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Gorakhpur News : अवैध हिरासत मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का सख्त रुख, गोरखपुर SSP को बंदी को पेश करने और सभी संबंधितों को अदालत में उपस्थित होने का निर्देश

Allahabad High Court orders Gorakhpur SSP to produce detainee in illegal custody case | Gorakhpur News

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश –  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गोरखपुर पुलिस प्रशासन को अवैध हिरासत के एक मामले में कड़ी फटकार लगाते हुए स्पष्ट निर्देश दिया है कि कथित रूप से नजरबंद किए गए व्यक्ति राम केवल पुत्र विपत को अदालत के समक्ष पेश किया जाए। न्यायमूर्ति जे.जे. मुनीर और न्यायमूर्ति संजीव कुमार की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में लगाए गए आरोप गंभीर हैं और इनकी न्यायिक जांच आवश्यक है। अदालत ने आदेश दिया कि गोरखपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) स्वयं यह सुनिश्चित करें कि राम केवल पुत्र विपत को 31 अक्टूबर दोपहर दो बजे अदालत के समक्ष पेश किया जाए। इसके साथ ही अदालत ने शिकायतकर्ता राम सरन को भी उसी दिन उपस्थित होने का निर्देश दिया है ताकि दोनों पक्षों की उपस्थिति में तथ्यात्मक स्थिति स्पष्ट की जा सके। अदालत में दाखिल याचिका राम केवल की बहन द्वारा दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि पुलिस ने गलत पहचान के चलते उनके भाई को अवैध रूप से हिरासत में ले लिया है। याचिका में यह भी दावा किया गया कि जिस व्यक्ति पर आरोप हैं, वह एक अन्य व्यक्ति है, जबकि हिरासत में लिया गया व्यक्ति निर्दोष है। अदालत ने इस पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि किसी भी निर्दोष व्यक्ति को गलत पहचान या लापरवाह जांच के कारण कैद में रखना कानून के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।

गलत पहचान से निर्दोष व्यक्ति की गिरफ्तारी, अदालत ने जताई नाराजगी

मामले के अनुसार, गोरखपुर जिले के खोराबार थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले चितौना गांव के निवासी राम सरन ने राम केवल पुत्र राम किशुन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी। एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि राम केवल ने स्वयं को विपत पुत्र बताकर 24 फरवरी 2023 को एक जमीन का फर्जी बैनामा कर धोखाधड़ी की थी। हालांकि जांच के दौरान पुलिस ने असली आरोपी की पहचान करने में गलती कर दी और शिकायतकर्ता के चाचा, जो विपत के पुत्र राम केवल हैं, को गिरफ्तार कर लिया। याचिका में यह कहा गया कि गिरफ्तार व्यक्ति का न तो विवादित जमीन से कोई संबंध है और न ही उसने किसी प्रकार की धोखाधड़ी की है, इसके बावजूद उसे नजरबंद कर दिया गया। अदालत ने पुलिस की इस गलती पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसी स्थिति न्याय प्रणाली की साख को प्रभावित करती है। न्यायमूर्ति जे.जे. मुनीर ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि पुलिस प्रशासन को ऐसे मामलों में विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए ताकि निर्दोष नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो। उन्होंने कहा कि गलत व्यक्ति की गिरफ्तारी न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन है बल्कि यह न्याय की प्रक्रिया पर प्रश्नचिह्न लगाती है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि अगले आदेश की तारीख पर यह सिद्ध होता है कि पुलिस ने जानबूझकर या लापरवाही से गलत व्यक्ति को हिरासत में लिया, तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई पर विचार किया जाएगा।

सभी अधिकारियों को आदेश की प्रति भेजी गई, कोर्ट की निगरानी में होगी अगली सुनवाई

हाईकोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि आदेश की प्रति सीजेएम गोरखपुर के माध्यम से गोरखपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, खोराबार थाने के प्रभारी निरीक्षक (SHO) और गगहा थाने के SHO को अनुपालन हेतु तत्काल भेजी जाए। अदालत ने कहा कि आदेश का पालन सुनिश्चित करना SSP की व्यक्तिगत जिम्मेदारी होगी और यदि बंदी को पेश नहीं किया गया, तो यह अदालत की अवमानना मानी जाएगी। न्यायालय ने यह भी कहा कि 31 अक्टूबर को दोनों पक्षों की उपस्थिति में पूरी सुनवाई की जाएगी और यदि पाया गया कि याची को अवैध रूप से नजरबंद किया गया है, तो उसकी तत्काल रिहाई का आदेश दिया जा सकता है। इस बीच अदालत ने राज्य सरकार से भी अपेक्षा की है कि वह इस मामले की प्रशासनिक समीक्षा करे और ऐसे मामलों में पुलिसकर्मियों के प्रशिक्षण व जवाबदेही पर ध्यान दे। इस आदेश के बाद गोरखपुर पुलिस प्रशासन में हलचल मच गई है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी इस मामले की जांच और रिपोर्ट तैयार करने में जुटे हैं ताकि अदालत में सही तथ्यों के साथ पक्ष रखा जा सके। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह आदेश नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण है और यह संदेश देता है कि अदालतें किसी भी प्रकार की अवैध हिरासत या गलत गिरफ्तारी को बर्दाश्त नहीं करेंगी। अब 31 अक्टूबर को होने वाली अगली सुनवाई पर सभी की नजरें टिकी हैं, जहां यह तय होगा कि वास्तव में हिरासत में लिया गया व्यक्ति निर्दोष था या नहीं।

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