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CDS जनरल अनिल चौहान बोले- चीन के साथ सीमा विवाद सबसे बड़ी चुनौती, पाकिस्तान से भी खतरा बरकरार

गोरखपुर में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी संगोष्ठी में बोले सीडीएस, कहा- दुश्मन परमाणु हथियारों से लैस, आत्मनिर्भरता और नई तकनीक से ही संभव होगी रक्षा

CDS General Anil Chauhan speaking on national security challenges in Gorakhpur

गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में ‘भारत के समक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियां’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने पड़ोसी देशों से जुड़ी चुनौतियों और भारत की सुरक्षा नीति पर विस्तृत विचार रखे। उन्होंने कहा कि भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती चीन के साथ चल रहा सीमा विवाद है, जबकि पाकिस्तान से भी खतरा लगातार बना हुआ है। दोनों ही देश परमाणु हथियारों से लैस हैं, जिससे स्थिति और गंभीर हो जाती है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से सीमा विवादों के चलते कई युद्ध हुए और आज भी चीन की नीतियां भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई हैं। जनरल चौहान ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा केवल सैन्य ताकत से संभव नहीं, बल्कि इसके लिए विचारधारा की भी अहम भूमिका है। उन्होंने कहा कि विचारधारा राष्ट्र की आत्मा है, जो प्रशासनिक ढांचे को मजबूती देती है। इस मौके पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद थे और उन्होंने पाकिस्तान की आंतरिक अराजकता को उदाहरण बनाते हुए कहा कि जो राष्ट्र भीतर से कमजोर होता है, उसका अस्तित्व लंबे समय तक सुरक्षित नहीं रह सकता। सीएम योगी ने चाणक्य का हवाला देते हुए कहा कि अराजक राष्ट्र शीघ्र ही खत्म हो जाता है और पाकिस्तान इसकी जीती-जागती मिसाल है।

आत्मनिर्भरता, बदलता युद्ध स्वरूप और साइबर सुरक्षा की जरूरत

सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने अपने संबोधन में कहा कि किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा तीन स्तर पर देखी जा सकती है – सैनिक तत्परता, राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्र सुरक्षा। इन तीनों घेरों का एक साथ काम करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आत्मनिर्भरता सबसे महत्वपूर्ण है और इसके लिए रक्षा अनुसंधान और नई तकनीक को प्राथमिकता देनी होगी। उन्होंने भविष्य में नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी की जरूरत पर भी बल दिया। जनरल चौहान ने बताया कि युद्ध केवल सैन्य कार्रवाई नहीं बल्कि राजनीति का विस्तार भी है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि उरी हमले के बाद जमीनी कार्रवाई हुई, पुलवामा के बाद एयर स्ट्राइक की गई और बालाकोट ऑपरेशन के बाद लंबी दूरी तक मार करने वाले हथियारों की जरूरत महसूस हुई। इसी तरह पहलगाम हमले के बाद निचले हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल किया गया। उन्होंने कहा कि बदलते समय में युद्ध का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। हमारे विरोधी परमाणु हथियारों से लैस हैं और यह भारत के लिए एक स्थायी चुनौती है। शांति काल में रक्षा क्षेत्र पर जितना अधिक निवेश होगा, उतनी ही सैन्य क्षमता मजबूत होगी। साथ ही उन्होंने कहा कि नभ, जल और थल की तरह अब साइबर स्पेस भी युद्ध का अहम मोर्चा बन चुका है। साइबर अटैक, रोबोटिक्स और स्पेस सर्विलांस जैसी नई चुनौतियों से निपटने के लिए भारत को अपनी क्षमताओं को और मजबूत करना होगा।

सुदर्शन चक्र मिशन, सैनिकों का योगदान और राष्ट्र रक्षा का संकल्प

सीडीएस ने अपने संबोधन में ‘सुदर्शन चक्र मिशन’ का उल्लेख करते हुए कहा कि यह मल्टी-डिफेंस टूल भारत में ही विकसित किया जाएगा, जो देश को हमलों से बचाने और दुश्मनों को जवाब देने में कारगर साबित होगा। उन्होंने कहा कि भारत 2047 तक विकसित और सशक्त राष्ट्र बनने की दिशा में बढ़ रहा है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए आत्मनिर्भरता अनिवार्य है। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि आतंकवाद और व्यापार एक साथ नहीं चल सकते। आतंकवाद से निपटने के लिए नई नीतियों और तकनीकों को अपनाना होगा। कार्यक्रम में मौजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मौके पर कहा कि भारत की धरती के साथ छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा कि भारतीय सैनिक -50 डिग्री तापमान में भी देश की सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं और उनकी बदौलत ही नागरिक चैन की नींद सो पाते हैं। उन्होंने रामायण और महाभारत के उदाहरण देते हुए कहा कि दुष्टों के विनाश और नागरिकों की सुरक्षा के माध्यम से ही राष्ट्र मजबूत और सुरक्षित रह सकता है। सेमिनार में महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवैद्यनाथ की पुण्यतिथि पर राष्ट्र सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हुई। इसके पहले सीडीएस ने गोरखा वॉर मेमोरियल के सौंदर्यीकरण और गोरखा म्यूजियम के शिलान्यास समारोह में भी हिस्सा लिया था। उनका कहना था कि भारत को भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए हर स्तर पर तैयार रहना होगा, तभी हम अपने राष्ट्र को सुरक्षित और सशक्त बना पाएंगे।

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