तकनीक और परंपरा का संगम – नवरात्रि पर्व को लेकर गोरखपुर में मां दुर्गा की प्रतिमाओं के निर्माण का काम जोर-शोर से चल रहा है। बी पाल मूर्ति कारखाने में 20 से अधिक मूर्तिकार इस बार एआई तकनीक का इस्तेमाल करके ऐसी प्रतिमाएं बना रहे हैं जो न सिर्फ स्थानीय भक्तों को बल्कि विदेशों तक को आकर्षित कर रही हैं। सबसे खास प्रतिमा वह होगी जिसमें महादेव अपनी खुली जटाओं के साथ नजर आएंगे और दोनों ओर मां दुर्गा के नौ स्वरूप सजेंगे। केंद्र में खड़ी मां की भव्य प्रतिमा भक्तों को मंत्रमुग्ध कर देगी। इसके साथ ही 12 फीट ऊंचे राक्षसों की मूर्तियां भी तैयार की जा रही हैं जिनमें आधुनिकता की झलक दिखेगी। इन राक्षसों को छह-पैक एब्स और दमदार शरीर के साथ गढ़ा गया है जो पहले कभी नहीं देखा गया। मूर्तिकारों का कहना है कि भक्तों और आयोजकों से मिलने वाले ज्यादातर ऑर्डर अब एआई आधारित डिजाइन पर ही केंद्रित हैं। इससे पारंपरिक शैली की मूर्तियों की मांग कम हो गई है और तकनीक से बनी प्रतिमाओं का चलन तेजी से बढ़ा है।
बंगाल से आए अनुभवी कारीगर और मिट्टी की खासियत
प्रतिमाओं के निर्माण के लिए पश्चिम बंगाल के नदिया जिले समेत कई जगहों से कारीगरों को बुलाया गया है। ये कारीगर पिछले दो दशक से गोरखपुर में रहकर हर साल नवरात्रि से पहले चार महीने तक मूर्तियां बनाते हैं। इस बार भी जून से काम शुरू हो गया था और अब अंतिम चरण में पहुंच चुका है। बी पाल मूर्ति कारखाने को इस वर्ष सौ से अधिक ऑर्डर मिले हैं जिनमें बड़ी संख्या बाहर के जिलों और नेपाल तक से आए हैं। कुल मिलाकर 40 प्रतिशत ऑर्डर गोरखपुर से बाहर के ग्राहकों के हैं। मूर्तियां विशेष मिट्टी से तैयार होती हैं जिसमें काली, चिकनी और बालू वाली मिट्टी को मिलाकर खास मिश्रण तैयार किया जाता है। यह मिट्टी आसपास की नदियों और नया गांव के पास से लाई जाती है। मूर्तियों पर आने वाला खर्च 10 हजार रुपये से शुरू होकर दो लाख रुपये तक पहुंच जाता है। सजावट और गहनों पर सबसे ज्यादा खर्च होता है जो प्रतिमाओं की भव्यता को और बढ़ा देता है।
परंपरा से जुड़ी मान्यता और इस बार का शुभ संयोग
कारीगरों का कहना है कि गोरखपुर में उन्हें पश्चिम बंगाल की तुलना में अधिक सम्मान और बेहतर कमाई मिलती है, इसलिए उनका मन यहां ज्यादा लगता है। गोरखनाथ मंदिर सहित शहर के प्रमुख पंडालों में इन्हीं प्रतिमाओं की स्थापना होती है। इस बार ज्योतिषाचार्यों के अनुसार नवरात्रि 10 दिनों की होगी, जो 1998 और 2016 के बाद फिर से दुर्लभ संयोग है। माता दुर्गा गजवाहन यानी हाथी पर आएंगी और मानव कंधे पर प्रस्थान करेंगी, जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है। पंडित नरेंद्र उपाध्याय ने बताया कि यह संयोग देश और विदेश दोनों के लिए शुभ संकेत लेकर आएगा और उन्नति के नए रास्ते खोलेगा। 22 सितंबर से नवरात्रि की शुरुआत होगी और 2 अक्टूबर को दशहरा का पर्व मनाया जाएगा। गोरखपुर में एआई तकनीक से बनी मां दुर्गा की भव्य प्रतिमाएं न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र होंगी बल्कि आधुनिकता और परंपरा के अनूठे संगम की मिसाल भी पेश करेंगी।