गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गोरखपुर के सांसद राम भुआल निषाद को एक पुराने आपराधिक मामले में बड़ी राहत दी है। न्यायमूर्ति समीर जैन की एकलपीठ ने बुधवार को दिए आदेश में सांसद के खिलाफ दर्ज शस्त्र लाइसेंस दुरुपयोग के मामले की चार्जशीट और न्यायालयीन कार्यवाही को रद्द कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पुलिस जांच के दौरान ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला जिससे यह साबित हो सके कि सांसद ने किसी प्रकार की जालसाजी, धोखाधड़ी या गैरकानूनी तरीके से किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर जारी लाइसेंस का इस्तेमाल किया हो। यह मामला वर्ष 2020 में गोरखपुर के बड़हलगंज थाने में दर्ज हुआ था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सांसद ने एक व्यक्ति बेचू यादव के नाम से जारी शस्त्र लाइसेंस का गलत उपयोग किया। हालांकि जांच में यह तथ्य सामने आया कि बेचू यादव का निधन काफी पहले हो चुका था और उस लाइसेंस के उपयोग से संबंधित कोई प्रत्यक्ष प्रमाण याची के खिलाफ नहीं पाया गया। न्यायालय ने माना कि केवल इस आधार पर कि लाइसेंस किसी और के नाम पर था, यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि सांसद ने जानबूझकर जालसाजी की है। अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति के खिलाफ अभियोजन तभी टिक सकता है जब जांच में स्पष्ट साक्ष्य मौजूद हों, मात्र अनुमान या आरोप के आधार पर आपराधिक कार्यवाही नहीं चलाई जा सकती।
जांच में नहीं मिला ठोस सबूत, चार्जशीट दाखिल करने पर सवाल
न्यायालय ने अपने विस्तृत आदेश में यह भी उल्लेख किया कि जांच अधिकारी चार्जशीट दाखिल करने से पहले पर्याप्त साक्ष्य एकत्र करने में असफल रहे। आदेश में कहा गया कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध दस्तावेजों से यह साबित नहीं होता कि याची ने किसी भी सरकारी अभिलेख या प्रमाण पत्र में छेड़छाड़ की हो। जांच एजेंसी यह भी स्पष्ट करने में विफल रही कि कथित लाइसेंस का उपयोग किन परिस्थितियों में हुआ और उससे किसी को क्या नुकसान या खतरा हुआ। न्यायमूर्ति समीर जैन ने कहा कि जब किसी व्यक्ति के खिलाफ आरोपों की पुष्टि के लिए कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सबूत नहीं हो, तो उस पर अभियोजन चलाना न्यायसंगत नहीं है। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि आपराधिक न्याय प्रणाली का उद्देश्य केवल आरोप लगाना नहीं, बल्कि निष्पक्ष जांच के आधार पर सत्य की स्थापना करना है। इस मामले में जांच की प्रक्रिया में पर्याप्त कानूनी गंभीरता नहीं दिखाई दी, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि आरोप टिकाऊ नहीं थे। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में न्यायिक विवेक का इस्तेमाल आवश्यक है ताकि किसी निर्दोष व्यक्ति को अनावश्यक मुकदमेबाजी में न फंसाया जाए।
सांसद के खिलाफ मुकदमे की कार्यवाही रद्द, अदालत ने दी स्पष्ट टिप्पणी
सुनवाई के दौरान सांसद राम भुआल निषाद की ओर से कहा गया कि उन्होंने कभी किसी दूसरे व्यक्ति के नाम से जारी लाइसेंस का उपयोग नहीं किया और जांच एजेंसी ने बिना पर्याप्त प्रमाण के उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी। बचाव पक्ष ने दलील दी कि केवल संदेह के आधार पर किसी जनप्रतिनिधि को अभियुक्त ठहराना न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद पाया कि न तो किसी दस्तावेज में छेड़छाड़ का सबूत है और न ही किसी हथियार के गलत इस्तेमाल का मामला सिद्ध हुआ। इस स्थिति में अदालत ने कहा कि चार्जशीट दाखिल करने और अदालत द्वारा संज्ञान लेने की कार्रवाई कानून के अनुरूप नहीं थी। अदालत ने आदेश में लिखा कि ऐसे मामलों में जब जांच में जालसाजी या धोखाधड़ी का कोई प्रमाण नहीं होता, तो आरोपी को न्यायिक राहत देना ही उचित कदम है। इस फैसले के साथ सांसद राम भुआल निषाद के खिलाफ चल रही कार्यवाही को समाप्त कर दिया गया। कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार यह फैसला न केवल सांसद के लिए राहत की बात है, बल्कि भविष्य में जांच एजेंसियों के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण नजीर बन सकता है कि केवल आरोपों के आधार पर चार्जशीट दाखिल करना पर्याप्त नहीं है। अब इस आदेश से यह संदेश गया है कि न्यायालय बिना ठोस साक्ष्य के किसी भी व्यक्ति को अभियोजन का सामना करने के लिए मजबूर नहीं करेगा, जिससे न्याय प्रणाली में जनविश्वास और अधिक मजबूत होगा।




