गोरखपुर, उत्तर प्रदेश – दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में सामने आए बड़े रिश्वत प्रकरण ने प्रशासन को हिला दिया है। संबद्धता विभाग के कार्यालय अधीक्षक डॉ. बीएन सिंह को एंटी करप्शन टीम ने रंगे हाथों रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया, जिसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने तत्काल एक्शन लेते हुए उन्हें निलंबित कर दिया। शुक्रवार को हुई इस कार्रवाई के तहत संबद्धता कार्यालय को तुरंत सील कर दिया गया ताकि किसी भी तरह की फाइलों में छेड़छाड़ रोकी जा सके। कुलपति प्रो. पूनम टंडन को सुबह शिकायत मिली थी कि संबद्धता विभाग में फाइलों से छेड़छाड़ की आशंका है। उन्होंने तुरंत डिप्टी रजिस्ट्रार रवि निषाद और चंद्रेश धीमान को मौके पर भेजकर कार्रवाई करवाई। इसके बाद आरोपी अधीक्षक को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया। इस मामले ने विश्वविद्यालय की छवि पर सवाल खड़े कर दिए हैं और प्रशासन ने साफ किया है कि दोषियों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा।
जांच समितियों का गठन और प्रशासनिक फेरबदल
प्रकरण की गहन जांच सुनिश्चित करने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने दो अलग-अलग समितियों का गठन किया है। पहली तीन सदस्यीय समिति को संबद्धता विभाग से जुड़ी सभी फाइलों का निस्तारण, कॉलेज प्रबंधकों के बयान दर्ज करने और पूरी प्रक्रिया का विश्लेषण कर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने का जिम्मा दिया गया है। वहीं दूसरी जांच का दायित्व प्रति कुलपति प्रो. शांतनु रस्तोगी को सौंपा गया है, जो डॉ. बीएन सिंह पर चल रही कानूनी कार्रवाई का अध्ययन कर आगे की प्रशासनिक कार्यवाही के लिए सुझाव देंगे। इसी के साथ विश्वविद्यालय में लंबे समय से एक ही सीट पर तैनात कर्मचारियों की भूमिका पर भी सवाल उठे, जिसके बाद कुल 23 कर्मचारियों का पटल परिवर्तन कर दिया गया। संबद्धता विभाग के सभी कर्मचारियों को अन्य विभागों में भेज दिया गया है और कुलपति कार्यालय में तैनात देवी सिंह को नया कार्यालय अधीक्षक नियुक्त किया गया है। यह बदलाव केवल संबद्धता विभाग तक सीमित नहीं रहा बल्कि विश्वविद्यालय के अन्य महत्वपूर्ण कार्यालयों में भी कर्मचारियों की अदला-बदली की गई है ताकि भविष्य में भ्रष्टाचार की संभावना को खत्म किया जा सके।
सतर्कता और भविष्य की कार्ययोजना
विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर कड़ा रुख अपनाया है। दोनों जांच समितियों ने अपनी जांच शुरू कर दी है और संबद्धता विभाग की सभी फाइलों की प्रक्रियाओं की बारीकी से समीक्षा की जा रही है। कॉलेज प्रबंधकों के बयान दर्ज कर उन्हें रिपोर्ट में शामिल किया जा रहा है ताकि किसी भी प्रकार की अनियमितता की पूरी तस्वीर स्पष्ट हो सके। कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने कहा कि रिश्वत लेना विश्वविद्यालय की साख को गहरा नुकसान पहुंचाता है और दोषी पाए जाने वाले किसी भी कर्मचारी को सख्त सजा दी जाएगी। उन्होंने संकेत दिया कि आवश्यकता पड़ने पर और भी पटल परिवर्तन किए जा सकते हैं। इस कदम का उद्देश्य न केवल वर्तमान मामले की पारदर्शिता सुनिश्चित करना है बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकना और प्रशासनिक व्यवस्था को अधिक जवाबदेह बनाना है। विश्वविद्यालय परिसर में इस कार्रवाई के बाद सतर्कता बढ़ा दी गई है और कर्मचारियों को साफ संदेश दिया गया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जाएगी।