गोरखपुर स्थित दीन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय में एक गंभीर विवाद खड़ा हो गया है, जहां भाजपा के विधान परिषद सदस्य देवेंद्र प्रताप सिंह ने आर्ट संकाय के डीन और गणित विभाग के प्रभारी विभागाध्यक्ष प्रो. राजवंत राव पर गंभीर आरोप लगाए। एमएलसी का कहना है कि विश्वविद्यालय की परीक्षा प्रणाली में गड़बड़ी के कारण एमएससी गणित के छात्र आयुष मिश्र को जानबूझकर असफल घोषित किया गया। उनका आरोप है कि छात्र को क्लासिकल मेकेनिक्स विषय की लिखित परीक्षा में अपेक्षाकृत कम अंक दिए गए और आंतरिक मूल्यांकन में उपस्थिति पूरी होने के बावजूद केवल एक अंक दिया गया। एमएलसी का दावा है कि इस पूरे घटनाक्रम से छात्र और उसका परिवार मानसिक दबाव में रहा, जिसके चलते आयुष के पिता मुरलीधर मिश्र विभागाध्यक्ष से मिलने पहुंचे और वहां उनकी हालत बिगड़ने के बाद मौत हो गई। आरोपों के अनुसार, बातचीत के दौरान पिता को अपमानित किया गया और विभागाध्यक्ष की डांट से वे भावुक होकर गिर पड़े।
एमएलसी की मांगें और क्षतिपूर्ति का सवाल
एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह ने मामले को बेहद गंभीर बताते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन से कड़ी कार्रवाई की मांग की। उन्होंने कहा कि छात्र की उपस्थिति 75 प्रतिशत पूरी थी और नियमावली के अनुसार उसे कम से कम पांच अंक उपस्थिति के आधार पर मिलने चाहिए थे। यदि यह अंक दिए जाते तो छात्र अनुत्तीर्ण नहीं होता और उसके पिता की मृत्यु जैसी स्थिति उत्पन्न न होती। एमएलसी ने दोषी के रूप में गणित विभाग के प्रभारी विभागाध्यक्ष, संबंधित विषय की परीक्षा जाँचने वाले शिक्षक और आंतरिक मूल्यांकनकर्ता को जिम्मेदार ठहराते हुए तत्काल कार्रवाई की मांग की है। इसके साथ ही उन्होंने पीड़ित परिवार के लिए एक करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति और एक सदस्य को विश्वविद्यालय में रोजगार दिए जाने की बात भी रखी। उनका कहना है कि यह केवल परीक्षा का मुद्दा नहीं बल्कि एक परिवार की असमय त्रासदी का मामला है, जिसके लिए दोषियों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
प्रो. राजवंत राव का पक्ष और जांच समिति की पहल
दूसरी ओर, प्रो. राजवंत राव ने एमएलसी के आरोपों को पूरी तरह से खारिज किया है। उन्होंने कहा कि वह 24 जुलाई से गणित विभाग के प्रभारी विभागाध्यक्ष बने हैं, जबकि यह परीक्षा इससे पहले ही हो चुकी थी। उनका कहना है कि विभागाध्यक्ष की परीक्षा परिणामों या आंतरिक अंकों के निर्धारण में कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं होती। उन्होंने स्पष्ट किया कि छात्र अपने पिता के साथ उनके कार्यालय आया था और पिता मेडिकल रिपोर्ट दिखा रहे थे। इसी दौरान उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई। प्रो. राव का कहना है कि उन्होंने और विभागीय स्टाफ ने तुरंत उन्हें संभाला और एंबुलेंस बुलवाकर अस्पताल भेजा, तब तक वे जीवित थे। उन्होंने कुलपति कार्यालय में डांटने की घटना से भी इनकार किया। विश्वविद्यालय की कुलपति ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच समिति का गठन किया है, जो तथ्यों की समीक्षा कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। फिलहाल, यह मामला गोरखपुर विश्वविद्यालय की शैक्षणिक और प्रशासनिक पारदर्शिता पर कई प्रश्न खड़े कर रहा है।