय का नाम

इस प्रतिष्ठित कॉन्फ्रेंस में भारत के नामचीन वैज्ञानिकों के साथ-साथ कई देशों के विशेषज्ञ भी शामिल हुए। भारत की ओर से दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. पी.सी. त्रिवेदी, पद्मश्री प्रो. प्रमोद टंडन और प्रो. एस.के. बरीक जैसी प्रमुख हस्तियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। वहीं, जापान, चीन, ऑस्ट्रेलिया, इस्राइल, कोरिया और अमेरिका जैसे देशों के प्रतिनिधियों ने पर्यावरणीय चुनौतियों पर अपने विचार रखे। इस मंच पर डॉ. तूलिका मिश्रा की सक्रिय भूमिका ने गोरखपुर विश्वविद्यालय की अंतरराष्ट्रीय पहचान को नई ऊंचाई दी। कॉन्फ्रेंस में उनके व्याख्यान को न केवल सराहा गया बल्कि कई विदेशी विशेषज्ञों ने उनकी रिसर्च को भविष्य की पर्यावरण नीति के लिए उपयोगी बताया। विश्वविद्यालय प्रशासन ने भी उनके इस योगदान की सराहना करते हुए कहा कि यह गोरखपुर विश्वविद्यालय के लिए गर्व का क्षण है। डॉ. तूलिका ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि “भारत में बांस की विविधता दुनिया में अद्वितीय है और हमें इसे केवल वाणिज्यिक दृष्टिकोण से नहीं बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी महत्व देना चाहिए।” उनके अनुसार, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और पुनर्स्थापन में पारंपरिक भारतीय ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का संयोजन ही आने वाले समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। इस अंतरराष्ट्रीय उपलब्धि के साथ डॉ. तूलिका मिश्रा ने न केवल अपने विश्वविद्यालय का नाम रोशन किया है बल्कि भारत की वैज्ञानिक क्षमता को भी वैश्विक मंच पर एक मजबूत पहचान दिलाई है।

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